Monday 18 February, 2013

बंजर ज़मीन से अरबों कमा सकता है यूपी!


नहरों के किनारे लाखों हेक्टेयर बंजर पड़ी भूमि पर खेती से हो सकती है खूब कमाई


लखनऊ (उत्तर प्रदेश) नहरों से जल रिसाव के कारण खराब हो चुकी लाखों हेक्टेयर भूमि से अब अरबों रुपए कमा सकता है उत्तर प्रदेश। 

कृषि योग्य मिट्टी और उससे संबंधित अन्य विषयों पर शोध करने वाली संस्था केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई) के लखनऊ स्थित केंद्र ने अपने शोध के बाद नहरों से जल रिसाव के कारण उसके आसपास खराब हो चुकी भूमि पर खेती करने का एक फायदेमंद मॉडल विकसित किया है। 

"ऊंची नहरों से क्षारीय जल के रिसाव के कारण खराब हो चुकी भूमि पर 'इंटिग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम' नाम के इस मॉडल का प्रयोग करके किसान सालाना लगभग 70 से 80 हज़ार रुपये तक कमा सकता है।" सीएसएसआरआई लखनऊ के हेड वरिष्ठï वैज्ञानिक वीके मिश्रा बताते हैं।

सीएसएसआरआई द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में नहरों के किनारे की लगभग 2 लाख हेक्टेयर भूमि क्षारीयता बढऩे के कारण बंजर हो चुकी है। संस्था के वैज्ञानिकों द्वारा बताए गए तरीकों से एक हेक्टेयर भूमि से कम से कम 50 हज़ार रुपए तक की सालाना कमाई की जा सकती है। यदि यूपी में नहरों के किनारे बंजर पड़ी पूरी जमीन में इस मॉडल को लागू किया जाए तो बेकार पड़ी 2 लाख हेक्टेयर जमीन से सालाना अनुमानत: 10 अरब की कमाई की जा सकती है।

''मॉडल को अपनाने का शुरुआती खर्च लगभग ढाई से तीन लाख रुपये तक होता है जिसे झेलना छोटे किसान के लिए संभव नहीं। इसलिए सरकार चाहे तो योजना बनाकर किसानों को मदद पहुंचा सकती है।'' डॉ मिश्रा कहते हैं।

सीएसएसआरआई के इस मॉडल में किसी अलग तरह की कृषि के बारे में नहीं बताया गया है बल्कि कृषि के कुछ पारंपरिक तरीकों को साथ जोड़कर ऐसी व्यवस्था की जाती है कि यह एक दूसरे के पूरक बनकर उभरते हैं। मेन मॉडल का ढांचा इस प्रकार है कि मान लीजिए नहर के किनारे एक हेक्टेयर भूमि क्षारीय होने के कारण खराब पड़ी है। उसमें 40 प्रतिशत जो कि लगभग 5 बीघे के बराबर होगी डेढ़ मीटर गहरा तालाब खोदा जाता है। तालाब में नहर की सहायता से पानी भरकर उसमें मछली पालन किया जा सकता है। जिस क्षारीय पानी की वजह से मिट्टï बंजर हुई थी, वही पानी मछली पालन के लिए वरदान साबित होता है, क्योंकि क्षारीय पानी में मछलियों का विकास तेजी से होता है।

तालाब की खुदाई से जो मिटट्टी निकलती है, उसे तालाब के ही चारों ओर बाकी बची भूमि के 60 प्रतिशत भाग (लगभग 7 बीघा) पर फैला दिया जाता है। जिससे उस स्थान की ऊंचाई लगभग 2 मीटर तक बढ़ जाती है। ऊंचाई बढऩे का सबसे ज्य़ादा फायदा यह है कि उस खास जगह पर (जहां मिट्टी बिछाई गई है) जलस्तर नीचे चला जाता है जिससे जल की क्षारीयता घट कर सामान्य तक पहुंच जाती है। अब मिट्टï बिछाकर तैयार की गई इस भूमि में सामान्य तरीके से धान, गेहंू, अमरूद, आंवला, यूकेलिप्टस के पौधे लगाए जा सकते हैं।
''मॉडल के फायदे को कहीं ज्यादा बढ़ाया जा सकता है अगर किसान भी सक्रियता दिखाए। मान लीजिए किसान तालाब के ही पास अगर मुर्गी पालन या दुधारू पशुओं का पालान कर लें तो इनके मल को तालाब में डालकर मछलियों के फलन-फूलने के लिए उपयुक्त परिस्थितियां बनाई जा सकती हैं। इन सब प्रयासों से किसान बंजर पड़ी भूमि से साल भर में लगभग 2 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर तक कमा सकता है।'' डॉ मिश्रा मॉडल की विशेषता बताते हुए कहते हैं।

सीएसएसआरआई ने अपने इस मॉडल का रायबरेली जिले के गाँवों में किसानों के साथ मिलकर उनकी ज़मीन पर ही सफलता पूर्वक परीक्षण भी किया है। रायबरेली के गाँवों से शारदा नहर निकलती है जिससे रिसाव के कारण यहां के कुछ गाँवों में तो नहर के किनारे दस-दस किलोमीटर तक भूमि बेकार हो चुकी है।


क्यों हो जाती है जमीन बंजर

नहरों की खुदाई करते समय हर बार समतल भूमि नहीं मिलती। कई बार भूमितल नीचे होने की वजह से उसका स्तर मिट्टी डालकर ऊंचा किया जाता है। जिससे उस स्थान का जलस्तर बढ़ जाता है। जलस्तर ऊंचा हो जाने से उसकी क्षारीयता बढऩे लगती है। जिसे कृषि के लिए अच्छा नहीं माना जाता। जलस्तर ऊंचा होने की वजह से नहरों से जल रिस-रिस कर आसपास के खेतों तक पहुंच जाता है और मिट्टी को सोडिक (सोडियम की अधिकता वाला या क्षारीय) बना देता है। सोडियम की मात्रा अधिक होने से मृदा लगभग बंजर हो जाती है और अच्छे खासे खेत ऊसर में बदल जाते हैं।


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