Monday 27 May, 2013

डिजिटल युग में पानी, तेरा रंग कैसा? 'चेहरे के उतरे हुए रंग जैसा'

एक बहुत ही पुराना फिल्मी गाना है- 'पानी रे पानी, तेरा रंग कैसा। जिसमें मिला दो लगे उस जैसा।' बचपन में कई बार सुना था। तब मैं नादान था, गाने का असल मतलब  समझ नहीं पाया। अब पल्ले पड़ा है। हर आदमी की जिंदगी में अक्सर ऐसा होता है। जैसे - जैसे उम्र बढ़ती जाती है, इंसान जरूरी बातें भूल जाता है और बेकार की बातों में फंसा रह जाता हैं। इसी प्रकार जब भी मैं अपने आस-पास देखता हूं तो पाता हूं कि हमारा समाज आधा पानी में है। साहित्य, कला, संगीत, फिल्म, घर, बाजार, मीडिया हो या पॉलिटिक्स, हर जगह पानी से भरे व्यक्तित्व दिखते हैं।'

इन्हीं लोगों के बीच से अक्सर हमे लोगों से ये भी सुनने को मिल जाता है कि पहले तेल को लेकर लड़ाइयां होती थीं और आने वाले दिनों में पानी का अकाल होगा, तब फिर पानी को लेकर लड़ाइयां होंगी। लेकिन, मेरे  हिसाब से ये लोग बिल्कुल गलत हैं क्योंकि पानी को लेकर लड़ाइयां तो शुरू हो चुकी हैं। आज पानी हमारे लिए बहुत बड़ा मसला बन चुका है। कृषि प्रधान देश भारत आर्थिक प्रगति के रास्ते पर जरूर है, लेकिन अगर पानी नहीं रहेगा तो सोचिए विकास की गाड़ी आगे कैसे बढ़ेगी? आज हमारे बीच असल मुद्दा यह है कि हम और आप क्या कर सकते हैं।

एक ज़माना था जब हम पानी की पूजा किया करते थे। पहले पानी सामुदायिक इस्तेमाल की चीज़ होती थी। लोग पानी के स्रोत के पास जाकर पानी भरते थे। लेकिन, आज पानी हमारे और आपके पास आ जाता है। अब तो हमारे बाथरूम में भी पानी होता है। लेकिन, कभी हमने सोचा कि ऐसी कीमती चीज़ को हम कैसे संभाल कर रखें? शायद, नहीं। अगर ऐसा होता तो आज पानी के लिए हाहाकार न होता।

आज देश में पानी का हाल यह है कि दस करोड़ लोग गंदे पानी की वजह से बीमारियों के शिकार हैं। भूजल रासायनिक तत्वों जैसे आर्सेनिक फ्लोराइड से प्रदूषित हैं। देश के 640  जिलों में 167 जिले के लोग इन रासायनिक तत्वों के कहर की चपेट में हैं। देश के 15 राज्यों के कई इलाकों में भूजल स्तर चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की मानें तो देश की राजधानी दिल्ली की ज़मीन सूख चुकी है।  दिल्ली के 93 फीसदी इलाके का भूजल खतरे के निशान से बहुत नीचे तक पहुंच चुके है। इसके अलावा बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में भूजल स्तर तेजी से नीचे गिरता जा रहा है। यही नहीं  दुनिया में सबसे ज्यादा बरसात वाला शहर चेरापूंजी में भी लोग पानी का अभाव झेल रहे हैं। इस स्थिति के लिए हम और हमारी सरकारें ही पूरी तरह जिम्मेदार हैं। ऐसे में हम अगर समय रहते नहीं चेते तो गंभीर नतीजे भुगतने पड़ेंगे।

दरअसल, इन समस्याओं और वजहों पर गौर करते हैं तो हम पाते हैं कि भारत में पानी के प्रबंधन को लेकर समझ ही नहीं है। सरकार द्वारा जुटाए गए आंकड़ें भी सच्चाई से कोसों दूर हैं। जिसका मुख्य कारण है समाज की भागीदारी का न होना। आंकड़े इक्_ा करते समय सरकारी अफसर न हीं किसी ग्रामीण से पड़ताल करते हैं और न हीं गाँव में मौजूद जल के स्रोतों का पूरी तरह से सर्वेक्षण कर पाते हैं।

अक्सर ज्यादातर लोग ये भी समझते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही पानी की किल्लत होने लगी है। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। इसका कारण है कि भारत में खेती ग्राउंड वाटर से होती है- ज़मीन से पानी निकाला जाता है। पानी की समस्या जलवायु परिवर्तन के कारण नहीं हुई है, बल्कि इसके लिए मुख्य जिम्मेदार गलत आंकड़े और उचित जल प्रबंधन का नहीं होना है।

जल विशेषज्ञ भी मानते हैं कि सरकार के पास जल से जुड़ी न तो कोई व्यापक नीति है और न ही इस पर कोई गंभीर काम हो रहा है। शहरों में पानी की बर्बादी अधिक होती है और ये शहरों में पानी की कमी का एक बड़ा कारण है। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए हमने बेयरफुट कॉलेज के साथ मिलकर नीरजाल प्रोजेक्ट के तहत राजस्थान के तीन जिलों में करीब 225 गांवों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के दौरान गांव में मौजूद जल स्रोतों, जल स्तर औऱ जल गुणवता की विस्तृत जानकारी इक्टठा की, जिससे पता चला कि किस गांव में पानी की मात्रा, उसकी गुणवत्ता और उपलब्धता क्या है। अगर कोई गाँव सूखा ग्रस्त है तो उसका मुख्य कारण क्या हो सकता है? वहां जल संचय के कौन से तरीके अपनाए जा सकते हैं, वगैरह?

आज इसी नीरजाल के बदौलत उन गांवों में पानी इक_ा करने के लिए वाटर हार्वेस्टिंग, तालाब, कुंए जैसे कई उपाए किए गए हैं, जिससे पानी का स्तर भी बढ़ गया है और पानी की गुणवता का भी पता चलता रहता है और सबसे सराहनीय बात यह है कि आज उसी गांव की अनपढ़ महिलाएं और पुरुष मिलकर इस काम को अंजाम दे रहे हैं, जो कंप्यूटर में आंकड़ें इक_ा करने से लेकर जल परीक्षण भी कर लेते हैं। 

इसी प्रकार, आज डिजिटल युग में बिखरे आधे-अधूरे आंकड़ों को इक_ा करने और जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए सरकार देश के हर गाँवों में स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित कर  नीरजाल जैसे प्रोजेक्ट को हर पंचायत में लागू  करे, तभी जल संकट की समस्या से निजात मिल सकती है। वरना, भौतिकता में डूबा मानव का यह वर्तमान, उसे भविष्य के सूखे समंदर में डुबा देगा। फिर वह किसी सूखे कुएं के मेंढ़क जैसा टर्राएगा और यही गाने के लायक रह जाएगा कि 'पानी रे पानी, तेरा रंग कैसा? चेहरे के उतरे हुए रंग जैसा।'

(लेखक, डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य हैं।)

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