Tuesday 5 February, 2013

दो महिलाओं के स्वाभिमान का सफर



माया देवी, उर्मिला ने खुद का काम शुरू कर अन्य महिलाओं को भी काम पर लगाया

श्रीकांत सिंह

सल्लिया: लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेशद्ध। 50 वर्षीय माया देवी हैं तो अनपढ़ पर वाशिंग पाउडर बनाती हैं। सिर्फ  बनाती ही नहीं बल्कि बेचती भी हैं दरवाजे-दरवाजे जाकर। इनके वाशिंग पाउडर का नाम है स्वाभिमान डिटर्जेंट पाउडर।

उन्हीं के जैसी एक और महिला हैं उर्मिला देवी। उर्मिला लगभग 10 महिलाओं की टीम के साथ गरम मसाला बनाकर बेचती हैं। इनके उत्पाद का नाम भी है श्स्वाभिमान गरम मसाला.

यह दोनों ही महिलाओं के उस वर्ग का हिस्सा हैं जो आर्थिक संघर्ष से जूझते हुए स्वाबलंबन के रास्ते पर चल पड़ी हैं।

लखीमपुर खीरी जनपद से 80 किलोमीटर दूर हरदोई जिले की सीमा से सटे गाँव सल्लिया, जेबीगंजद्ध में पिहानी अड्डे पर रहती हैं माया देवी। इनके पति जगन्नाथ सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं। दिल्ली विकास प्राधिकरण में बगवानी यानि हॉर्टीकल्चर विभाग में काम करते थे। जगन्नाथ अब मायादेवी के साथ नहीं रहते। मायादेवी के दो लड़के और एक लड़की है जिनके देखभाल का जिम्मा अकेले मायादेवी के कंधों पर थाए अब तो सभी की शादी हो चुकी है। बड़ा लड़का पिता के साथ रहता हैए लेकिन छोटा लड़का राकेश मां को न छोड़ पाया। वह अपनी पत्नी के साथ मां के पास ही रहता है। 

सालों पहले मायादेवी के सामने जब आर्थिक संघर्ष आया तो पति ने मौन रहकर चुनौती दीए लेकिन मायादेवी ने परिस्थिति के आगे घुटने नहीं टेके। खुद को भी संभाला और उस परिवार को भी जो पति अपने पीछे छोड़ गया था। मायादेवी ने ग्राम स्वराज्य मिशन आश्रम नाम की स्वयं सेवी संस्था के साथ जुड़कर वाशिंग पाउडर बनाने का प्रशिक्षण लिया। अपनी बहू प्रीति और गाँव की एक अन्य लड़की सीमा के सहयोग से मायादेवी ने वाशिंग पाउडर बनना शुरू कर दिया।

माया देवी बताती हैं कि वह अपना स्वाभिमान डिटर्जेंट पाउडर 250 ग्रामए आधा किलो और एक किलो के पैक में बनाती हैं। और ये पैकट 10ए 20 और 40 रुपये की बिकते हैं। एक किलो पाउडर बनाने में लगभग 23 रुपये की लागत आती है इस तरह 17 रुपये की बचत होती है। माया देवी घर.घर जाकर पाउडर बेचती हैं, कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें पाउडर इतना पसंद है कि वो खुद ही घर आकर वाशिंग पाउडर खरीदकर ले जाते हैं। वह एक दिन में 10 से 12 किलो पाउडर आसानी से बेच लेती हैं।

इसी गाँव में गरीबी से संघर्ष कर रही एक और महिला हैं उर्मिला देवी हैं। उर्मिला के पांच बच्चे हैं, तीन लड़के और दो लड़कियां। पति सुरेश फेरी लगाकर सामान बेचते हैं। कभी.कभी सेल्समैनी का काम भी कर लेते हैं। उर्मिला के ही जान पहचान की 10 महिलाएं और थीं जिनकी माली हालत उर्मिला की ही तरह कमज़ोर थी। उर्मिला की अगुवाई में इन सब महिलाओं ने गरम मसाला बनाने का प्रशिक्षण लिया। गरम मसाला, हल्दी और धनिया को कूट.पीस कर बेचना शुरू कर दिया। सभी महिलाएं अपने आप मसाले की सामग्री कूटती हैं,पीसती हैं और पैकिंग करती हैं। शुद्ध नहीं विशुद्ध मसाला बनाती हैं और घर.घर जाकर बेचती हैं। मसालों के रेट के बारे में उर्मिला देवी कहती हैं कि बाजार में कच्ची सामग्री के रेट के आधार पर वह भी मूल्य में बदलाव करती हैं। वैसे 100 ग्राम के पैकेट में मिर्चा 18 रूपए धनिया 19 रूपए हल्दी 24 रूपए और गरम मसाला 94 रुपए का बिकता है।

माया देवी और उर्मिला ने दो अलग.अलग सामग्रियों को बनाने का प्रशिक्षण लिया और धीरे ही सही पर सुधार की ओर बढ़ चलीं। अकेले इन दोनों की ही नहीं बल्कि गाँव की और भी महिलाओं की जीवन में  बदलाव आया है जिसका केंद्र है ग्राम स्वराज्य मिशन आश्रमश् है। यह एक गैर सरकारी संस्था है जिसका उद्देश्य है गाँव में रहने वाली महिलाओं को स्वावलम्बी बनाना। ग्राम स्वराज्य मिशन आश्रम के संस्थापक विशम्भर नाथ ने ही उत्पादों को श्स्वाभिमान नाम दिया है। उन्होंने इस नाम का रजिस्ट्रेशन भी करवा रखा है। वह बताते हैं, संस्था के  शुरुआती दिनों में बहुत.सी महिलाओं ने प्रशिक्षण लिया पर सब सफल नहीं हो पायीं। लेकिन कुछ भी हो माया और उर्मिला ने जो मिसाल कायम की है वह सम्माननीय है। काश! इनके स्वाभिमानी उत्पाद को अच्छी मार्केटिंग   मिल पाती।

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