Tuesday 23 April, 2013

गर्मियों में बेहतर सेहत और राहत दिलाते हैं ये फल



दीपक आचार्य
वनस्पति वैज्ञानिक 



गर्मियों की चिलचिलाती धूप अक्सर तबीयत बिगाड़ देती है। ठंडे-बुलबुले सोडायुक्त पेय थोड़े समय के लिए राहत जरूर दे सकतें हैं लेकिन शरीर पर इनके दुष्परिणामों का भुगतान देर सवेर तय होता है। प्रकृति ने हमारे लिए वन संपदा के नाम पर अनेक ऐसे उपाय दिये हैं जिनकी मदद से हम अपनी सेहत की देखभाल स्वयं कर सकते हैं। 

कितनी ही गर्मी क्यों ना हो, यदि हम अपनी दिनचर्या में पारंपरिक पेय और फलों को सम्मिलित कर लें तो धूप की तपिश से होने वाले शारीरिक विकारों पर आसानी से काबू पाया जा सकता है। गर्मी का मौसम आ चुका है और आए दिन हम लू के थपेडों की चर्चा सुनते और पढते रहेंगे किंतु यदि हम पहले से ही सावधान हो जाएं तो संभव है चल रहे इस गर्मी के मौसम में काफी हद तक हम अपनी सेहत को कमजोर होने से बचा पाएंगे और शायद लू के थपेड़ों की मार हम पर नहीं पड़ेगी। अब जब गर्मी के मौसम की बात चल रही है तो 'गाँव कनेक्शन के इस अंक में चर्चा करते हैं कुछ उन फलों की जो इस मौसम में प्रचुरता से मिलते हैं, जहाँ एक ओर ये स्वाद इंद्रियों को आनंद देते हैं वहीं अनेक तरह के  शारीरिक विकारों को भी दूर करने में सक्षम होते हैं। आदिवासी अंचलों में पाए जाने इन फलों को शहरी  बाजारों में भी बिकता हुआ पाया जा सकता है। आदिवासी हर्बल  जानकार इन फलों को गर्मियों के लिए उत्तम मानते हैं और कई तरह के विकारों के निपटने के लिए अपने पारंपरिक हर्बल फार्मुलों में इनका उपयोग भी करते हैं। इस लेख में कुल 10 फलों का जिक्र किया जाएगा, इस अंक में हम बेल, पपीता, कटहल, जामुन और तेंदू के  बारे में जानेंगे। 

फलों के महत्व को हम बचपन से सुनते आए हैं लेकिन कभी गहराई से इनके औषधीय गुणों के बारे मे हमने जानने की कोशिश नहीं की है। आदिवासियों की मान्यता होती है कि ऐसा कोई भी रोग नहीं हैं जिसका इलाज संभव नहीं किंतु वनस्पतियों की सही जानकारी, सही मात्रा और सही उपलब्धता ना हो पाने के कारण हमें परिणाम नहीं मिलते हैं। आज आधुनिक विज्ञान आगे आकर इन आदिवासी नुस्खों से जुड़े दावों पर काम करे, कारगर नुस्खों को उत्पाद के तौर पर बाजार लाया जाए तो आम जनों तक सस्ती, सुलभ और कारगर दवाएं पहुँच सकेंगी। 



बेल (एजिल मारमेलस)

मंदिरों, आँगन, रास्तों के आस-पास प्रचुरता से पाये जाने वाले बेल वृक्ष की पत्तियाँ शिवजी की आराधना में उपयोग में लायी जाती हैं। इस वृक्ष का वानस्पतिक नाम एजिल मारमेलस है। बेल के फलों का शर्बत बड़ा ही गुणकारी होता है। यह शर्बत कुपचन, आँखों की रौशनी में कमी, पेट में कीडे और लू लगने जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिये उत्तम है। गर्मियों में बेल का फल मानो एक वरदान है जिसके सेवन से धूप की तपिश और लू के थपोड़ों से शरीर को बचाया जा सकता है। 

 बेल के कच्चे फल और पत्तियों को गौ-मूत्र में पीस लिया जाए और नारियल तेल में इसे गर्म कर कान में डाला जाए तो बधिरता दूर हो सकती है। जिन्हे हाथ-पैर, तालुओं और शरीर में अक्सर जलन की शिकायत रहती हो उन्हे कच्चे बेल फल के गूदे को नारियल तेल में एक सप्ताह तक डुबोए रखने के बाद इस तेल से प्रतिदिन स्नान से पूर्व मालिश करनी चाहियेए जलन छूमंतर हो जाएगी।


