Tuesday 12 February, 2013

प्रधान को अपना प्रतिनिधि समझिए: रवीश्पन्ती



पान की दुकान में प्रधान छाप गुटखा देखा तो मन में एक सवाल आया। प्रधानी तो दो ही होती है। एक तो प्रधानमंत्री और दूसरे आपके गाँव के प्रधान। तो यह प्रधान छाप गुटखा किसके नाम पर बना होगा। अपने प्रधानमंत्री तो गुटखा खाते नहीं बल्कि गुटखा तो खाना भी नहीं चाहिए तो हो हो ये गाँव वाले प्रधान साहब के नाम और शान के प्रचलन को ध्यान में रखा होगा। मतलब प्रधान गुटखा खाइये और प्रधान जी जैसा महसूस कीजिए। गब्बर की पहली पसंद के नाम पर जब इस देश में बिस्कुट बिक चुका है तो प्रधान साहब में क्या कमी है।

कोई भी किरदार जब नकारात्मक हो जाता है या देखा जाने लगता है तो बाज़ार उसे अलग नजऱ से देखता है। आप भी जानते हैं कि पंच परमेश्वर वाले पंच तो पहले थे और आज हैं। इतना ज़रूर हुआ है कि पंच परमेश्वर जी मुखिया और प्रधान के नाम से मशहूर हो गए। बल्कि मुखिया भी कहना थोड़ा फैशन से बाहर हो गया है, प्रधान कहा जाने लगा है। हमारे भोजपुरी में मुखियागिरी को मुखियई कहते हैं अब परधानी कहा जाने लगा है। सरकार ने पंचायतों को अधिकार देने के बाद जो फं दिये हैं उसके लिए परधानी की पूछ बढ़ गई है। आप गाँव वाले ग्राम सभा की बैठक बुलाकर प्रस्ताव पास कराने की मांग तो करते नहीं क्योंकि प्रधान साहब गाँव में आधे से ज़्यादा लोगों के चाचा मामा लगते हैं। उनसे हिसाब पूछना थोड़ा मुश्किल भी हो जाता होगा। इसी का लाभ उठाकर कई प्रधान कागज़ पर ग्राम सभा की बैठक दिखाते हैं और बीडीओ के साथ मिलकर हेराफेरी कर लेते हैं।

इसीलिए आप देखेंगे कि आज-कल परधानी के लिए भी मारा-मारी है। इनके घर और गाड़ी पर नजऱ रखिये। हमने ज़माने तक कई मुखिया को राजदूत मोटरसाइकिल पर चलते देखा है। वही उनकी पहचान भी होती थी क्योंकि तब आप मिट्टी तेल या राशन बेचकर कितना कमा सकते थे। अब तो मनरेगा से लेकर तमाम योजनाओं में पैसे रहे हैं। हर सरकार गाँवों के विकास के नाम पर पैसे बांटने की योजना बना रही है। इससे कुछ लोगों को लाभ हो रहा है मगर ज़्यादा लाभ प्रधान साहब को हो रहा है। नतीजा राजदूत मोटरसाइकिल की जगह बोलेरो, कमांडर, सफ ारी जैसी गाडिय़ां प्रधानों के पास गई हैं।

अब ये पैसे में हेराफेरी करने लगे हैं तो इन्हें राजनीतिक संरक्षण भी चाहिए। सांसद और विधायक को भी गाँव में अपना मज़बूत बंदा चाहिए। वो अपने संरक्षण के बदले प्रधान साहब को छूट देता है। अगर नहीं देगा तो प्रधान साहब को अपने साथ करने में पैसे ख़र्च करने पड़ेंगे। लिहाज़ा सरकार का पैसा लूटो और सांसद विधायक का काम करते रहो। आप देखेंगे कि बड़ी संख्या में प्रधान निलंबित हो रहे हैं। यह सब इन्हीं समीकरणों में बदलाव के कारण होता है।

जो भी हो गाँव के लोगों की उदासीनता  के कारण आज प्रधान की हैसियत काफ बढ़ गई है। हैसियत तो बढऩी ही चाहिए मगर आपके विकास के पैसे से रूतबे का प्रदर्शन क्यों हो। आपको भी बदलना होगा। प्रधान साहब को चाचा मामा समझना बंद कीजिए और उनके काम का हिसाब ग्राम सभा में मांगना शुरू कीजिए। प्रधान को अपना प्रतिनिधि समझिये। वर्ना जिस तरह से प्रधान गुटखा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है उसी तरह से प्रधान जी भी ग्रामीण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जायेंगे।

   (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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