Wednesday 8 May, 2013

अब आशा कार्यकर्त्रियों का होगा बीमा!

पंकज कुमार 


लखनऊ। 17 दिसंबर 2012 को कानपुर जिले के रसूलाबाद के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ठंड लगने से आशा बहू निर्मला भदौरिया की मौत हो गई थी। लेकिन शायद अब इन आशा बहुओं के दिन बहुर जाएं। केंद्र सरकार अब इन आशा बहुओं का बीमा कराने जा रही है। राष्ट्रीय  स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम)के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार केंद्र सरकार इन आशा बहुओं की समस्याओं को देखते हुए इनका बीमा कराएगी। 

उत्तर प्रदेश में आशा कार्यकर्त्रियों  को नियमित वेतन नहीं मिलता है जिसकी मांग वे लंबे समय से करती आ रही हैं। कुछ राज्यों में आशा बहुओं को राज्य सरकारें निश्चित वेतन देती हैं। जैसे राजस्थान सरकार 1000 रुपये, पश्चिम बंगाल सरकार 1300 रुपये और सिक्किम सरकार 3000 रुपये प्रतिमाह नियमित वेतन के रूप में आशा बहुओं को देती हैं । 

उत्तर प्रदेश में आशा बहुओं को नियमित वेतन न मिलने और सुविधाओं के अभाव के कारण  साल 2006 से अब तक लगभग 6000 आशा कार्यकर्त्रियों  ने काम छोड़ दिया है। उत्तर प्रदेश में यदि आशा कार्यकर्त्री  किसी गर्भवती महिला को प्रसव के लिए अस्पताल लेकर जाती है तो उसे केवल 600 रुपये और बच्चों के टीकाकरण पर 150 रुपये मिलते हैं। 

कानपुर देहात के सुनहैला गाँव की आशा कार्यकत्री सुनीता साहू अपनी समस्या बताते हुए कहती हैं , "हमे उचित पारिश्रमिक नहीं मिलता है, जो थोड़ा बहुत मिलता भी है उसमें कुछ हिस्सा नर्स और डॉक्टरों को भी देना पड़ता हैं ।"

 भारत सरकार ने साल 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना  के तहत ग्रामीण भारत स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए आशा बहू नियुक्त करने की शुरुआत की थी। साल 2012 तक इसके पूर्ण क्रियान्वयन का लक्ष्य  रखा था। साल 2011 तक भारत में कुल आशा कार्यकत्र्रियों की  संख्या 8,46,309 थीं। केवल उत्तर प्रदेश मे ही कुल 1,36,094  आशा कार्यकर्त्री  हैं, जो भारत  में सबसे ज्यादा हैं। भारत सरकार ने प्रति 1000 आबादी पर 1 आशा कार्यकर्त्री रखने का लक्ष्य रखा है, लेकिन उत्तर प्रदेश में 1,139 लोगों पर एक आशा कार्यकत्र्री है। 


गाँव के स्वास्थ्य को चमकाती 'आशा'



सुनहैला (कानपुर, उत्तर प्रदेश)। हनुमान साहू की पत्नी को बच्चा होने वाला हैं लेकिन आज-कल वो बेफिक्र हैं क्योंकि गाँव में आशा बहू जो आ गयी है। कानपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर सुनहैला गाँव के हनुमान साहू बड़े आराम से कहते हैं , ''मैं गाँव में दुकान चलाता हूं लेकिन जब से आशा बहू गाँव में आयी हैं तब से मैं बेफिक्र हूं। जब भी मुझे काम से बाहर जाना होता है मैं सब कुछ उन पर छोड़ देता हूं। मेरी पत्नी भी उन पर बहुत भरोसा करती है।''

हनुमान साहू की पत्नी वंदना साहू को तीसरा बच्चा होने वाला है वो कहती है कि ''मेरे पहले दो बच्चे भी आशा बहू के सहयोग से ही हुए थे। जब वो (पति ) नहीं होते थे तो आशा बहू ही मुझे अस्पताल ले जाती थी। मेरे चेक-अप से लेकर मेरी डिलिवरी तक उसने ही कराया। अब मेरा तीसरा बच्चा होने वाला है वो मेरा हाल-चाल पूछती रहती हैं। जब ज़रूरत पड़ती है तो वो मुझे पास के सरकारी अस्पताल भी ले जाती है।''

आशा बहू को कहीं आशा बहन तो कहीं आशा सहयोगिनी के नाम से भी जाना जाता है आशा का पूरा नाम होता है एक्रिडेटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट यानि 'मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता ' जिनके ऊपर पूरे गाँव के स्वास्थ्य की जि़म्मेदारी होती हैं। भारत सरकार ने साल 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना (एनआरएचएम) के तहत ग्रामीण भारत के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए आशा योजना कि शुरुआत की और साल 2012 तक इसके पूर्ण क्रियान्वयन का लक्ष्य रखा गया। साल 2011 तक भारत में आशा कार्यकर्त्रियों  की कुल संख्या 846309 थी। 136094 आशा बहुएं सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही थीं।