 पपीता

पपीता न सिर्फ  एक फल है बल्कि औषधीय गुणों का खजाना भी है। इस फल में पपैन, प्रोटीन, बीटा-केरोटीन, थायमिन, रीबोफ्लेविन और कई तरह के विटामिन्स पाए जाते हैं। गर्मियों के पके पपीते को खाना हितकर माना जाता है, इसके जूस को पीने से शरीर में ताजगी और स्फूर्ति बनी रहती है और चिलचिलाती गर्मी में भी यह शरीर के तापमान को नियंत्रित किए रहता है। फलों से निकलने वाले दूध को बच्चों को देने से पेट के कीड़े मर जाते है और बाहर निकल आते है। पपीते के फल को तोडऩे पर इसकी डंठल से निकले रस में दूध और मिश्री मिलाकर रात को पीने से अनिद्रारोग में फायदा होता है। पपीता पित्त नाशक, वीर्यवर्धक और एक उत्तम पाचक फल है। पातालकोट के आदिवासी भुमकाओं के अनुसार पपीते के बीजों को चबाने से आँखों की रौशनी बढ जाती है। कच्चे फलों से निकलने वाले दूध को बताशे के साथ लेने से दिल के रोगियों को फायदा होता है। डाँग-गुजरात के आदिवासी हर्बल जानकार जिन्हे भगत कहा जाता है, कच्चे पपीते को चीरा लगाकर उसका दूध एकत्र कर लेते है और इसे धूप में सुखाकर चूर्ण बनाते है। इनके अनुसार इस चूर्ण का प्रतिदिन सेवन उच्च रक्तचाप में लाभकारी होता है और माना जाता है कि इसी चूर्ण के सेवन से अस्थिरोग में भी आराम मिलता है। विरेचक होने की वजह से पपीते का सेवन गर्भवती महिलाओं के लिये वर्जित माना जाता है।



तेंदू (डायोस्पोरस मेलानोजायलोन)

मध्यभारत के वनों में प्रचुरता से पाए जाने वाले फल तेंदू का वानस्पतिक नाम डायोस्पोरस मेलानोजायलोन है। इसे आम बोलचाल में गरीबों का फल कहा जाता है। आदिवासी गर्मियों में घर से निकलने से पहले तेंदु के पके फलों को खाते हैं ताकि गर्मी के प्रकोप से इनकी सेहत को कोई नुकसान ना हो। फलों का रस तैयार कर खून की कमी वाले रोगियों को दिया जाता है, ये भी माना जाता है कि टैनिन रसायन की बहुतायत होने की वजह से इस रस को घाव पर डाला जाए तो घाव जल्दी सूख जाता है। सूखे फलों को जलाकर इसके धूँए को दमा के रोगी को सूँघने कहा जाता है, माना जाता है कि दमा में यह काफी राहत देता है। गर्मियों में अक्सर होने वाली पेशाब की जलन में तेंदु के पके फलों का रस बेहद फायदा करता है। पके  फलों को पौरूषत्व देने वाला माना जाता है। आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार जो तीन महिने तक लगातार इसके एक दो फलों का सेवन प्रतिदिन करता है, उसकी नपुंसकता दूर हो जाती है।

कटहल

ग्रामीण अँचलों में सब्जी और फल के तौर पर खाया जाने वाला कटहल कई तरह के औषधीय गुणों से भरपूर है। कटहल का वानस्पतिक नाम आर्टोकार्पस हेटेरोफिल्लस है। कटहल के फलों में कई महत्वपूर्ण प्रोटीन्स, कार्बोहाईड्रेड्स के अलावा विटामिन्स भी पाए जाते हैं। पके हुए फलों को खाने से शरीर को ताजगी मिलती है और यह गर्मियों में लू के दुष्प्रभावों को नियंत्रित करने में बेहद कारगर होता है। सब्जी के तौर पर खाने के अलावा पके हुए कटहल के फलों का अचार और पापड़ भी बनाया जाता है। पके फलों का ज्यादा मात्रा में सेवन करने से दस्त होने की संभावना होती है अक्सर इसे अपाचन से ग्रस्त रोगी को दिया जाता है। पके हुए कटहल के गूदे को अच्छी तरह से मैश करके पानी में उबाला जाए और इस मिश्रण को ठंड़ा कर एक गिलास पीने से जबरदस्त स्फ़ूर्ति आती है, वास्तव में यह एक टॉनिक की तरह कार्य करता है। यही मिश्रण यदि अपचन से ग्रसित रोगी को दिया जाए तो उसे फायदा मिलता है। फल के छिल्कों से निकलने वाला दूध यदि गाँठनुमा सूजन, घाव और कटे-फटे अंगों पर लगाया जाए तो आराम मिलता है।


जामुन (सायजायजियम क्युमिनी)

जंगलों, गाँव में सडकों पर खेतों के किनारे और उद्यानों में जामुन के पेड़ देखे जा सकते हैं। जामुन का वानस्पतिक नाम सायजायजियम क्युमिनी है। जामुन में लौह और फास्फोरस जैसे तत्व प्रचुरता से पाए जाते हैं, जामुन में कोलीन तथा फोलिक एसिड भी भरपूर होते हैं। भोजन के बाद 100 ग्राम जामुन फल का सेवन गर्मियों से जुडे कई विकारों में बहुत फायदेमंद साबित होता है। जामुन के बीजों को छाँव में सुखाकर तैयार किया गया चूर्ण प्रतिदिन सेवन करने से मधुमेह में काफी फायदा होता है। पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि यही चूर्ण 2.2 ग्राम मात्रा बच्चों को देने से बच्चे बिस्तर पर पेशाब करना बंद कर देते हैं। डाँग-गुजरात के आदिवासी हर्बल जानकार मानते हैं कि जामुन और आंवले के फलों का रस समान मात्रा में मिलाकर पीने से शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है और जिन्हे रक्त-अल्पता होती है उन्हें काफी फायदा होता है। 

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