Tuesday, 29 January 2013

यहां आलू, प्याज की तरह बिकती हैं बंदूकें

32 करोड़ अमेरिका की जनसंख्या,  31 करोड़ के पास बंदूकों का लाईसेन्स


आज कल अमेरिका में हाल ही में हुए एक काण्ड में जिस में एक नौजवान ने बीस बच्चे और उनके छह शिक्षकों की एक पाठशाला में बेरहम हत्या की उसकी वजह से एक बड़ा राष्ट्रीय तर पर विवाद छिड़ गया हैI विवाद उस बात पर चल रहा है की क्या इस मुल्क के संविधान में दी गयी छूट के कारण यह ज़रूरी है की बंदूकों जो मर्ज़ी अपने पास रखे और पूरे समाज को खतरे में दाल देI

जिस देश की आबादी करीबन ३२ करोड़ हो और उस देश में ३१ करोड़ से ज्यादा निजी बन्दूकें लोगों के पास हो वहां यह विवाद उतना ही लाज़मी है जितना ही इन शस्त्रों से खतरे का होना I अमेरिका से संविधान की धारा २ के तहद यहाँ की हर नागरिक को अपने पास बन्दूक रखने का मूल रूप से अधिकार दिया गया है I वैसे यह अधिकार उन दिनों की देन है जब अठारवीं सदी में अंग्रेजों से आज़ादी हांसिल करने के बात देश के सम्विधान्कारों ने तय किया की अगर भविष्य में कोई और नाइंसाफ हुकूमत खुद को कायम करने को कोशिश करें तो आम लोगों के पास उन को रोकने की शक्ति हो I

हथियार रखने का अधिकार अमेरिका की बहुत सारे लोग कुछ इस कदर मानते हैं की उस पर कोई भी बहस उन को मंज़ूर नहीं है I उनका कहना है की केंद्र और राज्य सरकारों को अपनी सीमा में रहना चाहिए और ऐसी कतई कोशिश नहीं करनी चाहिए जी से इस अधिकार में किसी भी तरह कमी हो, सुधार हो या नियंत्रण हो I इस के फलस्वरूप इस मुल्क में साल में १२,००० लोगों की हत्या होती है जिन में से बड़ी बहुमत बन्दूक से की जाती है I तरह तरह की खतरनाक बंदूकों की बिक्री आम दुकानों में जहाँ आलू प्याज और कपडे मिलते हो वहां भी कानूनी तौर पर होती है I यह सही है की ज़्यादातर बंदूकों के मालकी शांतिपसंद है और अपने हथियारों का इस्तेमाल खेल के लिए या शिकार के लिए ही करतें हैं  और जब कभी खुद पे खतरा महसूस करते हों तब I

परन्तु इतने बडे पैमाने बे समाज में हथियारों का होना कोई साधारण बात नहीं है विशेषकर उस देश में जो विश्व का सबसे सुखी देश होI अक्सर यह तय कर पाना असंभव है की सड़क पर चलते या दुकानों में या पाठशालाओं में या बसों में या सिनेमा घरों में की किस के पास बन्दुक होगी और उस का क्या इस्तेमाल होगा I हथियार रखने का अधिकार यहाँ की संस्कृति में इतना मिला हुआ है की उस पर बेजज्बाती हो कर खुलासा कर न बड़ा कठिन हो जाता है I

ऐसी उम्मीद की जाती है की दिसम्बर १४, २०१२ को की गयी बच्चों की हुई क्रूर हत्या के पश्च्यात राजनितिक वातावरण ऐसे बदला है की बंदूकों पर कुछ रोक तो ज़रूर लगेगी I ऐसी बंदूकें बाज़ार मिलती है जिस से एक मिनट में सौ से भी ज्यादा गोली चल सके I जो कई देशों की सेना के पास शायद न होता हो ऐसी बंदूकें आम लोगों के पास मिल जाती है यहाँ I

भारत के भी कई राज्यों में, ख़ास कर उत्तर प्रदेश और बिहार में, बंदूकों के प्रति काफी रुजान है लेकिन अमेरिका की बनिस्बत वोह तो कुछ भी नहीं है I अमेरिका की जो दुविधा है, जिस में संविधान का भी सम्मान हो और समाज की भी सुरक्षा बनी रहे, वह अब तक तो भारत को नहीं झेलना पद रहा है I यह ज़रूर है की संविधान को  बदला जा सकता है लेकिन हथियारों के हक में दिनरात काम करने वाली इतनी संस्थाएं और बिचोलिये है की राजनेता अक्सर उनके सामने घुटने टेक देते हैं I इस देश में ऐसे कैन राजनितिक क्षेत्र है जहाँ से किसी भी नेता को बिना बंदूकों के हक़ में बोले जितना तो अलग चुनाव के लिए खडे होना भी असंभव हो जाता है I

ऐसे माहोल में यह देखना होगा को क्या बीस बच्चों के मासूम जानें भी हथियार रखने के अधिकार की तुलना में कम पड़ जाएँगी I यहाँ अक्सर ऐसा सुनने को मिलता है की “बंदूकें जान नहीं लेती, लोग जान लेते हैं I” उन लोगों के मैं सिर्फ यही कहूँगा “खाली हाथों से गोली नहीं चलती” I

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