Wednesday 27 February, 2013

अमरीका डायरी: सबसे ज्यादा ड्रोन से हमले करता है अमेरिका



शिकागो(अमेरिका) जऱ् करिए की अफ ग़ानिस्तान के एक ख़ुफि य़ा हवाई अड्डे से एक खिलोने जैसा दिखनेवाला एक हवाई जहाज़ उड़ान भरता है, अब यह भी कल्पना कीजिए कि उसको कोई इंसान नहीं उड़ा रहा है, बल्कि अफ ग़ानिस्तान से 12,000 से भी अधिक दूरी पर न्यू मेक्सिको राज्य में स्थित नियंत्रण केंद्र में अमेरिका के वायु सेना के ख़ास अधिकारी उसकी उड़ान पर नियंत्रण रखते हैं, और कुछ समय के बाद यह हवाई जहाज़ जब अपने लक्ष्य को अपने कैमरे से देख लेता है तो उस पर वार कर देता है। मिनटों में ज़मीन पर घूम रहे दुश्मनों की धज्जियां उड़ा देता है। जो बात शायद दस साल पहले किसी एक पागल वैज्ञानिक के एक बीमार दिमाग की सोच मानी जाती, आज एक रोज़मर्रा की हक़ीकत बन गई है। 'प्रिडेटर ड्रोन' के नाम से मशहूर इस प्रकार का हवाई जहाज़, अमेरिका की सेना का आतंकवादियों के खिलाफ  एक सबसे बड़ा खतरनाक हथियार बन गया है। अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में रह रहे राष्ट्रपति बराक ओबामा खुद यह तय करते हैं कि ड्रोन का इस्तेमाल किस व्यक्ति विशेष, आतंकवादी पर कब और कैसे होगा। यहां का मीडिया जिसको 'किल लिस्ट' यानि कि जिनका खात्मा होना है कहता है,ऐसे लोगों की फेहरिस्त ओबामा की इजाज़त के बग़ैर आगे नहीं बढ़ती।

आजकल इस बात को लकर काफी चर्चा हो रही है कि क्या ड्रोन से मारे जाने वाले आतंकवादियों के खिलाफ  अभियान से कोई ख़ास परिस्थिति में र्क पड़ रहा है? चर्चा इसलिए भी हो रही है की ड्रोन से हुई बमबारी में ऐसा ज़रूरी नहीं की सिर्फ  दोषी आतंकवादी ही मरता हो, बल्कि अक्सर ऐसा देखा गया है कि साथ में कई निर्दोष लोग भी अपनी जान गवां देते हैं। ऐसे कई किस्से हुए जिन में कई बच्चों और महिलाओं की भी   आतंक वादियों के साथ-साथ मौत हुई। इसकी वजह से पाकिस्तान में जहां पर ड्रोन हमलों का सबसे अधिक उपयोग होता है, अमेरिका के खिलाफ  एक नफ रत का माहौल और तेज़ हो गया है। अमेरिका का यह कहना है कि उनकी कोशिश यही होती है के ऐसे हमलों में आम लोग अपनी जानें खोएं या पीडि़त हों, परन्तु जब आसमान से एक मिसाइल या बम गिरता है तो साफ है कि वह सिर्फ  इक्के-दुक्के आतंकवादियों को चुन के नहीं मारेगा, पर इनके इर्दगिर्द लोग भी इसमें मरेंगे या बुरी तरह घायल होंगे।

चूंकि ड्रोन एक ख़ुफि य़ा तरीका है, यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि इसमें कितने लोगों की जान गई, हालांकि हाल ही में अमेरिका के एक सेनेटर लिंडसे ग्रैहम ने यह पहली बार दावा किया है कि अब तक ड्रोन हमलों में अमेरिका ने 4,700 लोगों को मारा है। यह कहना असंभव है कि उनमें से कितने आतंकवादी थे और कितने आम लोग जो दुर्भाग्य से आतंकवादियों के आसपास थे, लेकिन इतना साफ़  है कि  ड्रोन की वजह से युद्ध की व्याख्या पूरी तरह बदल गई है। 

न्यू मेक्सिको स्थित ड्रोन नियंत्रण केंद्र में यह बात सामान्य है कि सुबह दो चार आतंकवादियों को मार गिराने के बाद अधिकारी लोग अपने-अपने घर दोपहर के भोजन के लिए चले जाएं, कहने का तात्पर्य यह है कि टेक्नोलॉजी को वजह से मौत कितनी आसान और कितनी हट कर हो गई है मरने वालों को इस बात की हवा तक नहीं लगती की आसमान से अचानक कुछ गिरेगा, टेगा और विनाश करेगा।

ड्रोन पर लगे कैमरे से इतना साफ़  देखा जा सकता है कि किसी व्यक्ति के सिर के बाल तक देख ले। एक ड्रोन की कीमत करीब चार करोड़ डॉलर्स यानि की 200 करोड़ रुपया है, जो किन देशों के लिए खरीदना इतनी बड़ी बात है, लेकिन अब तक इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल अमेरिका ही कर रहा है। यह मुमकिन है कि इस टेक्नलॉजी का उपयोग और कई अच्छे कामों में भी हो सकता है जैसे कि देश में जंगलों का किस कदर विनाश हो रहा है या नदियों का पानी कैसे कम, या ख़त्म हो रहा आदि।

ड्रोन अमेरिका के राष्ट्रपति को बहुत ज़्यादा शक्ति और सहूलत तो देता ही है लेकिन साथ-साथ उसका दुरुपयोग हो वो भी देखने के एक बड़ी जि़म्मेदारी भी देता है। यह कहना कठिन है कि किन हालात में और कब ड्रोन एक ऐसा भी हथियार बन जाए की लोकशाही को खतरा हो जाए।

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