Monday 15 April, 2013

70% सिंचाई का पानी बचाएंगी बोतलें


 कृषि वैज्ञानिकों ने खोजी सिंचाई की सस्ती तकनीक 

                                                      अमूल्य रस्तोगी

लखनऊ। सोडा, कोल्ड ड्रिंक पीने के बाद जिन प्लास्टिक की बोतलों को हम बेकार समझ कर फेंक देते हैं उनका फसलों की सिंचाई में उपयोग करके 70 फीसदी तक पानी बचाया जा सकता है। बॉटल ड्रिप इरिगेशन नाम की इस तकनीक से सिंचाई के दौरान होने वाली पानी की बर्बादी को काफी हद तक रोका जा सकता है। ये कहना है केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान(सीआईएसएस) के प्रमुख वैज्ञनिक डॉ वीके मिश्रा का। वह बताते हैं, "इस तकनीक से कम पानी में भी अच्छी सिंचाई की जा सकती है,  क्योंकि इससे उतना ही पानी  लगता है जितनी पौधे को ज़रूरत होती है। सिंचाई के इस तरीके से पौधे को एक समान नमी मिलती रहती है। इस तकनीक से पानी की 60 से 70 फीसदी की बचत भी की जा सकती है।"  

उत्तर प्रदेश में नहरों से सिंचाई किसानों के लिए भले मुफ्त कर दी गई हो पर अभी भी ज्यादातर सिंचाई नलकूपों से ही होती है। प्रदेश में सिंचाई की ज़रूरत का 71 फीसदी पानी नलकूपों से लिया जाता है जबकि नहरों से करीब 19 फीसदी पानी लिया जाता है। नलकूप से सिंचाई करने पर डीजल और किराए का खर्च भी आता है। पानी की खपत कम करने के लिए सिंचाई के कई तरीके और भी हैं पर उनमें लागत ज्य़ादा आती है। इसमें वॉटर स्प्रिंक्लर (फौव्वारे से सिंचाई) और ड्रिप इरिगेशन (टपका सिंचाई) तकनीक है। इन दोनों तकनीकों में पानी तो बचता है लेकिन इसमें पाइप का जाल बिछाना पड़ता है, जिससे इसमें मेहनत भी अधिक लगती है और खर्च भी ज्यादा  आता है। वहीं, बॉटल ड्रिप  इरिगेशन नाम की यह तकनीक न केवल सस्ती है बल्कि इसके प्रयोग में कोई खास तकनीकी जटिलताएं भी नहीं आतीं। 

गर्मियों में पानी का वाष्पीकरण काफी बढ़ जाता है। जब किसान खेत में पानी लगाता है, तो काफी मात्रा में पानी भाप बनकर उड़ जाता है, क्योंकि ज़मीन एक तय मात्रा तक ही पानी सोख सकती है। इस नई तकनीक से सिंचाई करने में न केवल पानी की बल्कि कीटनाशक और उर्वरकों की भी बचत की जा सकती है। "इस तरह की  सिंचाई से उर्वरक को बोतल में डाले जाने वाले पानी में मिलाकर सीधे पौधों तक पहुंचाया जा सकता है। जिससे उर्वरक की कम मात्रा से ही उत्पादन बेहतर किया जा सकता है। बोतल से सिंचाई करने पर एक निश्चित क्षेत्र को पानी मिलता है जिससे खरपतवार उग आने की समस्या से भी बचा जा सकता है" डॉ मिश्रा बताते हैं।

उत्तर प्रदेश में 347 लाख हेक्टेयर से ज्य़ादा के क्षेत्रफल में सिंचाई की जाती है, जिसके लिए एक करोड़ लीटर पानी की जरूरत होती है। ऐसे में आमतौर पर बर्बाद हो जाने वाली प्लास्टिक की बोतलों से पानी टपकाकर होने वाली सिंचाई की इस विधि ने वैज्ञानिकों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। 

"बोतल सिंचाई तकनीक से उत्तर प्रदेश में केले और सब्जियों की फसल को काफी फायदा हो सकता है। किसानों को लगता है कि शुरुआत में ज्यादा खर्चा होगा पर ऐसा नहीं है इसमें बहुत मामूली सा खर्च आता है जो छोटा किसान भी वहन कर सकता है।" बागबानी बोर्ड उत्तर प्रदेश में नोडल माइक्रो इरिगेशन के वैज्ञानिक एसके शर्मा बताते हैं।

ऐसे होती है बोतल ड्रिप तकनीक से सिंचाई

बोतल से सिंचाई करने के लिए खाली प्लास्टिक की बोतलों की ज़रूरत होती है। छोटे पौंधों के लिए एक बोतल से काम चल जाता है और जैसे-जैसे पानी की जरूरत बढ़ती है, बोतलों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। इस तरीके में बोतल को तलेे से काट दिया जाता है क्योंकि बोतल को ज़मीन में उलटा गाढऩा होता है और वहीं से इसमें पानी भरा जाता है। इसे जमीन में दबाने से पहले इसमें चारों ओर 6 से 8 छेद कर दिये जाते हैं। इसके बाद इसको मिट्टी   में दबा दिया जाता है। इन बोतलों को ऐसी जगह गाड़ा जाना चाहिए जहां से पौधे को सीधे पानी मिल सके। इस तरह बोतल को महज एक बार भरने पर कई घंटों तक धीरे-धीरे पानी पौधों की जड़ों को मिलता रहता है।



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