Tuesday 5 February, 2013

अब गाँवों की हसरत है कसरत



रिपोर्ट. भास्कर त्रिपाठी और अर्जुन सक्सेना

पूरबनारा . इलाहाबाद / लखनऊ। गाँव में जिम! इस बारे में आपका क्या सोचना है? क्या यह आपको यह भविष्य की बात लगती है? लेकिन ऐसा है नहीं।

इलाहाबाद के गाँव में सड़क के किनारे खेत में बने एक कमरे से ज़ोर से गाने बजने की आवाज़ आ रही थी। कुछ लड़के निकले वहां से पसीने से तरबतरए बढिय़ा कद-काठी और चौड़ी भुजाओं के साथ। बाहर से आने वाला कोई भी व्यक्ति एक बार चौंक जाएगा यह जानकर कि जिस कमरे से वह लड़के निकल रहे थे वह गाँव का एक मशहूर जिम है।  

"मुझे तो सलमान खान की तरह बॉडी बनानी है वो मस्त दिखता है।" बच्चा पटेल कहते हैं। 24 साल के बच्चा पटेल इलाहाबाद के भोलागढ़ ब्लॉक के एक छोटे से गाँव चांती के रहने वाले हैं। पूरबनारा गाँव में खुला यह जिम बच्चा के घर से लगभग 5 किमी दूर है। लेकिन बीए कर रहे बच्चा रोज़ शाम 5 बजे अपनी साइकिल दौड़ाते हुए जिम में हाजिऱ हो जाते हैं। इस जिम की फीस 200 रुपए है जो ग्रामीण परिवेश के हिसाब से किसी को भी ज़्यादा लग सकती है। लेकिन बच्चा पटेल बताते हैं कि घरवालों को इससे कोई ऐतराज़ नहीं है। वह हर महीने आराम से फीस दे देते हैं।

पास ही के अंगुरीहान गाँव में रहने वाले 22 साल के सनी ने जिम में साल भर की कड़ी कसरत के बाद शरीर गठीला बना लिया है। वह बताता है "मैं तो जिम सिर्फ  इसलिए आता हूँ ताकि बढिय़ा बॉडी बन जाए और फिट रहूँ"  इतना कहने के बाद ही सनी डंबल उठाकर कसरत करने लगता है। तभी जिम में पास ही खड़ा उसके ही गाँव का एक अन्य लड़का कहता हैए ष्गाँव के सारे लड़के इसी की तरह बॉडी बनाना चाहते हैं।

वहीं मदूपुर गाँव के रमेश कुमार (21) का सपना है सेना में भर्ती होना। वह पहले एक बार भर्ती परीक्षा में शामिल हो चुके हैं पर उनका सेलेक्शन इसलिए नहीं हो पाया था क्योंकि उनकी छाती की माप कम हो गई थी। इस बार परीक्षा से पहले रमेश जमकर कसरत कर रहे हैं वह कोई कमीं नहीं छोडऩा चाहते। 

इलाहाबाद शहर के उत्तर में लगभग 55 किमी दूर बसे पूरबनारा गाँव में एक जिम भर खुलने से आस.पास के युवा अपने शरीर और स्वास्थ के लिए जागरुक हो रहे हैं। भले ही एक दूसरे को देखकर या फिर किसी फिल्म के हीरो को देखकरए एक खामोश बदलाव तो हो ही रहा है। इस बदलाव के केंद्र हैं गाँवों में खुलने वाले आधुनिक मशीनों से लैस ये जिम और उसकी दीवारों पर लगी बावन इंच की छाती दिखाते महान बॉडी बिल्डरों की तस्वीरें।

मैसूर की पंचायत ने भी समझा युवाओं का उत्साह


पिछले दिनों खबरों में आया कि मैसूर की जिला पंचायत वहां के स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट के साथ मिलकर ग्राम पंचायत स्तर पर जिमों और फिटनेस सेंटरों की स्थापना करने की तैयारी कर रही है। जिसके लिए कर्नाटक राज्य की मैसूर जिला पंचायत 2 करोड़ के अपने अनटाईड फंड में से 40 लाख रुपए खर्चने जा रही है। 

