Wednesday 8 May, 2013

व्यवसायिक फसलों को पैदा कर रहे छोटे किसान


लखनऊ। देश में छोटे किसान व्यावसायिक खेती की ओर रुख कर रहे हैं। अब वो उन्नत किस्म के बीज बोते हैं। और नये-नये तरीके अपना रहे हैं।  गन्ना देश में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली व्यवयायिक फसलों में से एक है। साल 2011 के आंकड़ों के अनुसार देश में 3,39,167 हज़ार टन गन्ने का उत्पादन हुआ जिसमें 35 प्रतिशत हिस्सा उत्तर प्रदेश का था, लगभग 12000 हज़ार टन के आसपास। इतने बड़े आंकड़ों को पढ़कर कोई भी यही सोचेगा कि देश में बड़े किसान बहुत हैं जो अच्छा उत्पादन कर रहे हैं पर ऐसा नहीं है। देश में लगभग 43 लाख 60 हजार हेक्टेयर भूमि पर गन्ने की खेती होती है जिसमें से ज्य़ादातर किसान छोटे और मझोले किसान हैं। 

कभी सिर्फ खाने के लिए अनाज, फल, सब्जी पैदा करने वाले ये छोटी जोत के किसान अब अपने खेती के तौर-तरीके बदल रहे हैं। वो अब उन्नत किस्म लगाते हैं, बाज़ार भाव का ध्यान रखते हैं और वैज्ञानिक सलाह भी लेते हैं। उनके खेतों का आकार भले ही छोटा हो पर जानकारी का दायरा लगातार बढ़ रहा है। 

उत्तर प्रदेश के छोटे किसान भी तरक्की की इस बयार से अछूते नहीं। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉक्टर कामता प्रसाद बताते हैं, ''गन्ना उत्पादन की बात करें तो प्रदेश में गन्ने की व्यवसायिक खेती करने वाले 70 प्रतिशत किसान छोटे या मझोले किसानों की श्रेणी में आते हैं।"


भारत में कृषि से होने वाली कमाई में छोटे व मझोले किसानों का बड़ा योगदान है। कृषि जनगणना 2011 के आंकड़े भी कुछ ऐसी ही कहानी कहते हैं। देश में कृषि की कमाई का 85 प्रतिशत हिस्सा उस सक्रिय भूमि से आता जिस पर छोटे और मंझोले किसान खेती करते हैं। गन्ने के अलावा टमाटर और मेंथा भी कुछ ऐसी फसले हैं जिनके उत्पादन में भारत कई देशों को टक्कर देता है। इन दोनों ही फसलों के उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा कम भूमि वाले किसानों की ही समझदारी से की गई मेहनत का नतीजा है। देश में टमाटर के उत्पादन पर नज़र डालें तो पाएंगे कि भारत 16826 मीट्रिक टन (2011 के आंकड़ों के अनुसार) उत्पादन के साथ विश्व का दूसरा सबसे बड़ा टमाटर उत्पादक देश है। टमाटर उत्पादन में देश को यह सफलता इसलिए मिल पाई क्योंकि छोटे किसान भी अनाज उगाने की अपनी मजबूरी को पीछे छोड़ अधिक मुनाफा देने वाली फसलों की खेती में कूद पड़े। मेंथा या पिपरमिंट की खेती की बात करें तो साल 2012 में देेश में लगभग 36 हज़ार टन मेंथा का उत्पादन हुआ। इस उत्पादन में छोटे किसानों के योगदान को सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एण्ड ऐरोमेटिक प्लांट (सीमैप) की एक रिपोर्ट सत्यापित करती है। रिपोर्र्र्र्र्र्र्र्ट में लिखा है, 'मेंथा ज्य़ादातर छोटे और मझोले किसान ही उगाते हैं।'


कृषि में लगातार बढ़ती लागत


लखनऊ के उत्तर में लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित हनुमंतपुरवा गाँव के किसान मनोज शर्मा ने खेतों में मेंथा लगाया है। 9 बीघा ज़मीन पर खेती करने वाले मनोज शर्मा मानकों के हिसाब से छोटे किसानों की श्रेणी में आते हैं। ''व्यवसायिक खेती के तेजी से बढऩे का कारण ये जो मूल्य में लगातर वृद्घि हो रही है, यही है। महंगाई इतनी बढ़ गई है कि धान-गेंहू  के अलावा भी अन्य चीज़ों को खरीदने में पैसे बहुत लगते हैं। चलिए अनाज तो घर में उगा लिया लेकिन बाकि चीजें भी तो हैं, जो ज़रूरी हैं और जिन्हें खरीदना ही पड़ेगा। जैसे डीजल का दिन-ब-दिन रेट बढ़ता जा रहा, उसकी खपत भी बढ़ रही है, क्योंकि गर्मी इतनी है कि जहां पहले दो-तीन सिंचाई में काम चल जाता है वहीं अब 5 से 6 बार पानी लगाना पड़ता है तो यह पैसा कहां से आयेगा। कम ज़मीन में इतना अनाज थोड़े ही मिलता है कि ज्य़ादा मुनाफा हो।" 33 वर्षीय मनोज बताते हैं । मनोज ने बातों-बातों में ही छोटे किसानों के सामने वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौती का जि़क्र किया जो है लगातार बढ़ रही लागत। खेती में लगातार बढ़ते खर्चे को झेलते हुए खेती को जारी रखने के लिए किसान को व्यावसायिक फसलों का सहारा लेना ही पड़ता है जिससे कम समय में वो ज्य़ादा मुनाफा कमा सके। हनुमंतपुरवा के पास ही बसे गाँव शाहपुर के किसान भगवानदीन (45) पांच बीघा ज़मीन पर खेती करते हैं। खेती के बढ़ते खर्च से भगवानदीन भी परेशान हैं। अगली फसल की तैयारी में लगने वाला पैसा जुटाने के लिए भगवानदीन ने अपने खेत कुछ व्यवसायिक फसलें लगाई हैं जिन्हें वे बाज़ार में बेचेंगे। ''परिवार बहुत बड़ा है भईया और ज़मीन कम है। धान-गेंहू  जो भी लगाते हैं वो 18 सदस्यों के परिवार में ही खप जाता है। फिर अगली फसल लगाने के लिए बीज, खाद, डीजल इनका पैसा भी तो चाहिए। हमने अभी दो-तीन बीघा में लहसुन और मिर्चा बोया है अब इसे बाजार में बेचेंगे तो चार पैसे मिलेंगे।" भगवानदीन कहते हैं।  

