Sunday 2 June, 2013

महिलाओं के सामूहिक प्रयास ने बनाया 'अप्पन समाचार'

अमृतांज इंदीवर

 पारू (मुजफ्फरपुर, बिहार)। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पारू प्रखंड की ग्रामीण लड़कियों ने सामुदायिक चैनल 'अप्पन समाचार' (ऑल वुमेन न्यूज चैनल) चला कर इस मिथक को तोड़ दिया है कि बड़ी पूंजी व सेटअप के बगैर मीडिया संस्थान चलाने की बात सोची नहीं जा सकती हैं। रिंकू कुमारी, खुशबू कुमारी, अनिता, पिंकी, सविता, ममता, रेणु, जुबेहा खातून, प्रियंका समेत करीब डेढ़ दर्जन लड़कियां पैसे के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव के लिए मेहनत कर रही हैं। इन्होंने गाँवों की समस्याओं और सामाजिक बुराइयों की तस्वीर उतार कर लोगों के हृदय में अपनी जगह बनायी है। 

अप्पन समाचार का कार्यालय जिले के सुदूर पश्चिमी दियारा इलाके के नारायणी नदी के किनारे स्थित है। यह एक ऐसा गाँव है, जहां अधिकारी भी जाने से कतराते हैं। इस इलाके में वर्षों से अपराधियों का वर्चस्व रहा है। आज नक्सलियों की चहलकदमी है। गरीबी, अशिक्षा और बुनियादी सुविधाओं की कमी का दंश झेल रहा है यह इलाका। आसपास के दर्जनों गाँव अंधविश्वास और सामाजिक बुराइयों में जकड़े हंै। इस घटाटोप में एक नयी रोशनी फैलाने के मकसद से सामाजिक कार्यकर्ता व पत्रकार संतोष सारंग ने अप्पन समाचार की परिकल्पना को मूर्त रूप दिया। उन्होंने अपने कुछ साथियों की मदद से गांव की दर्जनों ठेठ देहाती लड़कियों को कैमरे व खबरों की बारिकियों से अवगत कराकर घर की देहरी से बाहर निकाला। इस तरह चल पड़ा अपना चैनल यानी 'अप्पन समाचार'। 

इस अनूठे चैनल की स्टार रिपोर्टर पिंकी, अनिता का सानी नहीं है। पूरे हौसले और जज्बे के साथ साइकिल से गाँव की गलियों व टोले-कस्बों में खुशबू, पिंकी, अनिता, ममता आदि रिपोर्टिंग को निकलती हैं। सबसे बड़ी बात है कि इस चैनल में रिपोर्टर से लेकर कैमरापर्सन, वीडियो एडिटर और एंकर सभी गांव की बेटियां हैं। खेत-खलिहान और बाग-बगीचे इनके स्टूडियो और साइकिल ओवी वैन हैं। अप्पन समाचार की शुरुआत मुजफ्फरपुर जिले के पारू प्रखंड के रामलीलागाछी (चांदकेवारी) में 6 दिसंबर 2007 को हुई था। एक गाँव से शुरू हुआ यह चैनल जिले के पारू, साहेबगंज, सरैया, मड़वन और मुशहरी प्रखंडों के दर्जनों गांवों को कवर करता है। अप्पन समाचार का बुलेटिन 45 मिनट का होता है, जिसे गाँव के हाट-बाजार (पेठिया) और टोले-कस्बों में प्रोजेक्टर और पोर्टेबल टेलीविजन के जरिये दिखाया जाता है। रामलीलागाछी, डुमरी, धरफरी, खेमकरना, साहपुर, देवरिया, सरैया, पकड़ी पकोही, भगवानपुर सहित दर्जनों जगहों पर गांवों की समस्याओं की स्क्रीनिंग होती है, जहां सैकड़ों लोग इकट्ठे  होकर देखते हैं। इस 45 मिनट की बुलेटिन में गाँवों व किसानों की समस्याएं, महिला उत्पीडऩ, सामाजिक बुराइयां, पंचायती राज में भ्रष्टाचार, पर्यावरण, कानून व अधिकारों की जानकारी से संबंधित करीब 7-8 खबरें होती हैं। 

मिशन आई इंटरनेशनल सर्विस 'अप्पन समाचार' से जुड़ी ग्रामीण लड़कियों को मीडिया वर्कशॉप के जरिये पत्रकारिता की बेसिक जानकारी दे रही है। सोशल मीडिया व वेब मीडिया के बारे में भी प्रशिक्षित किया जा रहा है। इधर, अप्पन समाचार ने महिला समाख्या के सहयोग से कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय की छात्राओं को नागरिक पत्रकारिता का प्रशिक्षण देना शुरू किया है। मुशहरी, मड़वन, कांटी, बोचहां, गायघाट, सकरा, कटरा, बंदरा, कुढऩी, मीनापुर, मुरौल, औराई आदि प्रखंडों की करीब 1000 से भी अधिक छात्राएं मीडिया लिटरेट बन रही हैं। कैमरा, ट्राइपोड संभाल रही हैं। 

इधर, अप्पन समाचार ने चैनल के साथ मासिक चिंता भी निकालना शुरू किया है। चिंता पाठक गाँव की महिलाएं, मजदूर, स्कूली बच्चे व किसान हैं। जो खबरें चैनल पर चलती हैं, वही खबरें चार पन्नों के मासिक चि_ा में छपती हैं। एक ही स्क्रिप्ट को विजुअल और प्रिंट दोनों में शामिल किया जाता है।  चिंता की संपादक रिंकु कुमारी हैं और सहायक संपादक खुशबू कुमारी। जबकि अप्पन समाचार चैनल में रिंकु कुमारी निर्माता और खुशबू बतौर एंकर की भूमिका निभाती हैं। 

