Sunday 20 January, 2013

हर तीसरा भारतीय किसान, पर कृषि वैज्ञानिकों के आधे पद खाली




1 फीसदी से भी कम छात्र कर रहे हैं खेती की पढ़ाई,

देश के कुल 55 कृषि विश्वविद्यालयों में 24 हज़ार से ज्यादा पद रिक्त,

देशभर में 55 हज़ार कृषि वैज्ञानिकों की के पद भी हैं खाली,

कृषि से जुड़े संगठन कर रहे हैं देशव्यापी आन्दोलन की तैयारी,

आईएएस की तर्ज़ पर भारतीय कृषि सेवा शुरु करने की है की मांग .

भारत के बढ़ते कृषि व्यापार की चकाचैंध से प्रभावित होकर लखनऊ के अफाक अहमद ने कृषि विषय में एमबीए करने का मन बनाया और लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रबन्धन विज्ञान संस्थान में एडमिशन ले लिया। 

अफाक के अध्यापकों ने उसे यही बताया था कि एग्रिकल्चर की पढ़ाई में आगे बहुत अच्छे अवसर हैं। दक्षिण भारत के कृषि व्यापार की नज़ीर देकर उसे समझाया गया कि मौजूदा समय में इस क्षेत्र से उच्च शिक्षा लेने वाले के लिए सम्भावनाओं की कोई कमी नहीं है। 

लेकिन पूरे तीन साल बाद कई कोशिशों के बाद भी जब अफाक को कृषि के क्षेत्र में कोई नौकरी नहीं मिली तो निराश होकर अब वो बैंक में नौकरी कर रहे हैं। 

अफाक जैसे ऐसे कई युवा जो कृषि जैसे विषय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद इस क्षेत्र में आगे अपना रोजगार नहीं तलाश पाते, जबकि देशभर में कृषि वैज्ञानिकों और अध्यापकों के हज़ारों पद रिक्त पड़े हुए हैं। 

"कोर्स करने पर पता चला कि कोर्स की क्वालिटी बिल्कुल अच्छी नहीं है। और कोर्स पूरा करने के बाद भी इस फील्ड में मुझे कोई जौब नहीं मिली और मुझे बैंक में नौकरी करनी पड़ी। 54 बच्चों की क्लास में से केवल 13 बच्चों को ही एग्रीकल्चर के फील्ड में नौकरी मिली बाकियों में से कोई निज़ी कम्पनियों में नौकरी कर रहा है तो कोई अब भी  बेरोजगार है।" ये कहते हुए अफाक की निराशा साफ झलक आती है। 

कृषि की पढ़ाई को लेकर सरकारी रवैयये का आलम ये है कि स्नातक स्तर के कुल विश्वविद्यालयों, कालेज़ों और अन्य शिक्षण संस्थानों में से महज 6 फीसदी कृषि पर केन्द्रित हैं। देशभर में स्नातक की पढ़ाई कर रहे तकरीबन डेढ़ करोड़ छात्रों में से महज नब्बे हज़ार छात्र कृषि से जुड़े विषयों की पढ़ाई कर रहे हैं। खेती किसानी में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों की ये संख्या कुल स्नातकों का एक फीसदी भी नहीं है।  जो छात्र कृषि से जुड़े विषयों पर विशेषज्ञता के लिये पढ़ाई कर भी रहे हैं वो इन संस्थानों में हो रही पढ़ाई की गुणवत्ता से खुश नहीं हैं। 

12 वीं पंचवर्षीय योजना की रिपोर्ट के मुताबिक देश की कुल वर्कफोर्स की 74 फीसदी अपनी आजीविका के लिये आज भी कृषि और उससे जुड़े व्यवसाय में लगी है इसके बावजूद कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान महज 14 फीसदी है। इस योगदान को कैसे बढ़ाया जाय इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे। 
देशभर में सालाना तकरीबन 50 हज़ार छात्र कृषि से जुड़े कोर्स करके निकलते हैं, लेकिन विश्वविद्यालयों में इन छात्रों को पढ़ाने वाले अध्यापकों की भारी कमी है। देश में कुल 55 कृषि विश्वविद्यालय हैं जिनमें तकरीबन 24 हज़ार अध्यापकों के पद रिक्त हैं।  

