Monday 13 May, 2013

सपने जो दिखाते हैं गाँव और प्रकृति के रिश्ते



गाँव के जीवन की सबसे बड़ी खासियत है प्रकृति से गहरा लगाव। प्रकृति से उनका रिश्ता टूट जाना किसी बुरे सपने से कम नहीं हो सकता। देश विदेश की फि ल्मों ने गाँवों को अपने-अपने नज़रिए देखा हैं। ऐसी फि ल्में विरले ही देखने को मिलती हैं जिन्होने गाँव और प्रकृति के इस रिश्ते के पहलुओं में गहराई से झांकने की कोशिश की हो। मशहूर निर्देशक अकिरा कुरुसावा की फि ल्म ड्रीम्स उन विरली फि ल्मों में से एक है ।

 कहा जाता है कि ये पूरी फि ल्म अकीरा कुरुसावा के उन सपनों के बारे में है जो उन्होंने अलग-अलग समय में देखे। फि ल्म में 8 छोटी-छोटी कहानियां हैं जो मुश्किल से पांच-पांच मिनट की होंगी। इन कहानियों में कुरुसावा मनुष्य और प्रकृति के बीच के तारतम्य के असन्तुलित से हो जाने के लिये अपनी चिन्ता जाहिर करते मालूम होते हैं।

 सभी कहानियों के पात्र किसी न किसी रुप में या प्रकृति से जुड़े हैं या प्राकृतिक जीवनदर्शन से। इन कहानियों में कहीं प्रकृति अपने पूरे साफ -सुथरे नैसर्गिक रुप में दिखाई देती है तो कहीं उसके साथ हुए खिलवाड़ से पनपी विभीषिका पूरे भयावह रुप में सामने आ जाती है। और उसके समानान्तर चलता है आनन्द और विभीषिका दोनों से जूझता इन्सान। ये कुरुसावा के सपनों का फि ल्मांकन तो है ही साथ ही हमारे इर्द-गिर्द की दुनिया की चिन्ताएं भी हैं। भले इनका रुप प्रतीकात्मक है पर ये चिन्ताएं आज के सन्दर्भ में भी उतनी ही प्रासांगिक हैं और इस लिहाज से ये फि ल्म महत्वपूर्ण हो जाती है।


वो बारिश में घुलती सूरज की चमक

सनशाईन थ्रो रेन फि ल्म की पहली कहानी है। फि ल्म को देखकर लगा कि कई बार लोकोक्तियां या कहावतें जिन्हें हम नितान्त क्षेत्रीय समझ रहे होते हैं वो विश्वव्यापी भी हो सकती हैं। हम अपने घर में अक्सर सुना करते थे कि जब धूप और बारिस दोनों साथ-साथ हो रही होती हैं तो उस वक्त लोमणियों की शादी होती है। इस कहावत के जापानी वर्जन को फि ल्म के इस हिस्से में देखा जा सकता है। एक बच्चा जिसकी मां उसे इस मौसम में बारिश में जाने से मना कर रही है पर बच्चा जाता है और जब वो घर लौटता है तो उसकी मां उसे बताती है कि एक लोमड़ी वहां आयी थी जो उसे एक चाकू देके गई है। माने यह कि वे चाहती है कि तुम इससे खुद को मार लो। मां बच्चे से कहती है कि वो लोमड़ी से माफ ी मांग ले हो सकता है कि वो माफ कर दे। बच्चा लोमड़ी तलाश में घर से जंगल की तरफ चला आता है। और वहां एक इन्द्रधनुश है फू लों के बगीचे के इर्द गिर्द पहाड़ों के बीच कहीं उगता हुआ और बच्चा आगे बढ़ा जा रहा है अनन्त की ओर। फि ल्म के इस हिस्से में सफेद कुहासे के बीच से उभरते लोमणियों के प्रतीकात्मक चेहरे जब पाश्र्व में बजते किसी जापानी लोकसंगीत के साथ आगे बढ़ रहे होते हैं तो एक अजीब किस्म की रहस्यात्मक अनुभूती होती है और उस मासूम बच्चे के लिये एक खास किस्म की सहानुभूति का भाव मन में पैदा होने लगता है न जाने क्यों।

आड़ू का बगीचा

द पीच और्चर्ड फि ल्म की दूसरी कहानी है। ये कहानी गुडिय़ाओं के एक त्योहार के बारे में है। माना जाता है कि इस त्योहार को तब मनाया जाता है जब आड़ू के बगीचों में सुन्दर गुलाबी फू ल उगते हैं और त्योहार में प्रदर्शित की गई हर गुडिय़ा एक आड़ू के पेड़ का प्रतीक मानी जाती है, लेकिन एक छोटा सा लड़का इस बार त्योहार में खुश नहीं है, क्योंकि उसके परिवार ने इस बार आड़ू के बगीचे से सारे पेड़ काट दिये। बच्चा एक लड़की के पीछे-पीछे कटे पेड़ों वाले उस बगीचे में जाता है और देखता है कि गुडिय़ाएं आड़ू के पेड़ों की आत्माओं में बदल गई हैं और बच्चे को बताती है कि कैसे उन्हें काट दिया गया, लेकिन जब उन्हें महसूस होता है कि बच्चे को उनका खिलना कितना अच्छा लगता था वो फैसला करते हैं कि एक बार उसे फिर से आड़ू के उस खिले बगीचे का दर्शन करा दिया जाये। बगीचा एक बार फि र खिल जाता है पर थोड़ी देर बाद ही वहां सारे कटे हुए पेड़ वापस आ जाते हैं। वो लड़की जिसके पीछे बच्चा यहां आया था एक बार फि र दिखाई देती है और थोड़ी देर में वो भी गायब हो जाती है और उसकी जगह एक गुलाबी फू लों वाला आड़ू का पेड़ वहां उग जाता है।

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