Tuesday 23 April, 2013

गाँवों की दहलीज पर डिजिटल मीडिया की दस्तक


13 मार्च 2013, यानि रेड रिक्शा रेवलूशन यात्रा के पांचवे दिन जब मुझसे 23 साल की राखी पालीवाल का परिचय एक उप-सरपंच के तौर पर कराया गया तो मैं हैरान रह गया। जींस औऱ कुर्ते में मोटरसाइकिल की सवारी करते देख राखी को पहली नजर में कोई भी शहरी लड़की समझने की भूल कर बैठेगा। लेकिन, असल में वो राजस्थान के राजसमंद जिले के छोटे से गाँव उपली-ओदन की उप-सरपंच और बदलते भारत का उभरता हुआ चेहरा है।

राखी पालीवाल, शायद भारत की सबसे कम उम्र की और एक मात्र लॉ की पढ़ाई करने वाली उप-सरपंच है। उसकी जिंदगी में पढ़ाई की जितनी अहमियत है, उससे कहीं ज्यादा गाँव की सेवा के लिए उसमें समर्पण की भावना है, जो हमारी मुलाकात के दौरान बातचीत से बखूबी जाहिर हो चुका था।

इसी मुलाकात के दौरान राखी का कहना था, जिस  गाँव में पली-बढ़ी-खेली उसे जब सक्षम होकर कुछ देने की बारी आई तो मुंह कैसे मोड़ लूं? ऐसा तो सब करते हैं, लेकिन मैंने अपने ही गाँव में रहकर उसे सवांरने का निर्णय लिया है। और एक दिन मैं अपना गाँव बदल दूंगी।

गाँव की तकदीर बदलने का फैसला राखी ने उसी दिन कर लिया था, जब उसे स्कूल में एक प्रतियोगिता के दौरान एक पर्ची मिली, जिसमें लिखा था, च्च्अगर आप सरपंच होते तो क्या करते?ज्ज् उसे कतई पता नहीं था कि यह प्रश्न उसके भविष्य की ओर इशारा कर रहा था।

हालांकि, वक्त गुजरने के बाद जब राखी ने अपने माता-पिता से पंचायत का चुनाव लडऩे की इच्छा जाहिर की, तो उसे काफ़ी  विरोध का सामना करना पड़ा।  माता-पिता ही नहीं गाँववालों ने भी समझाने की कोशिश की। लेकिन, राखी ने किसी की नहीं सुनी और चुनाव मैदान में कूद पड़ी। औऱ फि र एक दिन राखी पालीवाल चुनाव जीतकर पंचायत की उप-सरपंच बन गई। अच्छी बात ये है कि सरपंच राखी की बहुत मदद करता है और उसे प्रोत्साहित भी करता है।

जुझारू व्यक्तित्व वाली राखी ने जिम्मेदारी संभालते ही ना सिर्फ  युवाओं के लिए बल्कि विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं और युवतियों में एक नई चेतना शक्ति का संचार किया। आजकल राखी ने खुले में प्रसाधन के खिलाफ गाँव में अभियान चला रखा है। जिसके लिए राखी रोजाना सुबह 5 बजे उठकर पूरे गाँव का दौरा करना कभी नहीं भूलती और खुले में प्रसाधन करने वालों से मिलकर उन्हें इस बात के लिए प्रेरित करती है कि वो अपने घर में ही शौचालय बनाएं ताकि गाँवों में गंदगी नहीं फैले। राखी को उम्मीद है कि इस अभियान के बदौलत साल के अंत तक गाँव के हर घर में एक शौचालय होगा।

इस काम के लिए राखी ने सोशल मीडिया के साथ-साथ हर नई तकनीकों का भी सहारा लेती है, ताकि वो दूरदराज बैठे लोगों तक आसानी से अपनी बात पहुंचा सके। आज राखी फेसबुक के जरिए पंचायत की हर गतिविधि की जानकारी दूसरों तक पहुंचातीं भी है। लेकिन, एक कदम और आगे बढ़ाते हुए अब राखी अपने पंचायत को एक डिजिटल पहचान दिलाना चाहती है, जिसका अपना एक अलग वेबसाइट हो। पंचायत के वेबसाइट पर ही पंचायत समिति द्वारा किए जा रहे कार्यों, फैसलों की जानकारी उपलब्ध हो, ताकि गाँववालों को पंचायत दफ्तर की चक्करों से निजात मिल सके और पूरी जानकारी घर बैठे या साइबर कैफे जाकर मिल जाए।

हालांकि, राखी की कोशिश और दूरदर्शिता सराहनीय जरूर है, लेकिन भारत जैसे देश में घर-घर को इंटरनेट से जोडऩा एक बड़ी चुनौती है। क्योंकि, आज भी ज्यादातर ऐसे पंचायत और गाँव हैं जहां इंटरनेट की सुविधा बिल्कुल नहीं है। हालांकि, इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार लगातार इस कोशिश में जुटी है कि कैसे सभी गाँवों को इंटरनेट की सुविधा प्रदान कर देश की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके।

पिछले महीने मार्च में मेरे एक लेख में भी इस बात का जिक्र था कि कैसे डिजिटल पंचायत से बदल सकती है भारत की तस्वीर। पिछले कई सालों से डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन लगातार इस कोशिश में जुटा है कि कैसे हर पंचायत को ऑनलइन किया जा सके। ताकि गाँव के लोग वहां जाकर डिजिटल संसाधनों का इस्तेमाल कर ए अपने समाज, व्यासाय, सरकारी स्कीम की पूरी जानकारी हासिल कर सकें।

देश में 2 लाख 45 हजार 5 सौ 25 पंचायत कार्यालय हैं। इनमें 525 जिला पंचायतों के, 6 हजार 2 सौ 99 ब्लॉक पंचायतों के और 2 लाख 38 हजार 644 ग्राम पंचायतों के कार्यालय हैं। पंचायती राज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक से इनमें से सिर्फ 58 हजार 291 के पास ही कंप्यूटर हैं। इनमें राखी पालीवाल की पंचायत भी शामिल है।
हालांकि, इस सिलसिले में 12 अप्रैल 2013 को एक और प्रगति हुई है। देश के नौ राज्यों व एक केंद्र शासित प्रदेश, केंद्र सरकार और भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क के बीच तीन पक्षीय समझौता हुआ है। जिससे पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर केबल्स से जोडऩे का काम अब तेज हो सकेगा। इससे ग्राम पंचायत स्तर पर ई-गवर्नेस को लागू किया जा सकेगा। इससे पहले भी 15 अन्य राज्यों से तीन पक्षीय समझौता हो चुका है, और अब नए समझौते के बाद राज्यों की सूची बढ़कर 24 हो गई है।

इस समझौते के बाद संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने भी इंटरनेट की अहमियत पर जोर देते हुए कहा कि गाँवों में कनेक्टिविटी, ग्रामीण जनता के सशक्तिकरण में बेहद अहम रोल अदा करेगी। यह न सिर्फ  सब्सिडी बोझ को कम करेगा, बल्कि जन सेवाओं की गुणवत्ता को बेहतर करेगा और प्रशासनिक खर्चे को भी काफ़ी  हद तक रोक देगा।

(लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन  के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के भी सदस्य हैं।)

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