Wednesday 6 February, 2013

डिजिटल देहात:सूचना के हाइवे पर कैसे दौड़ेंगे गाँव वाले



12 नवम्बर, दीवाली की आहट लिए वो जगमगाती शाम, जब पूरा देश इस रोशनी के पर्व को मनाने की तैयारी कर रहा था, मुझे अजमेर जिला के आराइं पंचायत भवन से एक फ़ोन आया। किसी ने पूछा, क्या मैं आपसे स्काइप पर बात कर सकता हूं ? ये मेरे लिए किसी हैरत से कम नहीं नहीं था। क्योंकि वो फ़ोन एक ऐसे गाँव से आया था, जहां इंटरनेट या उच्च तकनीकी सुविधा का नामोनिशान तक नहीं है। फ़ोन पर कोई और नहीं, बल्कि आराइं गाँव के कुछ उत्साहित युवा थे जो टैबलेट व लैपटॉप से पूरी तरह लैस थे। जिसके ज़रिए वे किसी से भी बिना उसके नज़दीक गए पूरी स्पष्टता के साथ बात कर सकते थे।

आराइं, अजमेर जिला का एक बडा गाँव है जहां सिर्फ  52 फीसदी लोग शिक्षित हैं और 380 घरों में किये गये एक सर्वे के मुताबिक गाँव वालों के लिए संचार का मुख्य साधन मोबाइल फ़ोन है। सभी 2000 घरों में औसतन कम से कम दो मोबाइल हैं। 6000 से ज्यादा आबादी वाले इस गाँव का मुख्य पेशा कृषि होने के बावजूद बैंकए हॉस्पीटलए पुलिस थानाए डाकघरए बस स्टेशन व विभिन्न सरकारी दफ्तरों के साथ.साथ दो साइबर कैफे हैं और फ़ोटोकॉपी की सुविधा भी मौजूद है। अरांई में शिक्षा के लिए 3 प्राथमिक व एक माध्यमिक स्कूल के साथ दो कॉमन सर्विस सेन्टर भी देखे जा सकते हैं। बावजूद इसके गाँव में डिजिटल या इंटरनेट का कोई कल्चर या परिपाटी नहीं है।

दरअसल गाँव में 60 प्रतिशत छोटे व हाशिये पर रहने वाले किसान हैं। लेकिन ये सब इतिहास हो सकता है क्योंकि अरांइ पंचायत (गाँव का शासन केंद्र) 10 नवम्बर को देश की पहली पंचायत बन गई जहाँ पंचायत भवन परिसर में ही 100 मेगाबाइट प्रति सेकण्ड ;एमबीपीएसद्ध वाली ब्रॉडबैण्ड ऑप्टिक फाइबर लाइन पहुंच चुकी है। मेरा मानना है कि जब एक गाँव में इंटरनेट व कम्प्यूटर आते हैं तो जरूर कुछ होता है। वैसे भी स्थानीय लोगों के लिए ये कोई जादू के बक्से से कम नहीं। 

ऐसे में अगर, हम आरांइ की बात करें तोए हम लोग इंटेल फाउण्डेशन व भारत ब्रॉडबैण्ड नेटवर्क लिमिटेड के साथ काम कर रहे हैं ताकि अरांइ पंचायत में एक पूरी तरह डिजिटल लिटरेसी मिशन केन्द्र बन सके। इस योजना के तहत पंचायत के हर घर का एक व्यक्ति डिजिटली शिक्षित बन सके। हालांकिए शुरू में हम लोग देश में 3 जगहों पर काम कर रहे हैंए जिनमें अरांइ सबसे पहला गाँव है। दूसरे 2 गाँव उत्तरी त्रिपुरा में पानीसागर और आंध्रप्रदेश  के विशाखापट्टनम में  मुथ्थयल्लमापालम है। 

अगर मुख्य पेशा और मौसम को छोड़ देंए तो त्रिपुरा के पानीसागर और विशाखापट्टनम में मुथ्थयल्लमापालम की हालत भी अरांइ से मिलती जुलती है। इन तीनों जगहों पर अगर कोई समानता है तो वो है नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क का मौजूद होनाए लेकिन फिर भी गाँव वालों तक इंटरनेट की सुविधा का न पहुंचना। जहां त्रिपुरा का पानीसागर पहाड़ों के बीच बसा है तो वहीं मुथ्थयल्लमापालम समंदर के किनारे एक छोटा सा गाँव है। इन जगहों पर यकीनन इंटरनेट की सुविधा मुहैया कराना किसी चुनौती से कम नहीं है।

तमाम कोशिशों के बावजूद अब भी अरांइ के अलावा दो अन्य डिजिटल लिटेरेसी मिशन केन्द्रों पर इंटरनेट की सुविधा चालू नहीं हो सकी है।

हालांकि, यहां हमारा मकसद किसी तरह की टिप्पणी करना नहीं, बल्कि यह विश्लेषण करने का है, कि कैसे 100 एमबीपीएस की ब्रॉडबैण्ड लाइन गाँवों और गाँव वालों के जीवन में बदलाव ला सकती हैं। मेरा आसान सा जवाब है कि हमारे देश को हमेशा अच्छी सड़क (हाईवे) की जरूरत रही है ताकि व्यापार व उद्यमिता बढ़ सके। लेकिन जो अब तक नहीं मिल सका। ऐसे में एक ही रास्ता है कि हमें सूचना का सुपरहाईवे मिले। उच्च स्तर के ब्रॉडबैण्ड से हम सूचना व ज्ञान को ऑडियो.विजुअल विधि से आपस में बांट सकते हैं।

मालूम हो कि 20,000 करोड़ की सरकारी परियोजना जिसके जरिए 2,50,000 पंचायतों को 100 एमबीपीएस लाइन से जोड़ा जाना हैए ताकि गाँव.गाँव में हर घर को 148 किलोबाइटस् प्रति सेकण्ड (केबीपीएस) की लाइन पहुंच सके। 2011 के जनगणना के अनुसार भारत में कुल 24 करोड़ 70 लाख घर हैं। अगर हम ग्रामीण क्षेत्रों के 16 करोड़ 80 लाख घरों को पंचायतों की कुल संख्या से विभाजित करें तो पाएंगे कि हर पंचायत में 672 घरों को 100 एमबीपीएस की ब्रॉडबैण्ड लाइन बांट सकेंगे।

लेकिन आखिर में ये देखना रोचक होगा कि कैसे सरकार व प्राइवेट कंपनियां इस महत्वाकांक्षी योजना को देखते हैं। क्योंकि हमारे लिए एक बड़ा अहम सवाल ये है कि क्या हमारे देश के गाँव वाले जो किसी तरह खेती, मजदूरी कर जीवन बसर करते हैंए इंफ़ो हाइवे के लिए पैसे दे पाएंगे?

लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य हैं।

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