अनटाईड फंड हर जिला पंचायत के पास होता है। जिसका प्रयोग वह लोगों की ज़रूरतों से प्रेरित किसी भी प्रगतिशील कार्य में कर सकते हैं। मैसूर में लगभग 46 ग्राम पंचायत हैं और हर पंचायत में जिम खोले जाएंगे जिनकी देख.रेख का जि़म्मा गैर सरकारी संगठनों और क्षेत्र के अन्य संगठनों को दिया जाएगा। पंचायतों में जिम खुलने के पीछे सबसे बड़ा कारकए जो काम कर रहा है वह है यहां के युवाओं का उत्साह। जिला पंचायत भी युवाओं को अच्छी सुविधाओं से लैस जिमों का आकर्षण देकर उन्हें एक स्वस्थ जीवन के लिए प्रेरित करने में उनके उत्साह को भुनाना चाहती है। 

क्या जिम व्यवसाय के लिए तैयार है गाँव का बाजार


'भारत में ग्राहक अब स्वास्थ के बारे में सजग हो रहे हैं उसको लेकर ठोस विचारधारा अख्तियार कर रहे हैं।ष् फिक्की यानि फेडरेशन ऑफ  इंडियन चेम्बर ऑफ  कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री की एक रिपोर्ट कहती है। 'ईडिंग द ग्रोथ वेव' नामक इस रिपोर्ट में फिक्की ने भारत में उभर रहे एक नए बाज़ार का गुणा.भाग समझाया है। इस नये बाज़ार का नाम है 'स्वास्थ्य बाजार', अंग्रेजी में कहें तो 'वेलनेस मार्केट'।

रिपोर्ट बताती है कि भारत की फिटनेस मार्केट यानि सेहत का बाज़ार 27 अरब 56 करोड़ का है और यह हर साल 40 प्रतिशत सलाना की दर से बढ़ रहा है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि फिटनेस प्रॉडक्ट्स की सबसे ज्यादा खपत युवाओं में हो रही है। अगर युवाओं द्वारा प्रयोग किया जाना इस मार्केट में इतने बड़े स्तर पर बदलाव ला सकता है तो ग्रामीण भारत में तो लगभग 2 अरब युवा रहते हैं। लगातार बढते संचार के साधनों से उनमें बॉडी बनाने का और स्वस्थ रहने का शौक़ भी तेजी से पनप रहा है। 

सवाल यह उठता है कि क्या तथाकथित धन सहेजने की आदत वाले ग्रामीण अपने ऊपर इतना खर्च करेंगे? रेटिंग संस्था क्रिसिल की रिपोर्ट गाँव में रहने वालों के बारे में प्रचलित इन भ्रांतियों का भी जवाब देती है। 

नेशनल सेम्पल सर्वे ऑफिस जो कि सर्वे करने की एक सरकारी संस्था है उसके आंकड़ों पर आधारित क्रिसिल की रिपोर्ट यह कहती है कि अब गाँव शहरों से ज़्यादा खर्च करते हैं। रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार 2009 से लेकर 2012 के बीच में ग्रामीण भारत नें 3.75 लाख करोड़ रुपए खर्च किए जो कि इस दौराने शहरों द्वारा खर्च किए गए 3 लाख करोड़ से ज़्यादा है।

भारत में जिमों का सालाना औसत कारोबार 180 से 200 लाख रुपए का है। वो भी तब जबकि अभी ग्रामीण भारत के 1 प्रतिशत में भी उनका व्यापार नहीं पहुंचा है। लेकिन अब स्थिति बदल रही है। ग्रामीण भारत के बाज़ार की विशालता दिखाते आंकड़ों की झिलमिलाहट की ओर अब बड़ी कम्पनियां आकर्षित हो रही हैं। जिसका सबसे बड़ा कारण है चांती गाँव के बच्चा पटेलए अंगुरीहान गाँव के सनी और मदूपुर गाँव के रमेश का अपने शरीर को गठीला बनाने के लिए वह उत्साह जो उन्हें दूर होते हुए भी हर सुबह.शाम जिम तक खींच लाता है। 

