Tuesday 26 February, 2013

एमू पालन काफी फायदे का सौदा


नाबार्ड एमू पालन के लिए 25 लाख रुपये तक का लोन और 25 फीसदी तक की सब्सिडी देता है

अमूल्य रस्तोगी
लखनऊ। लखनऊ से करीब 15 किमी दक्षिण की ओर सीतापुर बाईपास पर आईआईएम के पास मधुबन एमू फार्म है। इस फार्म पर दफ्ती के गत्तों में हरे-नीले अण्डे रखे पास ही छोटी मुर्गी के आकार के एमू के बच्चे भी टहल रहे थे। इस फार्म के एक कोने पर कुर्सी पर फार्म के मालिक प्रदीप दीक्षित फल काटते हुए कहते है "एमू के खाने के कोई नखरे नहीं है यह फल, सब्जी, अनाज लगभग सब कुछ खा लेते है।" एमू समूह में रहते हैं और घास-फू , -फू , जंगली वनस्पतियों के साथ ही साथ छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े खाते हैं। प्रदीप पिछले कई सालें से एमू फार्म चला रहे है और अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं। प्रदीप सिर्फ एमू ही नहीं पालते बल्कि उन्होंने इसके अण्डे सेने वाली मशीन भी लगाई हुई है। प्रदीप बताते है" हमारे फार्म पर कई जगहों से अण्डे आते है बरेली से, गोण्डा से और हम इन्हें मशीन में सेते है। कुछ दिन बाद जब अण्डें से बच्चा निकल आते है तो इसे इसके मालिक को दे कर सेने की फीस मिल जाती है।" एक अण्डे को सेने से प्रदीप को तीन सौ रुपए मिलते हैं।

प्रदीप एमू से जुड़े सभी काम करते है। और इनके मीट, तेल, नाखून, पंख सभी चीजों का व्यवसाय करते हैं। प्रदीप एमू से मुनाफे के बारे में बताते है "हम एक बच्चा तीन हजार का बेचते हैं और साल भर में इसका वजन करीब 40 किग्रा तक बढ़ जाता है। एक साल का होने के बाद इनकी कीमत दस हजार के करीब हो जाती है।" प्रदीप इसका मीट लगभग चार सौ रुपए किलो में बेचते हंै और इसके तेल से भी अच्छा मुनाफा कमाते हैं।
प्रदीप नये एमू पालको के लिए सुझाव देते है "अगर कोई एमू पालन व्यवसायिक तौर पर करना चाहता है तो शुरुआत में दस जोड़ों से कर सकता है इसके लिए अगर पैसे की कोई दिक्कत आती है तो वह बैंक से लोन भी ले सकता है और इसके लिए सरकार सब्सिडी भी देती है।

एमू मूलत: आस्ट्रेलिया का पक्षी है। यह लगभग 6 फीट तक ऊंचा होता है और इसका वजन 65 किग्रा तक हो सकता है। यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उड़ सकने वाला पक्षी है। इसके पंख भी काफी छोटे होते हंै। एमू के बारे में सबसे चौंकाने वाली बात है कि यह शून्य से 52 डिग्री तक के ऊंचे तापमान में रह सकता है। एमू पक्षी के पंख शुतुरमुर्ग की तरह के होते हैं। उड़ पाने के बावजूद एमू जमीन पर गजब का फु र्तीला पक्षी है। इसका शरीर मटमैला भूरापन लिये हुए होता है और इसके पंख चमकीले होते हैं। नर और मादा दोनों के गले के पास एक विचित्र सी थैली होती है जिसमें वह हवा भर कर आवाज निकालता है। एमू की टांगे मजबूूत और शक्तिशाली होती है जिसकी सहायता से यह पचास किमी प्रति घंटा की गति से भाग सकता है।

आम तौर पर नरों का शरीर मादाओं से ज्यादा बड़ा होता है पर एमू ऐसा नहीं होता। इनमें मादा एमू नर से बड़ी होती है। यह जमीन से कुछ ऊंची जगहों पर घोसला बनाता है, जिसमें मादा एमू : से लेकर बारह अण्डे देते हैं। इनके अण्डे हरे-नीले रंग के होते है। इन अण्डों को नर एमू ही सेता है और बच्चे निकलने पर नर ही इनकी देखभाल करता है।

