Monday 27 May, 2013

क्रिकेट को जुआंघर बनने से बचाना होगा

ऐसे क्रिकेट से तो गिल्ली डंडा भला जिसमें दर्शकों से धोखा और देश से गद्दारी करने का अवसर नहीं रहता।

पिछले कुछ सालों में क्रिकेट के प्रति आकर्षण और सम्मान बहुत बढ़ा है। गाँव के गलियारों में, खेतों में, बागों में बच्चे क्रिकेट खेलते देखे जा सकते हैं। उन सभी क्रिकेट प्रेमियों को बड़ी निराशा हुई होगी यह पढ़कर कि श्रीसंत सहित क्रिकेट के अनेक खिलाडिय़ों से मैच फिक्ंिसग संबंधी पूछताछ और उन पर अपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। कइयों को जेल जाना होगा। वैसे इसके पहले भी दक्षिण अफ्रीकी टीम के हैन्सी क्रोन्ये और भारतीय खिलाड़ी मोहम्मद अजहरुद्दीन तथा पाकिस्तानी और आस्ट्रेलियाई खिलाडिय़ों पर भी मैच फिक्सिंग के इल्जाम लगे थे। आखिर क्रिकेटरों पर ही ऐसे इल्जाम क्यों लगते हैं, हॉकी, फुटबाल, बेसबाल या कबड्डी खिलाडिय़ों पर क्यों नहीं लगते? 

क्रिकेट का जन्म स्थान इंग्लैंड माना जाता है परन्तु भारत में खेला जाने वाला गिल्ली डंडा भी कुछ ऐसा ही होता है। आरंभ में गिल्ली डंडा की तरह ही क्रिकेट में भी पैसे का कोई काम नहीं रहा होगा। बच्चों द्वारा शुद्ध रूप से मनोरंजन के लिए खेला जाने वाला क्रिकेट जब क्लबों के माध्यम से मैच और टूर्नामेंट की दुनिया में प्रवेश कर गया तो पैसे की जरूरत पड़ी होगी। आज राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह खेल बहुत ही व्यापक रूप से खेला जाता है। हमारे देश में ध्यानचन्द और केडी सिंह बाबू द्वारा खेला जाने वाली हॉकी ना जाने कब और कैसे अपनी लोकप्रियता खो बैठी।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि क्रिकेट में बेतहाशा पैसा है और खूब सट्टेबाजी और जुआं होता है। बड़े-बड़े नेताओं और अभिनेताओं की इस खेल में इतनी रुचि होना इसका सुबूत है। इतनी दौलत देखकर खिलाडिय़ों की भी नीयत डोल जाय तो कोई आश्चर्य नहीं। इस खेल की दूसरी विशेषता है इसमें 5 दिन या पूरा एक दिन लगता है। बेइमानी के करतब दिखाने के लिए बहुत समय रहता हैं। खैर अब तो आईपीएल भी आ गया है। तीसरी खास बात यह है कि पूरी टीम पूरे समय एक साथ नहीं खेलती, इसलिए कुछ लोग जो मैदान में नहीं होते उनके पास संदेश भेजने और प्राप्त करने के पर्याप्त अवसर रहते हैं। ऐसे क्रिकेट से तो गिल्ली डंडा ही भला जिसमें दर्शकों से धोखा और देश से गद्दारी करने का अवसर नहीं रहता।

कहते हैं कि क्रिकेट रईसों का खेल है परन्तु विचार करने की बात है कि धनी देश जैसे-अमेरिका, रूस, चीन, जापान, और फ्र ांस क्रिकेट नहीं खेलते। शायद इसलिए कि उनके लिए समय की कीमत है और वे पांच दिन बैठकर क्रिकेट देखते हुए समय नहीं गंवाना चाहते। इसके अलावा दूसरा कोई कारण समझ में नहीं आता कि वे क्रिकेट क्यों नहीं खेलते? क्रिकेट खेलने वाले देशों में प्रमुख हैं-भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, वेस्टइंडीज, इंग्लैंड और केन्या। इन देशों में एक ही समानता है कि ये देश इंग्लैंड के अधीन रह चुके हंै। वैसे यह खेल बहुत समय खाता है और आम आदमी के लिए व्यायाम का काम भी नहीं करता। हमें अमेरिका और चीन जैसे समृद्ध देशों की सोच से लाभ उठाना चाहिए। 

भारत में आईपीएल आरंभ होने के बाद तो क्रिकेट खिलाडिय़ों की नीलामी होने लगी, उनकी कीमत लगाई जाने लगी और उन्हें अपनी कीमत का एहसास भी होने लगा। राष्ट्रीय टीम में खेलने का मौका मिले या ना मिले या फिर उसके लिए ताकत बचे या ना बचे परन्तु आईपीएल में खेलने का मौका नहीं जाना चाहिए। क्रिकेट खिलाडिय़ों के लिए जैसे राष्ट्रीय सम्मान की अपेक्षा पैसे की कीमत अधिक है। ऐसी परिस्थिति में तो जैसा शरद यादव ने सुझाया है कि आईपीएल को समाप्त ही कर देना चाहिए।

एक घंटे में समाप्त होने वाले खेल श्रेयस्कर हैं जैसे हॉकी जिसे भारत का राष्ट्रीय खेल भी कहा जाता है, फुटबाल, खो-खो, कबड्डी और कुश्ती जो बिल्कुल खर्चीले नहीं होते, इनमें सट्टेबाजी और जुआंबाजी की फितरत के लिए समय ही नहीं रहता। कम समय में तेज गति से खेले जाने वाले खेल गाँवों में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए और गाँववालों को बीमारियों से बचाने के लिए बहुत जरूरी हो गए हैं, क्योंकि अब गाँव के लोगों को खेती में मेहनत करने की आवश्यकता नहीं रहती, मशीने मेहनत करती हैं। यदि निठल्ले बैठकर क्रिकेट को मनोरंजन के लिए देखना हो तो 'लगान' फिल्म देखकर यह काम पूरा हो सकता है। पांच दिन में काम के तमाम घंटे 'मैन आवर्स' बर्बाद करने की आवश्यकता नहीं। 
                                   

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