जीतेन्द्र द्विवेदी
गोरखपुर। शहर के 10 नंबर बोरिंग निवासी रवि द्विवेदी पेशे से तो बैंककर्मी हैं लेकिन आज उन्हें लोग 'मिस्टर बोन्साई' के नाम से जानते हैं। वाकई, इनके हौसले का कोई जबाव नहीं है। प्रकृति के असल प्रेमी रवि की पेड़ों में जान बसती है। रवि के पास बोन्साई पेड़ों का अद्भुत संकलन है। जो उन्होंने 34 सालों में तैयार किया है। प्रकृति की इस अनमोल धरोहर को संरक्षित रखना उनके जीवन का मकसद बन गया है। अब तक पांच सौ से अधिक लोगों को पेड़ लगाने के लिए प्रेरित कर चुके है। सचमुच इतने बड़े पैमाने पर बोन्साई पेड़ों को लगाना रवि की ही बस की बात है।
अपने उगाए पोधों के साथ रवि द्विवेदी |
वैसे तो पूर्वांचल में बोन्साई पेड़ लगाने वाले और भी लोग हैं लेकिन सिर्फ संरक्षित करने और लोगों को पेड़ लगाने के लिए प्ररित करने वाले वे अकेली शख्सीयत हैं। वे पेड़ों को व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए नहीं लगाते हैं। उनकी मंशा है कि शहर में जिन लोगों के पास जमीन नहीं है वह लोग भी अपने घर में कम से कम दो से तीन पेड़ लगाएं, ताकि प्रकृति की विलुप्त हो रही प्रजातियां संरक्षित और सुरक्षित रह सकें। वह चाहते हैं कि शहर में एक बोन्सार्ई गार्डेन बने और एक फ़ोरम बनाया जाए जो लोगों को पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करे।
कहां से लाए पेड़
रवि द्विवेदी ने पेड़ों का खजाना तैयार करने के लिए काफी जगहों का भ्रमण किया है। केरल से काफी, फ ाशमीन, राजस्थान से गूलर, बबूल, बंगाल से इमली व जामुन, जयपुर, शिमला से अनार और पंतनगर से डेनियम का पेड़ लाए है। पाकड़, पीपल और बरगद की प्रजातियां यूपी के कई शहरों से उन्हें मिली है।
लगाने की विधि
पुराने पेड़ों को कलम कर जमीन में लगाते हैं। साल भर बाद गमले में डाल देते हैं। खाद के तौर पर सिर्फ गोबर की सड़ी खाद डालते है। फि र साल भर बाद पतले पाट में पेड़ को लगा देते हैं। पाट की मिट्टी में लकड़ी कोयला का चूरा, सुरखी, नीम की खली, हड्डी का चूरा मिलाकर डालते हैं। हर पेड़ में खाद की मात्रा अलग होती है। तने को पाइप के जरिए मिट्टी में लगाते हैं। जड़ों की कटाई-छंटाई भी करते रहते हैं।
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