जानकारी से दूर हुईं कई भ्रांतियां

हनुमंतपुरवा गाँव के किसान मनोज अपनी खेती को लेकर जागरुक हैं। ''हम सीमैप जाकर वैज्ञानिकों से सलाह करके वहीं से खेती के लिए उन्नत बीज लाते हैं।" अपनी बात जारी रखते हुए मनोज ने आगे जो कहा उससे छोटे किसानों में जानकारी का बढ़ता स्तर साफ झलकता है, ''तेल निकालकर ही बेचना चाहिए, उससे ज्य़ाद फायदा होता है क्योंकि तेल की कीमत ज्य़ादा मिलती है बाजार में। कटाई के बाद सीधा बेचेंगे तो घाटे में जायेंगे।" पहले किसान कई व्यावसायिक फसलों की खेती से बचता था, क्योंकि उसे लगता था इनसे भूमि खराब होगी। आधी जानकारी का शिकार किसान जब असलियत समझे तो उन्होंने इन फसलों की खेती शुरू कर दी।

''किसानों में जानकारी आ रही है बहुत सारे प्रोग्रेसिव किसान अपनी ज़मीन की उर्वरा शक्ति बनाये रखने का प्रयास करते हैं और मिट्टी  की जांच भी करवाते हैं। किसान मीडिया की वजह से जागरुक हैं। वो टमाटर, प्याज़, फूल आदि की खेती की जानकारी पा रहे हैं। छोटा किसान भी अब पहले यह देखते  है जो फसल वो लगा रहा है वो उसी  क्षेत्र में और कितने लोगों ने लगाई है उसके हिसाब से ही वह अपनी फसल की तैयारी करता है।" केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान की लखनऊ शाखा के प्रमुख वैज्ञानिक डॉक्टर वीके मिश्रा ने बताया। 


आंकड़े बता रहे कि धीरे-धीरे संभलने लगी खेती

मनोज और भगवानदीन जैसे छोटे किसानों की जानकारी और उनके खेतों की हरियाली उन आंकड़ों का विरोध करती है जो बताते हैं कि कृषि में लगातार उत्पादन घट रहा है। भारत के व्यापारिक संगठनों पर नज़र रखने वाली संस्था भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) के एक शोध में भी कुछ ऐसे ही आंकड़े सामने आये हैं। शोध के अनुसार वित्तीय वर्ष 2012-13 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का योगदान अब तक 2.9 प्रतिशत है। वित्तीय वर्ष 2011-12 में यह आंकड़ा 3.7 प्रतिशत था। पिछले वित्तीय वर्ष 2011-12 की आखिरी तिमाही में जो कृषि उत्पादन 1.7 फीसदी के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया था, उसमें वित्तीय वर्ष 2012-13 के पहले पखवाड़े में ही 0.8 प्रतिशत की वृद्घि दर्ज की गई। पिछले साल तेज़ी से गिरने के जो घाव देश में कृषि की छवि पर आये थे वो धीरे-धीरे भरने लगे हैं। सुधार की कई वजहों में से एक देश के छोटे किसान भी हैं जिन्होंने पारंपरिक खेती से हटकर उन्नत फसलों का व्यवसायिक उत्पादन शुरू किया। 
इन चुनौतियों से लड़े तो और मज़बूत होगी खेती । 

अगर किसान सघन खेती करता है तो उसे अपनी भूमि का ध्यान रखना होगा। मिटटी  की भौतिक और रासायनिक दशा को बनाये रखना होगा। किसान जैविक खादों का प्रयोग नहीं कर रहा है। लंबे समय में इससे बहुत नुकसान होगा। उस  किसान एक तरह की फसलों की लगातार खेती नहीं करनी चाहिए वरना रोगों का प्रभाव बढ़ेगा। किसान का बाज़ार की अच्छी जानकारी रखनी चाहिए। जो फसल वो उगा रहा है वो आस-पास कितने बड़े क्षेत्र में लगाई गयी है या क्षेत्र में उसका कितना उत्पादन है इसका ख्याल किसान को रखना होगा। 

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