Tuesday 12 February, 2013

सहूलियतें मिलें तो ग्रामीण भी जीत सकते हैं पदक :राज्यवर्धन सिंह राठौर


राकेश भदोरिया


विश्व की सबसे प्रतिष्ठित खेल प्रतिस्पर्धा ओलंपिक में डबल ट्रैक शूटिंग प्रतियोगिता में भारत को स्वतंत्रता के बाद व्यक्तिगत स्पर्धा में पहला रजत पदक दिलाकर देश का नाम रोशन करने वाले राज्यवर्धन सिंह राठौर ने कहा कि भारत के पास सब कुछ है तब भी यहां गाँवों में नये खिलाडिय़ों को संसाधन नहीं उपलब्ध कराये जाते। ग्रामीण भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है पर उन्हें सुविधाएं नहीं मिलतीं। गाँव कनेक्शन संवाददाता राकेश भदौरिया के साथ राज्यवर्धन सिंह राठौर के साक्षात्कार के कुछ अंश :

सवाल : क्या हमारे गाँवों से ऐसे खिलाड़ी निकल सकते हैं जो अंतर्राष्ट्री स्तर पर मेडल जीत सकते हैं?
जवाबकोई कैसे कह सकता है कि गाँव वालों में वो हिम्मत नहीं है जो किसी और में है। बड़ी सीधा सी बात है, हर व्यक्ति बराबर का होता है, टक्कर वाला होता है। गाँव में कमी होती है अवसर की। गाँव में मौके नहीं दिये जा रहे। इसलिये जरूरत है कि सरकार और संस्थान आगे बढ़कर आएं और गाँव वालों तक सहूलियते पहुंचाएं उन्हें अवसरों से जोड़ें ताकि मौका तो मिले उन्हें कुछ करने का।

सवाल : क्या सरकार को गाँवों में खेलों को और प्रमोट करने की जरूरत है?
जवाब- सरकार को अभी खेलों के क्षेत्र में बहुत कुछ करने की जरूरत है। सरकार को चाहिये कि वो वहां तक जाये जहां वास्तव में हुनर है। गाँव-गाँव पहुंचे और प्रतिभाओं को उनके पर्यावरण में ही निखारे। दूसरी बात यह है कि खिलाडिय़ों को भी जागरुक होना होगा। अगर मौके उन तक नहीं पा रहे हैं तो उन्हें मौकों तक चलकर पहुंचना होगा। सरकार और खिलाडिय़ों के साझा प्रयास से ही स्थिति सुधर सकती है।

सवाल : क्या भारतीय खिलाडिय़ों को विदेशों के बराबर और मुकम्मल सुविधाएं मिल पा रही हैं जिससे वो बाकियों की बराबरी कर पायें?             
जवाब : भारत में जो सुविधायें हैं वो विश्व स्तर की बिल्कुल नहीं हैं। लेकिन कोई कारण नहीं है कि ऐसा हो, हमारे देश के पास धन है साजो-सामान सब कुछ है बस एक इच्छा की जरूरत है। यदि किसी भी व्यक्ति में, सरकार में, संस्थान में इच्छाशक्ति हो तो सब किया जा सकता है।

सवाल: क्या आप मानते है कि भारत सरकार खेलों को आगे ले जाने में पूरी इच्छा शक्ति नहीं दिखा रही है?
जवाब: मैं वही मानता हूं, जो आप मानते हैं, जो पूरा देश मानता है। यदि पूरा देश यह समझता है कि सरकार में इच्छाशक्ति कम है तो देश को यानि हमें ही कुछ करना होगा।

सवाल: ग्रामीण अंचल के खिलाडिय़ों को आप क्या संन्देश देना चाहेंगे?
जवाब : मैं दुनिया भर में घूमा हूं और मैं यकीन से कह सकता हूं कि शारीरिक रूप से कोई भी इन्सान किसी भी दूसरे इन्सान से अलग नहीं होता। अमेरिकी हो, ब्रिटेन हो या कोई और देश भी हमने उनसे मुकाबला किया है और उनको हराया भी है। मैं भी एक गाँव का रहने वाला हूं इसलिए बता सकता हूं कि हम सबमें काबिलियत है। अगर जरूरत है तो सिर्फ हिम्मत की। ज्ञान सबके पास होता है लेकिन उस ज्ञान को एक्शन में तब्दील करने वाली हिम्मत चाहिये तभी कोई चैम्पियन बनता है। ज्ञान तो किताबों में भी है लेकिन किताब अपने आप में तो प्राइम मिनिस्टर नहीं बन जाती। हिम्मत जाए तो मुझे उम्मीद है कि पटियाली को भी अमीर खुसरो साहब के साथ-साथ यहां से निकलकर मेडल जीतकर लाये खिलाडिय़ों के नाम से जाना जाएगा।

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