अप्पन समाचार में ग्रामीणों की आवाज को काफी तव्वजो दी जाती है। इसका प्रभाव भी गाँवों से लेकर प्रखंड कार्यालयों तक दिखता है।। चांदकेवारी स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यालय का भवन निर्माण दो-तीन नंबर ईंट से हो रहा था। अप्पन समाचार ने इस पर स्टोरी दिखाई, तो प्रधानाध्यापक को ईंट वापस करनी पड़ी। धरफ री स्थित ग्रामीण बैंक में किसानों से केसीसी के लिए रिश्वत ली जा रही थी। अप्पन समाचार टीम ने स्टोरी की, तो इसका फायदा करीब दो दर्जन किसानों को मिला। पंचायत के सोहांसी निवासी गरीब फ गुनी महतो का पूरा परिवार दाने-दाने को मोहताज था। उसे राशन-केरोसिन नहीं मिल रहा था। पास में ही पंचायत के मुखियाजी का घर भी है। उन्हें इस परिवार की माली स्थिति पर तरस नहीं आ रही थी। अप्पन समाचार की स्टोरी से उस परिवार को मदद मिली। अप्पन समाचार के संस्थापक संतोष सारंग सामाजिक बदलाव के लिए डिजिटल टूल्स को माध्यम बनाया है। इसका मकसद है गाँव की लड़कियों व महिलाओं को सशक्त करना। उनके अंदर मीडिया की समझ डालकर सामाजिक बुराइयों को दूर करना, पर्यावरण को लेकर जागरूकता पैदा करना, कल्याणकारी योजनाओं में गड़बडिय़ों को उजागर करना आदि। चैनल से जुड़ी लड़कियों को पढ़ाई के खर्च में मदद भी दी जाती है।   

पहली बार जब गाँव की चार लड़कियां खुशबू, अनिता, रूबी, रूमा हाथों में कैमरा, ट्राइपोड, माइक लेकर निकली तो लोगों ने कहा कि क्या तमाशा खड़ा़ कर दिया है। इन लड़कियों को न लाइट का पता था, न साउंड का। वायसओवर और रिपोर्टिंग से अनजान इन हाथों ने जब 45 मिनट का पहला एपिसोड रामलीलागाछी हाट में दिखाया, तो लोग देखकर आश्चर्यचकित हुए। आज इनके चाहने वालों की लंबी फेहरिस्त है। इनकी लोकप्रियता केवल गाँवों में ही नहीं, बल्कि देश-दुनिया में भी है। गाँव के लोगों ने उत्साहित होकर गाँव का नाम 'अप्पन समाचार ग्राम' रखा है। अप्पन समाचार टीम की मदद के लिए 11 सदस्यीय विलेज एडिटोरियल बोर्ड बनाया गया है। 

इसमें अध्यक्ष शंभूशरण सिंह व सदस्य विनोद जयसवाल, रामनाथ गुप्ता, लालबाबू राय, संजय कुशवाहा, महेन्द्र ठाकुर, संजय यादव आदि शामिल हैं। पर्दे के पीछे के हीरो राजेश कुमार, पंकज सिंह, फू लदेव पटेल व नीतीश कुमार हैं। जो तकनीकी सहयोग के साथ-साथ खबरों के लिए इनपुट जुटाते हैं। रिंकु अप्पन समाचार की टीम में शामिल होकर 2008 में कोसी की त्रासदी को कवर करने में जख्मी हो गई थीं। इन लड़कियों ने पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दूल कलाम का कार्यक्रम कवर किया। आज ये लड़कियां बच्चे, बूढ़े और गरीब महिलाओं की आवाज बनी हैं। गांव के लोग अप्पन समाचार से समस्याओं पर बात करते हैं और महिलाएं प्रताडऩा की दर्दभरी दास्तां सुनाती हैं। इस मीडिया क्रांति को 'एनसीआरटी' ने सातवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में 'सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विज्ञान भाग-2' में 'लोकतंत्र और मीडिया' पाठ में शामिल किया है। 

अप्पन समाचार की सफ लता की कहानी को देश-दुनिया के प्रमुख अखबारों/चैनलों और न्यूज एजेंसियों ने लिखा और दिखाया है। एआरडी जर्मन टीवी ने सात मिनट की डॉक्यूमेंटरी फिल्म बनायी है। बीबीसी ने भी स्टोरी प्रकाशित की। अप्पन समाचार की कहानी प्रख्यात फि ल्म निर्देशक सईद अख्तर मिर्जा की नेशनल चैनल पर प्रसारित सीरियल 'ये इंडिया है मेरी जान' के एक एपिसोड का विषय बनी है। अलजजीरा चैनल डॉक्यूमेंटरी बना रही है। अप्पन समाचार को नेटवर्क 18 ने अक्तूबर 2008 में 'सिटीजन जर्नलिस्ट अवार्ड' से नवाजा है। 2010 में वन वल्र्ड मीडिया ने इस अनोखे काम के लिए अप्पन समाचार को स्पेशल अवार्ड के लिए शॉर्टलिस्ट किया था। इस वर्ष पटना पुस्तक मेला में अप्पन समाचार की संपादक रिंकु कुमारी को 'एसपी सिंह पत्रकारिता पुरस्कार' से सम्मानित किया गया है। अप्पन समाचार के काम को देखने उड़ीसा के कंधमाल से 13 आदिवासी महिलाओं एवं बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय की पत्रकारिता के 22 छात्र-छात्राओं की टीम भी आ चुकी हैं। आज यह मीडिया आंदोलन समाज के लिए नजीर बन गया है।

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