एमू पालन के बारे में प्रदीप बताते है" एमू पालन में किसी भी अन्य पशुपालन से कम खर्च, लागत और मेहनत होती है। मुर्गी पालन में हमेशा बीमारियों का खतरा बना रहता है पर एमू की प्रतिरोधक क्षमता बहुत अच्छी होती है। इन्हें जल्दी बीमारियां नहीं लगती और ही फ्लू का खतरा होता है। ये कई दिनों तक बिना खाना-पानी के रह सकते हैं।

एमू का इतिहास
एमू आस्ट्रेलिया के जंगलों में पाए जाने वाला पक्षी है। लेकिन इसकी उपयोगिता को देखते हुए वहां की सरकार ने एमू को बड़े बाड़ों में रख कर पालतू बना लिया। अस्सी के दशक में अमरीका, फ्रंास, यूरोपीय देशों ने भी इसका पालन शुरू कर दिया और केवल अमरीका में ही करीब 90,000  एमू फार्म खुल गए। बाद में एमू पालन चीन, जापान, मलेशिया कोरिया और अन्य एशियाई देशों में भी शुरू हो गए।

भारत में एमू पालन साल 1996 में शुरू हुआ। आंध्र प्रदेश के केपी सत्यनारायणन सबसे पहले एमू पालन शुरू करने वाले में से थे। इसके अलावा महाराष्टï्र के रहने वाले गणेश काले ने एमू के 20 जोड़ों से 2001 में शुरुआत की तो बारामती के संदीप तावरे ने दस जोड़ों के साथ फार्म शुरू किया। संदीप ने बाद में अण्डे सेने वाली मशीन भी लगवाई। इस समय देश में चार एमू संघ हैं जिसके मुखिया 'समी तमबतकर' हैं।

कमाई के अवसर
एमू पालन की सबसे अच्छी बात है इसके सारे उत्पाद काम के होते है। बच्चे से लेकर व्यस्क होने तक यह फायदे का बना सौदा ही रहता है। इसके एक बच्चे की कीमत करीब 3000 रू की होती है, जो एक ही साल में लगभग 40 किलो का हो जाता है। चालीस किलो का होने पर यह बाजार में 10,000 रुपये तक का बिक जाता है।

मीट
एमू का मीट चिकन, मटन, तुर्की आदि की तुलना में काफी अच्छा माना जाता है क्योंकि यह 98 फीसदी कोलेस्ट्राल फ्री होता है, इसका मीट बड़ा मुलायम होता है जो सेहत के लिहाज से बहुत अच्छा रहता है और ये करीब 300 से 450 रुपये किग्रा तक बिक जाता है। अमरीकी हृदय संघ ने इसे दिल की सेहत के हिसाब से सबसे बढिय़ा बताया है। इसमें प्रोटीन, विटामिन-सी और आयरन भी बाकी मीट के मुकाबले ज्यादा होता है।

पंख :
इसके पंख बहुत मुलायम, एंटी एलर्जिक और एंटी इस्टेटिक होते हैं। इनका इस्तेमाल सजावटी सामान और सफाई करने वाले ब्रश को बनाने में किया जाता है। एक वयस्क एमू से करीब 400 ग्राम पंख मिलते है जिसकी कीमत दो सौ रुपये के आस पास हेाती है।

एमू की खाल भी है काम की 
इसकी खाल काफी हल्की और मुलायम लेकिन मजबूत होती है। अच्छी क्वालिटी  की खाल 700 से 1000 रुपये के आस-पास बिकती है। इसकी खाल से जूते, बैग, बेल्ट, पर्स और कार के सीट कवर बनते हैं  हर एमू से करीब हजार रुपये की खाल निकलती है। 

अण्डे के छिलके भी काम के 
इनके अण्डे के छिलके भी काम के होते है। ये सजावट के सामान, आर्टीफिशियल जेवर आदि चीजों को बनाने में काम आते हैं।

एमू का तेल 
एमू का तेल एंटीसेप्टिक और अन्य कई और खूबियों वाला होता है। यह मॉइस्चराइजर का काम भी करता है। यह तेल तीन से चार हजार रुपये लीटर तक बिक जाता है और हर एमू से करीब एक हजार रुपये का तेल निकलता है। कई वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार यह जोड़ों के दर्द में फायदा करता है।

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