Monday 18 February, 2013

इंटरनेट पर पहरा नहीं, पहरेदार बनें साक्षर!


पूरे भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या में लगातार इज़ाफ हो रहा है। अगर इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ  इंडिया (आईएएमएआई) और आईएमआरबी की रिपोर्ट की मानें तो भारत में पिछले साल तक इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या 15 करोड़ पहुंच गई है। इसमें ग्रामीण भारत की बहुत बड़ी भूमिका है, जहां इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।

आईएएमएआई और आईएमआरबी की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि देश में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या दिसंबर 2012 तक 15 करोड़ होने का अनुमान है। रिपोर्ट में शहरी भारत में 10.5 करोड़ और भारत के गाँवों में 4.5 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता होने की बात कही गई थी।

वैसे भी भारत दुनिया के उन 3 प्रमुख देशों में शामिल हो चुका है जहां तक इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या सबसे ज्य़ादा है। जहां अमेरिका के बाद सबसे ज्य़ादा लोग फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं।

लेकिन एक तरफ  जहां इंटरनेट का उपयोग करने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है, वहीं सरकार की दखलंदाज़ी भी बढ़ी है। इसी सिलसिले में पिछले दिनों सरकार या किसी नेता के खिलाफ  फेसबुक या ट्विटर पर टिप्पणी के बाद कई गिरफ्तारियां भी हो चुकी हैं।

दरअसल, आज दुनिया की एक बड़ी जनसंख्या इंटरनेट के जरिए जुड़ी है, जिसे नियंत्रित करने का कोई एक तंत्र नहीं है। वैसे तो कई मायनों में इंटरनेट वास्तविकता से कोसों दूर है, फि भी इंटरनेट वास्तविकता के बेहद करीब होता जा रहा है। जिसका नतीजा है कि इन दिनों लोग इंटरनेट पर काफी सक्रिय और मुखर होते जा रहे हैं।

जहां तक कॉन्टेंट, विचारों और सक्रियता का सवाल है, इंटरनेट मुख्यत: उपयोगकर्ता से प्रभावित है। उदाहरण के तौर पर अगर मैं अपने फेसबुक पेज की बात करूं तो, मुझे नहीं लगता है कि मेरे करीब 2000 फेसबुक मित्र मेरे द्वारा शेयर किए गए किसी विचार या फ़ोटो पर एक साथ मुझसे बात कर सकते हैं। लेकिन इंटरनेट की काल्पनिक दुनिया में मैं उन्हें दिख सकता हूं, उनकी प्रतिक्रियाएं पा सकता हूं और उन प्रतिक्रियाओं को दूसरों के साथ बांट भी सकता हूं।

इसके अलावा, अगर मैं किसी लोकप्रिय हस्ती, राजनीतिज्ञ या धार्मिक नेता को पसंद या नापसंद करता हूं तो उसे मैं अपने सिर्फ  सीमित मित्रों, परिवार, सेमिनार या कांफे्रस में साझा कर सकता हूं। लेकिन, अगर मैं वही काम इंटरनेट की काल्पनिक दुनिया में करता हूं तो मेरे सभी मित्र मेरी पसंद या नापसंद को देख सकते हैं और जिसका एक खास प्रभाव हो सकता है। साथ ही इस पर और आगे चर्चा भी हो  सकती है।

दरअसल, इंटरनेट और सोशल मीडिया के आने के बाद हमारे बीच एक बहुत बड़ा बदलाव आया है। जिसका नतीजा ये है कि आज हम धीरे-धीरे कॉन्टेंट युग में प्रवेश कर रहे हैं। हर शख्स अपनी बात, अपने विचार इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिए कई लोगों के बीच आसानी से पहुंचा सकता है।

इतिहास गवाह है कि कैसे आम लोग समय के मुताबिक तेजी से बदल जाते हैं, लेकिन उतनी तेजी से सरकार, शासक संस्थाएं नहीं बदल पातीं। समुदाय, समाज, भौगोलिक स्थिति, नस्ल आर्थिक व्यवस्था के आधार पर वो अपना समय लेती हैं।

2012 फ्रीडम ऑफ  इंटरनेट रिपोर्ट के मुताबिक, सोशल मीडिया यानि यूजऱ जेनेरेटेड कॉन्टेंट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी के मद्देनजर, दुनिया में कई सरकारें नए कानून बना रही हैं, ताकि ऑनलाइन विचारों को नियंत्रित किया सके और इनका नियम उल्लंघन करने वालों के खिलाफ  कड़ी कार्रवाई की जा सके। बहुत से देशों में ऐसे कानून हैं जो कि राष्ट्रीय सुरक्षा या साइबर अपराध को हित में रखकर बनाए गए हैं, लेकिन इसे बेहद वृहद रूप में परिभाषित किया गया है, जिसके चलते ऐसे कानून आसानी से राजनीतिक विरोधियों के विरुद्ध इस्तेमाल किए जा सकते हैं।

इस रिपोर्ट से ये पता चलता है कि कई सरकारों के जरिए ऑनलाइन पोस्टिंग की आज़ादी पर पहरा लगाने के लिए अनेकों जतन किए जा रहे हैं। उनमें कॉन्टेंट पोस्टिंग पर रोक लगाना चुनकर प्रकाशित करना; ब्लॉकिंग फि ल्टरिंग आम तरीके हैं जिसे कई देशों ने पिछले दिनों अपनाया है।

इनके अलावा कुछ अन्य तरीके और भी हैं, जैसे; 1. कुछ ऐसे कानून बनाना जिससे कि एक खास प्रकार के कॉन्टेंट रोके जा सकें। 2.सक्रिय हस्तक्षेप, 3. ब्लॉगर दूसरे इंटरनेट उपयोग करने वालों के प्रति शारीरिक हिंसा 4.राजनीतिक रूप से प्रेरित निगरानी।

अफ सोस की बात है कि भारत भी उन देशों में शामिल है जहां पिछले एक साल में कई ऐसे नए कानून पारित किए गए हैं जिससे इंटरनेट की आज़ादी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। दूसरे कुछ अन्य देश जहां ऐसी पाबंदी लग चुकी है, जैसे-अर्जेंटिना, चीन, इंडोनेशिया, इरान, मेक्सिको, पाकिस्तान, रूस, सउदी-अरब, श्रीलंका, सीरिया, थाइलैंड वियतनाम। हालांकि, यह रिपोर्ट इंटरनेट पर पाबंदी को 3 श्रेणियों में बांटती है, ब्लॉकर्स, नॉन ब्लॉकर्स नए ब्लॉकर्स, और भारत इन तीनों में से किसी भी श्रेणी में नहीं आता।

मैं उम्मीद करता हूं कि सरकार अपनी क्षमता को बढ़ाने पर गंभीरतापूर्वक विचार करेगी और कर्मचारियों को ऑनलाइन दुनिया, खासकर फेसबुक दूसरे सोशल मीडिया के साथ-साथ इंटरनेट की काल्पनिक दुनिया के अलग-अलग पहलुओं से अवगत कराएगी। वरना हम ऐसे ही बराबर टीवी, रेडियों में इंटरनेट इस्तेमाल करनेवालों के खिलाफ  गैरजरूरी कार्रवाई की खबर सुनते रहेंगे।

पिछले साल संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने भी टीवी न्यूज चैनलों पर कहा था कि कानून में कोई कमी नहीं है, सिर्फ  पुलिस सरकारी अफ सर उनका सही से पालन नहीं कर रहे हैं।

लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और काम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य हैं।  

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