ऑल इन्डिया एग्रिकल्चरल रिसर्च असोशिएशन के अध्यक्ष सन्दीप कुमार कहते हैं "हमारे देश को कृषि प्रधान तो कहा जाता है पर इस क्षेत्र में मौके बहुत कम हैं। अभी कृषि के क्षेत्र में जो भी युवा आ रहे हैं वो बाई डिफौल्ट आ जाते हैं, अपनी इच्छा से इस क्षेत्र में बहुत कम लोग आते हैं। 1996 से हम लोग भारतीय प्रशासनिक सेवा की तर्ज़ पर भारतीय कृषि सेवा का गठन करने की मांग कर रहे हैं क्योंकि कृषि के प्रशासनिक प्रबन्धन को लेकर हमारे देश में बड़ी उदासीनता है। यदि भारतीय कृषि सेवा शृरु हो गई तो 30 हज़ार नये पद सृजित होंगे। और युवाओं को रोजगार के नये अवसर भी मिलेंगे।" 

सन्दीप आगे कहते हैं , "कृषि के क्षेत्र में आगे न बढ़ पाने की वजह ये भी है कि सही जगह पर सही लोग नियुक्त नहीं किये गये हैं। कृषि के क्षेत्र में 60 फीसदी तकनीकी पद ऐसे हैं जिनमें गैर तकनीकी लोग बिठा दिये गये हैं।"

ऑल इन्डिया फेडरेशन फौर एग्रिकल्चर के राष्ट्रीय समन्वयक डा सहदेव सिंह का इस बारे में कहना है  "एक ओर देशभर में सालाना जो हज़ारों छात्र कृषि विश्वविद्यालय से पढ़ाई करके निकलते हैं उनमें से ज्यादातर को रोजगार नहीं मिलता और दूसरी ओर पूरे देश में कृषि वैज्ञानिकों के 45 हज़ार से ज्यादा पद रिक्त हैं। अकेले दिल्ली के भारतीय कृषि शोध संस्थान, आईएआरएम में 149 सीट खाली हैं। यहां तक कि कृषि क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिये दिये जाने वाले वजीफ़ों तक में सरकार दोयम दर्जे़ का व्यवहार करती है। यूजीसी नेट तथा अन्य वजीफों की तुलना में कृषि के छात्रों को आधे से भी कम वजीफा मिलता है। "

सहदेव कृषि से जुड़े तमाम छात्रों, अध्यापकों और अधिकारियों को कृषि के क्षेत्र में बरती जा रही सरकारी उदासीनता का विरोध करने लिये लामबंद करने की तैयारी में जुटे हैं। "पूरे देश के 55 कृषि विश्वविद्यालयों के 10 लाख छात्रों, अध्यापकों और कृषि से जुड़े तमाम संगठनों को को साथ लेकर हम जल्द ही अपनी मांगों को सरकार के सामने रखेंगे और ज़रुरत पड़ी तो अपनी मांगों को लेकर हम विरोध प्रदर्शन भी करेंगे। वो कहते हैं।
कृषि से जुड़े विषयों के लिये छात्रों में जागरुकता बढ़ाने के लिए भी सरकार के प्रयास नाकाफी हैं। ऑल इन्डिया फेडरेशन फौर एग्रिकल्चर के एन्टी करप्शन सेल के चेयरमैन जिदेन्दर सिंह शेखावत का कहना है कि कृषि के क्षेत्र में शिक्षा को लेकर जागरुकता की बड़ी कमी है। हमने राजस्थान में ग्राम जनजागरण यात्रा की शुरुआत की है जिसके तहत हम 150 गांवों में जाकर लोगों को बताएंगे कि इस क्षेत्र में आगे क्या सम्भावनाएं हैं। राजस्थान में ये कार्यक्रम सफल रहा तो हम पहले पूरे राजस्थान और फिर पूरे देश में जागरुकता अभियान चलाएंगे। " 

लखनउ में एग्रिकल्चर में एमबीए कर चुके बहराईच के नालपारा गांव के अनिल कुशवाहा एक फर्टिलाईज़र कम्पनी में बतौर प्रोजेक्ट आफीसर काम कर रहे हैं। वो कहते हैं "मैं गांवों से बिलोंग करता हूं । गांव में बाबा आज भी खेती करते हैं। इस फील्ड में ज्यादातर वही पढ़ाई करने आता है जिसके घर में कोई खेती करने वाला हो। विज्ञान हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है, कृषि में भी। मुझे लगता है कि खेती के क्षेत्र में सम्भावनाएं कभी कम हो ही नहीं सकती क्योंकि देश के लोग चाहे कितना ही आगे क्यूं न बढ़ जायें खायेंगे तो खाना ही। "




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