Wednesday 30 January, 2013

हिन्दी अब सिर्फ गरीबों की भाषा नहीं रही



मेरी मात्रृभाषा भोजपुरी है। हिन्दी मेरी पहली अंग्रेजी थी। जिसे हमारे जैसे कई लोगों ने ऑक्सफोर्ड ऑफ ईस्ट कहलाने वाले कई शहरों में जाकर सीखा। गांव जाने पर लोग कहते थे कि ज्यादा अंग्रज़ी मत बोलो। बाद में पता चला कि ये ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड नहीं जा सके उन्होने अपने बनारस के विश्वविद्यालय को ऑक्सफोर्ड बुलाना शुरु कर दिया ताकि वो उन्हें एक हैसियत से जोड सकें क्योंकि आज़ादी के साथ ऑक्सफोर्ड जाने पर पाबंदी लग गई जहां बड़े बड़े नेता वकील बनके आते थे लेकिन हिन्दीभाषी शहरों के ऑक्सफोर्ड  कहलाने वाले हिन्दी विश्वविद्यालय हिन्दी सिखाने का अड्डा बन गये.. भोजपुरी, मैथिली या अवधी से निकलकर इन विश्वविद्यालयों से लोग हिन्दी सीखने लगे। क्योंकि उस वक्त तक राष्ट्रीय आन्दोलन की छाया में हिन्दी एक मजबूत राजनैतिक पहचान के रुप में काबिज हो चुकी थी। 

हिन्दी के समाज में एक बड़ा बदलाव आया है जो 90 के बाज़ारवाद के दौर से शुरु हुआ है जब हिन्दी प्रदेशों के गांव घरों के लड़के विदेशों और हिन्दुस्तान के गैर हिन्दीभाषी राज्यों में पढ़ने जाने लगे। बैंगलौर, हैदराबाद, मुम्बई, पुने और दिल्ली जैसे शहरों में इन लोगों ने रोजगार तो अंग्रेजी से लिया लेकिन इस प्रक्रिया में हिन्दी का एक ऐसा मध्यवर्ग तैयार हो गया जो अंग्रेजी जैसा था। जिसके पास गाड़ी आ गई, कम्प्यूटर आ गया लेकिन वो बात दुनिया से अंग्रेजी में करता था और घर में टीवी पे केबीसी हिन्दी में देखने लगा। ये एक तरह से दुभासी मध्यम वर्ग बन गया जिसके लिए हिन्दी सिर्फ गरीबों की आवाज़ वाली भाषा नहीं रही। 

इस नये दुभाषीय मध्यम वर्ग की दुनिया में हिन्दी और अंग्रेज़ी के बीच का टकराव कम हो गया। दूसरी तरफ हिन्दी का एक कुलीन वर्ग भी तैयार हो गया जो मुख्यमंत्री की कुर्सी से लेकर अकादमी के अध्यक्ष और विश्वविद्यायल के हिन्दी विभाग के बने ढ़ांचों में खप गया। इस तरह से हिन्दी की ये कुलीन सत्तारुढ़ जमात अंग्रेजी से लड़ने  के बजाय इसकी छोड़ी हुई सत्ता को अपनाकर सन्तुष्ट हो गयी लेकिन दुभाषीय मध्यम वर्ग ने अपनी हिन्दी को हिन्दी विभागों के दायरे से बाहर गढ़ना शुरु कर दिया। इसीलिये उनकी हिन्दी में काफी लचक है। वो कभी हिन्दी को अंग्रेज़ी की तरह बोलते हैं तो कभी अंग्रेजी को हिन्दी की तरह बोलते हैं। दूसरी तरफ अंग्रेज़ी का दंभ भी टूट गया। बोर्डिंग स्कूल वाली अंग्रेज़ी, व्याकरण के दम पर जो घमंड पालती थी वो गांव गांव में खुल रहे इग्लिश मीडियम स्कूलों के ज़रिये जनसुलभ होने लगी। अंग्रेजी ने बहुत चालाकी से अपने विस्तार के लिए औपनिवेषिक चाल ढ़ाल का त्याग कर दिया। 

80 या 90 के दशक में जिन्होंने अंग्रेज़ी सीखी वो ग्रामर ज्यादा पढ़े, सेक्शपियर कम। 90 का दशक उदारीकरण के साथ इंग्लिश और हिन्दी को काफी बदलता है। हिन्दी उर्द को छोड़ती है और अंग्रेजी की तरह हो जाती है। हिन्दी का राष्ट्रवाद अंग्रेजी के उपनिवेशवाद से लड़ना छोड़ देता है दोनों भाषाओं का पुनह लोकतांत्रीकरण होता है। अंग्रेज़ी बोर्डिंग स्कूल से निकलकर गांव गांव में अंग्रेज़ी मीडियम स्कूल हो जाती है और हिन्दी का नया मिडिलक्लास है जो बाईलिंग्विल हो जाता है। 

पावर स्ट्रक्चर हिन्दी सिस्टम बन जाता है जिसपर हिन्दी का प्रभाव है जो सत्ता विमर्ष के सेकंड टियर स्टक्चर में रच बस गई है। अब हिन्दी की लड़ाई दूसरी भाषाओं से हो रही है, हिन्दी की दूसरी धाराओं से हो रही है। 

क्या इस बाईलिंग्विलिज़म ने हिन्दी अंग्रेज़ी को करीब ला दिया है? अव्वल तो दोनों को बहनें होना चाहिये था। मगर खड़ांउ हमेशा भाई को मिली है। इसलिये बहनें भाई हो रही हैं। क्या दोनों का टकराव इसीलिए खतम हो गया है या ये कोई और प्रक्रिया है जो हिन्दी अंग्रेज़ी को गैंगरेप के बाद रायसीना पर साथ साथ ला देती है।

इंडिया बनाम भारत के संदर्भ में देखा जाये तो हिन्दी और इंग्लिश कोएड लैंग्वेज़ हैं, दोनों की आंकाक्षा में कोई अन्तर नहीं है। भाषा के विवाद को हमेशा हिन्दी ईग्लिश द्वंद्व के रुप में देखा जाता है लेकिन अब भाषा का अनुशाषन टूट गया है जिससे अंग्रेज़ी और हिन्दी का हाथ मिलाना आसान हो गया है। हांलाकि हिन्दी सिस्टम और अंग्रज़ी सिस्टम के बीच संघर्ष अभी  भी है या फिर इसका स्वरुप अब बदल रहा है। अनुवाद ने हिंदी अंगेज़ी की खाई को कम किया है या कहें कि दोनों की फ्रेंचाईजी खोल दी हैं। 

रायसीना हिल्स पर अन्ना के आंदोलन में हिन्दी अंगेज़ी साथ साथ थे, एक दूसरे के खिलाफ नहीं। हिन्दी मिडिल क्लास का बड़ा हिस्सा दलित मध्यम वर्ग है जिसकी हिन्दी न तो हिन्दी डिपार्टमेंट वाली है न दूसरी अंग्रेज़ी बोर्डिग स्कूल वाली। वो अपनी भाषा बना रहा है। मायावती, मुलायम, लालू भी हिन्दी के पावर डिस्कोर्स में अपनी वैरायटी एड करते हैं। राजनीति का हिन्दीकरण बंद हो गया है। लोग मैथिली से अंग्रेज़ी में जा रहे हैं। लोग भोजपुरी से अंग्रेजी में जा रहे हैं। 

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