कंपनी जो पहुंचना चाहती है गाँव-गाँव


फिक्की की रिपोर्ट स्वास्थ्य बाजार में दबदबा रखने वाली कुछ कम्पनियों का भी जि़क्र करती है जो अब गाँवों तक पहुंचकर अपना मुनाफा बढ़ाना चाहती हैं। इन्हीं कपनियों में से एक है तलवलकर। भारत में जिम से संबंधित सबसे बड़ी कम्पनियों में से एक तलवलकर के भारत के 68 शहरों में लगभग 130 जिम हैं। इस कंपनी ने बाज़ार के उतार.चढ़ाव भरे पिछले कुछ सालों में भी अपनी बढ़त बरकरार रखी है। कम्पनी ने 2011 में 'हाई-फाई हेल्थ क्लब' नाम की एक नई योजना के तहत जिम खोलने शुरू किए। इस योजना का पूरा नाम है 'हेल्दी इंडिया-फिट इंडिया'। 

तलवलकर के 'हाई.फाई' जिम टियर-2 और टियर-3 श्रेणी के शहरों में खोले जा रहे हैं। टियर-3 श्रेणी के शहर यानि की जो शहर गाँव के सबसे करीब हैं। इसके बाद कम्पनी की अगली महात्वाकांक्षी योजना है. हाई-फाई' के तहत गाँवों में जिम खोलना। जिसके लिए कंपनी ने गाइडलाइंनें भी तैयार कर ली हैं। ग्रामीण इलाकों में खोले जाने वाले यह जिम 2500 से 3000 स्क्वायर फीट के होंगे जिनमें ग्रामीणों को ढंग के उपकरणों के साथ ही कसरत करने के लिए ज़रूरी एक स्वस्थ माहौल भी उपलब्ध कराया जाएगा। इन जिमों में फीस भी तलवलकर के आम शहरी जिमों के मुकाबले बहुत कम होगी।


ग्रामीण क्यों पहुंच रहे हैं जिम

लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास़्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर राजेश मिश्रा गाँवों के युवाओं की सोच में आ रहे बदलाव के पीछे का मुख्य कारण इन बातों को मानते हैं.  

"समाज में एक नगरवाद आ रहा है जिसकी वजह से गाँव में रहने वाले लोग शहरी तौर.तरीकों को अपनाने में लगे हुए हैं। सबसे तेजी से वो गाँव बदल रहे हैं जो शहर के सबसे पास हैं।"

"एक मुख्य कारण यह भी है कि जो ग्रामीण लोग पहले पैसे बचाने की सोचते थे वो अब अपने ऊपर पैसे खर्चने में हिचकिचाते नहीं हैं।"

सूचना फैलाने के जो मुख्य साधन हैं जैसे रेडियोए मोबाईलए इंटरनेट, यह सब गाँव में आसानी से मिल जाते हैं और ग्रामीण इसका भरपूर इस्तेमाल भी कर रहे हैं। मीडिया के इस इस्तेमाल से वह अब यह जानने लगे हैं कि बाहर की दुनिया किन तरीकों से जीती है और वही तरीके सीखने और अपनाने में लगे हैं।

फिल्मों का सबसे ज़्यादा प्रभाव होता है गाँव वालों पर। गाँव के युवा जब फिल्मों में देखते हैं कि एक नायक गठीले शरीर के साथ सबके आकर्षण का केंद्र बना हुआ है तो वो भी खुद को एक नायक के रूप में ढालने में लग जाते हैं।

"गाँवों में अब एक नया वर्ग उभर रहा है जिसे 'नवधनाढ्य' नये.नये धनी बने लोगद्ध कहा जा सकता है। यह वर्ग सबसे तेजी से शहरी बनने की होड़ में होता है। इसलिए सबसे पहले शहरी दिनचर्या अपनाने की कोशिश करता है। यह भी एक कारण है गाँव के  'नवधनाढ्य' लोगों के जिमों तक पहुंचने का।

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