Tuesday 30 April, 2013

संसद है सांसदों का जंतर-मंतर


संसद चलती नहीं है। आये दिन आप ऐसी ख़बरों से दो चार होते हुए निराश हो रहे होंगे। अब संसद नहीं चली तो सांसद काहे चल कर आते हैं। संसद चलने से मना कर रही है। थक गई क्या जी? हमारी नाक है संसद। लोकतंत्र का पसीना है संसद। आप थोड़ा तो चलो जी। बार-बार स्थगित हो जाती हैं आप जी। कभी पांच मिनट के लिए तो कभी दोपहर तक के लिए तो कभी पूरे दिन के लिए स्थगित। कहीं ऐसा तो नहीं कि संसद स्थगित-स्थगित की कितकित खेल रही है। एक स्थगन से दूसरे स्थगन के बीच चल रही है। कौन कहता है कि संसद नहीं चल रही है।

हमारी संसद न चले और हम देखते रह जायें। विपक्ष कहता है सरकार सहयोग करेगी तो संसद चलेगी। सरकार कहती है विपक्ष सहयोग करे तो संसद चलेगी। जब एक के बिना संसद चल ही नहीं सकती तो सांसदों को सत्ता और विपक्ष में बांटा क्यों? नहीं चलने देने के लिए। तो फ ार्मूला क्या निकला मित्रों। संसद सहयोग की कमी से नहीं चलती है। पहले आप पहले आप के चक्कर में सांसद चल कर घर चले जाते हैं और आपकी संसद चलने का इंतज़ार करती रह जाती है। संसद का सत्र आते ही न चलने देने की रणनीतियों का ऐलान होने लगता है। खुलेआम ये परंपरा चल रही है। देश को दौड़ाने का सपना बांटने वाले संसद को चलने तक नहीं देते।

तो नया कानून बनेगा कैसे? पुराने कानून पर बहस कैसे होगी? राजनीतिक नारेबाजिय़ां संसद में होने लगी हैं। होनी भी चाहिए लेकिन लगता है जैसे आम लोगों के लिए जंतर-मंतर है वैसे ही सांसदों के लिए जंतर-मंतर संसद है। आम आदमी काम नहीं मिलने के कारण जंतर-मंतर जा रहा है। हमारे सांसद काम न करने के लिए संसद जा रहे हैं। राज्य सभा के सभापति ने गुज़ारिश की है प्लीज़ आप सदन को नहीं चलने देने के लिए पीठासीन की कुर्सी तक चल कर मत आओ। किसी ने नहीं माना। आपकी संसद चलती नहीं है। अब समय आ गया है पूछने का। भाई दिल्ली किस लिए भेजा था। पजेरो, बोलेरो में चलकर संसद जाने और बाहर निकल आने के लिए या काम करने के लिए। हमारे सांसद जब काम करते हैं और अच्छी बहस करते हैं तो उसी सदन का स्तर कितना ऊंचा उठ जाता है।

तो हे भारत के आम जन। आपकी संसद चल नहीं चल रही है लेकिन यह मत समझिये कि सांसद भी नहीं चल रहे हैं। वे दनदनाती कारों से संसद पहुंचते हैं। 

झटकती चाल से सीढ़ी चढ़ते हैं और लंबा चलते हुए सदन तक पहुंचते हैं। जैसे सदन स्थगित होता है वे फि र चलते हैं। लंबा चलते हुए सेंट्रल हॉल पहुंचते हैं। वहां स्थगन से प्रभावित अन्य दलों के सांसदों के साथ गप्प करते हैं। संसद में एयरकंडीशन बेजोड़ काम करता है। बिजली जाती नहीं ताकि हमारे सांसद आप जनता के काम करते हुए जनरेटर की आवाज़ से बाधित न हो जायें। सेंट्रल हाल में पत्रकार और सांसद बेहतरीन चाय का आनंद लेते हुए एक दूसरे के साथ दोस्ताना व्यवहारों का प्रदर्शन करते हुए चलने लगते हैं। चल-चल कर हाल चाल पूछते हैं और चलते हुए पजेरो, सफारी, फाचुनर, इनोवा जैसी महंगी भीमकाय गाडिय़ों में लद कर चले जाते हैं। संसद की पोर्टिको से दूर खड़े और रूके हुए ड्राइवरों के लिए घोषणा होती रहती है। फ लाने माननीय सांसद की चिलाने नंबर की गाड़ी ले आयें। धायं-धायं कारें आती हैं और सांसद साहब बैठ कर चले जाते हैं।

हमारी संसद चल नहीं रही है। कोई दुखी नहीं है। सांसद साहब तो इलाक़े में कार दौड़ा रहे हैं न। किसी की शादी में, किसी की मैय्यत में, किसी खडंजा के नामकरण के लिए। क्या हमारे सांसद इसके लिए बने हैं? सोचियेगा। नीतियों के लिए कौन मेहनत करेगा। पूछियेगा अपने सांसद साहब से, साहब दिल्ली गए थे कोई नीति बनाई, बनवाई या उसकी प्रक्रिया में भाग लिया? इन सवालों को लेकर चिन्तित हुआ कीजिये। संसद नहीं चलेगी तो देश भर की आवाज़ कैसे पहुंचेगी। सुबका कीजिये अपनी संसद के लिए। सियासत आपकी जि़दगी बदलने के लिए है, तमाशे के लिए नहीं। संसद के नहीं चलने पर अपनी उदासीनता से निकलिये। इसे चलाने के लिए सड़कों पर उतरिये।
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)

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