Tuesday 30 April, 2013

80 % लोग काम पाने के लिए देते हैं कमीशन



लखनऊ। दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) आज भष्टाचार और घूसखोरी का अड्डा बन गई। जिसका सीधा कारण है गाँव के लोगों को इस योजना के नियमों की पूरी जानकारी और अपने अधिकारों का पता न होना।

ग्रामीण भारत के करीब 95 फीसदी लोगों को मनरेगा के तहत काम पाने के अपने अधिकारों और नियमों की पूरी जानकारी ही नहीं है। यह बात 'गाँव कनेक्शन' के एक ग्रामीण सर्वे से निकल कर आई है। साथ ही, करीब 80 फीसदी लोगों ने माना है कि काम पाने के लिए प्रधान जी और सेक्रटरी को कमीशन भी देना पड़ता है।  जिला बाराबंकी के ब्लॉक निंदूरा के  गाँव हाजीपुर के अवधेश यादव कहते हैं, ''हमें इस योजना के बारे में सिर्फ इतना पता है कि काम होता है और पैसे मिलते हैं। इसके अलावा इसकी जानकारी नहीं है कि अधिकार क्या-क्या हैं और यहां काम करने पर क्या सुविधाएं मिलती हैं।''

मनरेगा के तहत काम पाने के लिए गाँवों में लोगों को प्रधान के चक्कर लगाने पड़ते हैं। सरकार ने तो सभी जॉब कॉर्ड धारकों के लिए 100 दिन का काम पाने का हक सुनिश्चित किया है, लेकिन ग्राम प्रधान जी अगर काम पर लगाते हैं तो उन्हें उसमें हिस्सेदारी चाहिए होती है। ''अगर दस दिन का काम होता है तो काम 20 दिन का दिखाकर प्रधान जी 10 दिन का पैसा अपने पास रख लेते हैं।'' अवधेश यादव बताते हैं।

''हां, ग्रामीणों और ग्राम प्रधान के बीच इस तरह से पैसे निकालने को लेकर दिक्कतें हैं। लेकिन बहुत जल्द इसे भी हल कर लिया जाएगा। अब ईएफएमएस (इलेक्ट्रॉनिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम) के  जरिए पैसा सीधे काम करने वाले मजदूरों के खातों में ट्रांसफर हो जाएगा। इस पर बहुत तेजी से काम चल रहा है और उम्मीद है कि अगले छह माह में इसे उत्तर प्रदेश में लागू कर दिया जाएगा।'' प्रतिभा सिंह, डिप्टी कमिश्नर मनरेगा, उत्तर प्रदेश कहती हैं। साथ ही वह कहती हैं, ''अगर किसी को प्रधान से काम मिलने में दिक्कत आ रही है तो ब्लॉक में सीधे जाकर प्रोग्राम  ऑफिसर (पीओ) से मिलकर काम मांग सकते हैं।''

हाल ही में संसद में पेश मनरेगा पर कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2,252 करोड़ रुपये उन कार्यों पर खर्च हुए जिनकी योजना के तहत होने वाले कार्यों में मंजूरी ही नहीं है। साथ ही यह भी कहा गया है कि यूपी और बिहार जैसे गरीब राज्यों में इस योजना का सबसे कम फायदा हुआ और प्रति व्यक्ति, प्रतिदिन के रोजगार के आंकड़े में भारी गिरावट आई है।

"मुझे इस योजना के नियमों की कोई खास जानकारी नहीं है। हमे तो काम मांगने के लिए प्रधान के ही पास जाना पड़ता है।" जिला बिजनौर के गाँव बहमन शौरा निवासी सत्यपाल बताते हैं।

ज्यादातर गड़बड़ी ग्राम प्रधान स्तर से ही होती है। सर्वे में लगभग सभी ने इसे माना है। जॉब कार्ड बनवाने को लेकर बैंक से मजदूरी निकलवाने तक, प्रधान जी को कमीशन देना ही पड़ता है। "हां, ई-मस्टरोल आदि बनने से काफी दिक्कतें दूर हो चुकी हैं। प्रधान और मनरेगा मजदूर के बीच मजदूरी की बंदरबांट पर भी जल्द ही काबू पाया जा सकेगा। जिसके लिए ईएफएमएस स्कीम काफी कारगर सिद्ध होगी।" प्रतिभा सिंह बताती हैं।

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