Monday 18 February, 2013

बिना हाथों के तराशी अपनी जि़न्दगी


हादसे में हाथ गंवाने के बाद सुशील ट्रैक्टर चलाकर खड़े हुए अपने पैरों पर

श्रीकान्त सिंह

करमानी (लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश) हौसलों की उड़ान कितनी ऊंची हो सकती है यह जानना है तो लखीमपुर खीरी के करमानी गाँव आकर सुशील से मिलिये।

सुशील के दोनों हाथ नहीं हैं पर वह ट्रैक्टर चलाता है। चाहे खेत जोतना हो या फि चीनी मिल तक गन्ना ले जाना हो, सुशील बगैर किसी सहायता के स्वयं ही सारा काम करता है। सुशील उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो लोग हाथ पर हाथ धरे किस्मत को कोसा करते हैं।

वर्ष 2000 में जब 21वीं सदी शुरु हुई तो मानो सुशील के लिए चुनौती बनकर आई। गाँव के बाहर उसका खुद का मिनी राइस प्लांट लगा था। लगभग 21 वर्ष की उम्र होगी सुशील की तब उसके साथ प्लांट में एक हादसा हो गया। मिल के पट्टे में उसके दोनो हाथ फंस गए। दुर्घटना के बाद उसकी जिंदगी तो बच गई पर उसे अपने दोनों हाथ गवाने पड़े। यहीं से उसके सपने मर गए और उसकी जिंदगी अंधेरों से भर गई। सुशील कहते हैं, "जब लोग बैठकर मुझसे हमदर्दी जताते हैं तो अच्छा लगता है पर बाद में यह सोचने लगता हूं कि कैसे और कब तक मैं यह जिल्लत भरी जिंदगी जियूंगा। पढ़ाई सिर्फ  हाईस्कूल तक ही कर पाया था। बस मिस्त्री का काम आता था जो अब किसी काम का नहीं था।" बस यहीं से उसने ठान लिया था कि वो अपनी जिंदगी बेहतर बनाएगा।

उसने ट्रैक्टर चलाना सीखने के लिए जुगाड़ गांठना शुरू कर दिया। एक ट्रैक्टर में उसने गियर और एक्सलरेटर सिस्टम में कुछ बदलाव करवाए। एक पैर से स्टीयरिंग और दूसरे पैर से ब्रेक एक्सलरेटर थामे और निकल पड़े अपनी जिंदगी बदलने का अभ्यास करने फिर कभी पलट कर वापस नहीं देखा। ट्रैक्टर चलाते हुए अब तो कई साल बीत चुके हैं सुशील पैरों से ही ट्रैक्टर चलाकर अपना सारा काम बिना किसी परेशानी के करता है। साथ ही बड़ा बेटा होने के नाते परिवार की जि़म्मेदारी भी निभाता है। सुशील कहता है, "मैंने खुद को काम में इतना मशरूफ करना सीख लिया है कि अब मुझे पता ही नहीं चलता कि मैं विकलांग हूं।"

सुशील का विवाह उनके गाँव की ही रहने वाली शिवानी से हुआ। उसकी पत्नी को आशा बहू के रूप में भी चुन गया। विवाह के कुछ साल बाद सुशील दो बेटों का पिता बना। आज उसकी पत्नी आशा बहू बनकर महिलाओं के दर्द का इलाज कर रही है और सुशील अपने माता-पिता की सेवा करता है।" अपने परिवार और कार्य से बेहद खुश और संतुष्ट सुशील का कहना है, "सच्ची लगन और परिश्रम कभी भी बेकार नहीं जाता" वहीं अपने पति के बारे में शिवानी बताती है, "मुझे अपने पति पर बहुत गर्व है मुझे इसमें कोई बुरी बात नहीं लगती कि मेरे पति अपंग हैं बल्कि मुझे तो लगता है मेरे पति विकलांग लोगों के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं और मुझे अपनी जिंदगी से कोई शिकवा नहीं है।"

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