Tuesday 16 April, 2013

"अभी हमें 52 लड़ाइयां लडऩी हैं"



मनीष मिश्र
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)। गुस्से से तमतमाता चेहरा लिए एक दुबली-पतली सी लड़की ने जब तलवार म्यान से खींची तो सैकड़ों लोगों की आंखें फटी की फटी ही रह गईं। दरअसल, यह कोई जंग का मैदान नहीं था बल्कि शीलू सिंह राजपूत मंच पर आल्हा              गाने के साथ-साथ अभिनय भी कर रही थी। रायबरेली जिले के गाँव लकुशहा की रहने वाली इस लड़की ने गाँव की चौपाल में गाए जाने वाले आल्हा को एक अलग पहचान दिलाने की ठानी है।

 शीलू अपने तलवार चलाने और आल्हा गाने के शौक के बारे में बताती हैं, "एक बार आल्हा सम्राट लल्लू बाजपेई हमारे गाँव में आल्हा गाने के लिए आए। वह गा भी रहे थे और साथ ही तलवार भी चला रहे थे। उनका तलवार चलाना मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने सोचा कि अगर मैं भी इनकी तरह आल्हा गाने लगूं तो मैं भी तलवार चला सकती हूं। ऐसे तो कोई तलवार चलाने देगा नहीं।" बस, आल्हा सम्राट लल्लू सिंह के इस कार्यक्रम के बाद शीलू ने अपने परिवारवालों को आल्हा सीखने के बारे में बताया। वह कहती हैं, "घर में सभी ने कहा कि अगर गाना है तो फिल्मी गाने क्यों न गाओ, लेकिन मैंने कह दिया कि मुझे वीर रस बहुत पसंद है, और आल्हा सीखना है। जिसके बाद घरवालों ने परमिशन दे दी।"

अपनी सांस्कृतिक विरासत को सीखने में शीलू का नए जमाने की तकनीक ने भी खूब साथ दिया। वह बताती हैं, "हमें आल्हा सीखने में एक साल लगा। हमारे गुरु जी ने कहा कि हम घर जाकर नहीं सिखा पाएंगे, तो हमने उनकी सीडी को देखकर घर में ही सीखना शुरू कर दिया। जो भूल जाते थे वह उनसे मोबाइल पर पूछ लेते थे।" उन्नाव के सुमेरपुर के एक कॉलेज से बीए फस्र्ट इयर की छात्रा शीलू सिंह सिर पर पगड़ी बांधकर और हाथ में चमचमाती तलवार लेकर जब स्टेज पर आल्हा गाती है तो एक अलग ही शमां बंध जाता है।

कार्यक्रम के दौरान एक कलाकार सिर्फ तलवार लेकर पोजीशन देता है। जैसे ही कोई ऐसा प्रसंग आता है कि शीलू के हाथ में तलवार होनी चाहिए, वह कलाकार तलवार लेकर पास आ जाता है, जिसे शीलू बड़ी तेजी से म्यान से निकाल लेती है। स्टेज पर शीलू के घूमने के साथ-साथ   इस कलाकार की पोजीशन भी बदलती रहती है। शील सिंह राजपूत ने 'निराला आल्हा मंडल' के नाम से अपनी कंपनी भी बनाई है। जिसमें शीलू ही अकेली महिला कलाकार हैं, बाकी के छह साथी कलाकार पुरुष हैं। जो कार्यक्रम के दौरान ढोलक, हारमोनियम और मंजीरे से साथ देते हैं। शीलू की कंपनी में उसके बड़े भाई पवन भी साथ देते हंै। पवन को मंजीरा बजाने में महारत हासिल है। बीए फाइनल इयर के छात्र पवन कहते हैं, ''यह मेरा शौक है, शीलू ने जब पहली बार जब आल्हा गाने की इच्छा ज़ाहिर की तो उसे बढ़ावा  दिया। मेरा कंपनी में शामिल होना संगीत में मेरा शौक होने के साथ-साथ बहन की सुरक्षा की  जिम्मेदारी भी है।''

शीलू की इस कंपनी का इलाहाबाद से रजिस्ट्रेशन है और वह सात राज्यों में कहीं भी जाकर कार्यक्रम पेश कर सकती है। महारानी लक्ष्मीबाई और दुर्गावती को पढ़कर बड़ी हुई शीलू कहती है, ''जो इन्होंने देश को बचाने के लिए किया, वो मैं अपने पारंपरिक संगीत को बचाने के लिए कर रही हूं।'' दो साल से कार्यक्रम पेश करती आ रही शीलू को स्टेज पर अब डर नहीं लगता। उसे फिल्में पसंद नहीं। उत्तर प्रदेश के महोबा के राजा थे आल्हा, और गाया जाने वाला आल्हा उन्हीं की वीरता की कहानियों का संग्रह है। उनके द्वारा लड़ी गई लड़ाइयों को एक सुर में वीर रस में गाया जाता है। ''अभी हमें 9 लड़ाइयां आती हैं, जबकि  दो साल के भीतर आल्हा की             कुल 52 लड़ाइयां सीखनी हैं।'' शीलू कहती है।

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