Tuesday 26 February, 2013

अब भारत चला इंडिया की ओर




आजादी मिली तो भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ। देखते ही देखते भारत विकास की राह पर चल पड़ा। धीमी ही सही विकास की गाड़ी चल पड़ी मंजिल की ओर। गाँवों और शहरों ने एक साथ चलना शुरू किया, लेकिन जानें क्यों इस तेज रफ्तार दौड़ में गाँव शहरों से पिछड़ गए। लेकिन, इन दिनों इंडिया और भारत के बीच की इस खाई को पाटने का काम कर रही है डिजिटल डिवाइस। मोबाइल और आधुनिक तकनीकों का जिस तेजी से इंडिया इस्तेमाल कर रहा है उस अनुपात में तो नहीं, पर उम्मीद के मुताबिक गाँवों से भी साकारात्मक नतीजे मिल रहे हैं 

अगर मोबाइल, कैमरे, टेलीविजन शहरी भारत यानि इंडिया में पूरी तरह आम हैं, तो अब गाँवों में भी अच्छे खासे लोग इसका इस्तेमाल करने लगे हंै। साथ ही, मीडिया पर भी डिजटिल मीडियम का प्रभाव बढऩे लगा है। जैसे-जैसे डिजिटल डिवाइसेज का प्रयोग बढ़ रहा है वैसे-वैसे पारंपरिक मीडिया जैसे अखबार और टेलीविजन अब डिजिटल डिवाइसेज की ओर शिफ्ट हो रहे हैं।

पिछले साल न्यूजवीक ने ये घोषणा की कि यह अपना अंतिम प्रिंट संस्करण 31 दिसंबर को छापेगा। इस साप्ताहिक मैगजीन ने अपना निर्णय इस आधार पर लिया कि 5 में से 2 अमेरिकी नागरिक मोबाइल डिवाइस पर समाचार पढ़ते हैं। क्या यही संकेत फैसले का आधार था?

अगर भारत की बात करें तो यहां सिर्फ  1 प्रतिशत जनता वास्तविक रूप से डिजिटल डिवाइस पर आधारित सूचना पर पूरी तरह आदतन जुड़ी है। तो क्या इसका मतलब है कि भारत पूरी तरह डिजिटल होने से काफ दूर है? मेरे अनुभवों के मुताबिक बिल्कुल नहीं। भारत काफी तेजी से डिजिटल टेक्नोलॉजी अपना रहा है और बड़ी संख्या में लोग डिजिटल जीवनशैली को अपना भी रहे हैं।

पिछले साल भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड (बीबीएनएल) ने14 राज्यों के साथ पंचायत स्तर पर राष्ट्रीय ऑप्टिक ाइबर नेटवर्क बिछाने का ठेका लिया था जो कि गाँव की पंचायत भवन तक जानी है, ताकि 100 एमबीपीएस (मेगाबाइटस् प्रति सेकण्ड) ब्रॉडबैंड लाइन सभी गाँवों घऱों तक पहुंचाई जा सकें। टेलिकॉम विभाग द्वारा बनाई गई इकाई बीबीएनएल इसी मकसद के लिए बनी है, ताकि 2013 तक सारे 2,50,000 पंचायतों तक हाई बैंडविड्थ ब्रॉडबैंड लाइन बिछाई जा सके। ये भारत सरकार की एक अत्यंत महत्वाकांक्षी परियोजना है, ताकि आम लोगों तक सूचना को पहुँचाया जा सके। यकीनन यह परियोजना किसी सूचना के अधिकार, ग्रामीण रोजगार योजना या नेशनल हाईवे जैसे लोकप्रिय परियोजनाओं से किसी भी मायने में ज्यादा प्रभाव डालने वाला है। 

हाल ही में डिजिटल एम्पावरमेंट फाउंडेशन के 3 जगहों पर किये गये बेसलाइन सर्वे के मुताबिक 80 प्रतिशत लोग इंटरनेट से जुडऩा चाहते हैं, ताकि उन्हें अच्छा मनोरंजन, शिक्षा से संबंधित सूचना यहां तक कि सरकारी सेवाएं मिल सकें।

इस बात को अगर ध्यान में रखें कि भारत में 90 करोड़ मोबाइल फ़ो कनेक्शन हैं, तो यकीनन उसे इस्तेमाल करने वालों की संख्या 60 करोड़ से कम नहीं होगी। इसी आंकड़े के आधार पर हम ज़रूर कह सकते हैं कि देश में 37 करोड़ 50 लाख घरों में कम से कम एक मोबाइल यानि हर घर में कोई कोई डिजिटल गैजेट ज़रूर होगा।

अगर किसी वजह से बीबीएनएल की परियोजना में देरी भी होती है तो भारत के पंचायतों में 100 एमबीपीएस की ब्रॉडबैंड लाइन कनेक्शन 2015 तक ज़रूर पहुँच जाएंगे। जिसके बाद देश का आम आदमी भी इंटरनेट के इस्तेमाल करने वालों में शामिल हो जाएगा और इस तरह पूरा देश अनुमान से पहले ही डिजिटल युग में प्रवेश कर जायेगा।

लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और काम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य हैं।  

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