Tuesday 23 April, 2013

सरकारी खरीद केंद्रों पर कमीशनखोरी से परेशान होते हैं किसान


अमूल्य रस्तोगी

लखनऊ/बाराबंकी। शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर उत्तर में बख्शी का तालाब एयरफोर्स स्टेशन के पास विजय सिंह (44) ने अपनी 20 एकड़ ज़मीन पर लगभग 330 कुंटल गेहं उगाया है। अपनी इस फसल को वह सरकारी गेंहू खरीद केंद्र के बजाय मंडी में बेचना चाहते हैं। ऐसा वह इसलिए नहीं कर रहे कि मंडी में ज्यादा मुनाफा मिल रहा है, बल्कि सरकारी खरीद केन्द्रों पर  हो रही कमीशनखोरी इसकी सबसे बड़ी वजह है। 

विजय सिंह कहते हैं, "पिछली बार जब मैं अपना गेंहू सरकारी खरीद केंद्र पर ले गया तो पहले वहां काफी लंबी लाइन लगानी पड़ी। जब मेरा नंबर आया तो सेंटर इंचार्ज को 325 कुंतल गेंहू से लगभग 10 हजार का गेंहू तौर कमीशन देना पड़ा। इसके अलावा, पल्लेदारी और गेंहू की सफाई भी देनी पड़ी थी।"

सरकारी अफसरों की सुस्ती और खरीद केद्रों में हो रही कमीशनखोरी के चक्कर में ज्यादातर किसान इन सेंटरों पर अपना गेहूं बेचने के बजाय मंडी में बेचना पसंद करते हैं। प्रदेश सरकार ने इन गेहूं खरीद केंद्रों को सख्त हिदायत दी है कि अगर उनके खिलाफ शिकायतें पाई गई तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी। कृषि उत्पादन आयुक्त आलोक रंजन ने राज्य में गेहूं खरीद में लगीं आठ क्रय एजेंसियों के महाप्रबंधकों से कहा है कि शीर्ष अधिकारी इन केंद्रों का भ्रमण करें और साथ ही प्रत्येक केन्द्र पर एक व्यक्ति की के न्द्र इंचार्ज के रूप में तैनाती सुनिश्चित की जाए। 

प्रदेश में एफसीआई, पीसीएफ, यूपीएग्रो, यूपीएसएस, एसएससी, नैफेड, कल्याण निगम और एनसीसीएफ के 5925 केन्द्रों पर 60 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा गया है। 

एक बीघे खेत के मालिक जिला बाराबंकी के तेजपुरवा गाँव के किसान चंद्रकेत (45) कहते हैं, "सरकारी खरीद केन्द्रों पर तो बड़े किसान ही जाते हैं, हमारी तो बारी ही नहीं आती। अगर सेंटर इंचार्ज मजबूरी में गेहूं खरीदता भी है तो पैसे देने में कई दिन लग जाते हैं। जिससे दूसरी फसल लगाने में देर हो जाती है।" 

छोटे किसानों को समय पर पैसा न मिलने पर उन्हें अगली फसल लगाने में दिक्कत होती है। हालांकि इस बार सरकार ने कुछ जरूरी कदम उठाए हैं, कृषि उत्पादन आयुक्त ने निर्देश दिया है कि सभी केन्द्रों पर कम से कम पांच दिनों तक गेहूं खरीदने के लिए धन सुनिश्चित जरूर किया जाए।  साथ ही हर केन्द्र पर उचित मात्रा में बोरे, इलेक्ट्रॉनिक तराजू आदि की भी व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं। 

कई किसान तो इन सरकारी केंद्रो पर कमीशनखोरी के चलते पैदा किए जाने वाले झंझटों के चलते नहीं जाते। बाराबंकी के ही दौलतपुर गाँव के में रहने वाले रोहित वर्मा (21) कहते हैं, "सरकारी केद्रों पर गेंहू बेचने में बहुत झंझट होता है। मंडी में हमने गेंहू बेच कर फौरन अपना कर्जा उतार दिया था। पैसा कम मिला, पर न तो किसी तरह की कोई कागज की जरूरत पड़ी, न ही कई घंटे लाइन लगानी पड़ी।" 

देश में सबसे ज्यादा गेंहू का उत्पादन उत्तर प्रदेश में ही होता है। जो देश में कुल पैदा होने वाले गेंहू का एक तिहाई है। यूपी में गेंहू का सर्मथन मूल्य 1350 रुपए प्रति कुंतल है, जबकि मध्य प्रदेश जो कि देश के कुल उत्पादन का 10 फीसदी पैदा करता है, वहां सर्मथन मूल्य 1500 रुपए प्रति कुंतल है। सरकार ने गेंहू का सर्मथन मूल्य तो 1350 रुपए प्रति कुंतल तो कर दिया है पर छोटे किसानों को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि वह सरकारी केद्रों आने वाली समस्याओं के चलते वहां नहीं जाना चाहते। इसके बजाय वह मंडी में कुछ कम रेट पर बेचना ज्यादा अच्छा मानते हैं। 

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