आशा वे स्थानीय महिलाएं होती हैं जो ग्रामवासियों को स्वास्थ्य के बारे में जागरुक करती हैं। आशा कार्यकर्त्री के प्रमुख दायित्व गर्भवती महिलाओं को अस्पताल जाकर बच्चे को जन्म देने के लिए प्रेरित करना, बच्चों के टीकाकरण की जानकारी देना, परिवार नियोजन के प्रति गाँव वालों को जागरुकता करना है। सुनहैला गाँव के ही 38 वर्षीय नुकुल सिंह कहते हैं कि ''गाँव के ज्यादातर लोग ज्य़ादा पढ़े-लिखे नहीं हैं, उनके लिए आशा बहू एक ज़रिया हैं गाँवों को अस्पताल से जोडऩे का। उसके आने के बाद गाँव कि  अधिकांश महिलाओं का प्रसव अस्पताल में ही होता है। सुनीता (आशा) की वजह से गाँव के लोग स्वास्थ्य के बारे में जागरुक हुए हैं उन्हें बहुत सी ऐसी चीज़ें पता चली हैं जो उन्हें पहले नहीं पता थीं।''

कुछ राज्यों जैसे कि राजस्थान और पश्चिम बंगाल ने पहल करते हुए आशा के लिए प्रति महीने निश्चित तनख्वाह निर्धारित की है। राजस्थान सरकार ने 1000 रूपये प्रति माह और पश्चिम बंगाल सरकार ने इस नये वित्तीय वर्ष से 1300 रूपये प्रति माह की तनख्वाह आशा कार्यकत्र्रियों के लिए निर्धारित की है। सुनहैला गाँव के ही नुकुल सिंह कहते हैं कि 'हमारे गाँव में आशा बहू बहुत ही अच्छा काम कर रही हैं। शायद इसलिए कि उसकी कोई निश्चित तनख्वाह नहीं है जब काम करेगी तभी तो उसे मिलेगा।'

लेकिन सुनहैला गाँव की आशा सुनीता इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती हैं वो कहती हैं 'हम बहुत मेहनत करते हैं। गाँव के लोग भी हमारे काम से खुश हैं लेकिन हमे वेतन नहीं मिलता है। कभी-कभी तो हमे मिलने वाले पैसे में भी डॉक्टर को हिस्सा देना पड़ता है। हम अपनी मांगो को लेकर बहुत बार दिल्ली, लखनऊ गये लेकिन हमारी कोई सुनता ही नहीं है।'

आशा कार्यकर्त्रियों  की जिम्मेदारियां


  • आशा का मुख्य काम होता है गाँव में लोगों की स्वास्थ्य सम्बन्धी देखभाल करना। 
  • आशा को गर्भवती महिलाओं का खास तौर पर ध्यान रखना होता है। उन्हें सुरक्षित प्रसव, पूरक आहार, टीकाकरण, गर्भनिरोधक और बच्चों की देखभाल के सम्बन्ध में गाँववालों को जागरुक करना होता है।
  • आशा को गाँव की महिलाओं को प्रसव के लिए अस्पताल जाने के लिए प्रोत्साहित करना होता है। 
  • गाँव में यदि किसी को दस्त, बुखार और मामूली चोट होती है तो आशा को उसका प्राथमिक उपचार करना होता है। 
  • आशा को गाँव में राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत क्षय रोगियों को डॉट्स की दवा वितरित करनी होती है। 
  • उन्हें गाँव में होने वाले जन्म-मृत्यु के बारे नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र को बताना होता है। 
  • गाँव में फैलने वाली किसी भी बीमारी के बारे में उन्हें स्वास्थ्य केंद्र को सूचित करना होता है। 
  • आशा को गाँव में शौचालय के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए लोगो को प्रोत्साहित करना होता है। 


आशा को मिलने वाला पारिश्रमिक 

  • नवजात शिशु के नियमित टीकाकरण कराने पर आशा को 150 रुपए मिलते हैं। 
  • पल्स पोलियों कार्यक्रम के लिए 50 रुपए मिलते हैं। 
  • हर महीने में होने वाली मीटिंग्स में भाग लेने के लिए 200 रुपए मिलते हैं। 
  • जननी सुरक्षा योजना के तहत आशा को 600 रुपए मिलते हैं जिनमे से 150 रुपए गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाने के लिए, 200 रुपए ग्रामीण क्षेत्र में लोगो को डिलिवरी के लिए अस्पताल जाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए और 250 रुपए ट्रांसपोर्ट का खर्च मिलता है। 
  • महिलाओं और पुरुषों को नसबंदी के लिए प्रोत्साहित करने पर 100 रुपए मिलते हैं। 
  • गाँव में स्वास्थ चिंताओं को लेकर समूह बैठक करने पर 100 रुपए मिलते हैं।

आशा के लिए योग्यताएं 

आशा को कम से कम 8वीं पास होना चाहिए। आशा के लिए उम्र सीमा भारत सरकार ने 25-45 रखी है जबकि कुछ राज्य सरकारों ने उम्र सीमा में छूट दी है, राजस्थान में आशा के लिए 21 से 45 वर्ष की उम्र सीमा है। आशा के चयन में शादीशुदा, विधवा महिलाओं, तलाकशुदा महिलाओं को तरजीह दी जाती है।

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