Monday 27 May, 2013

भारत-पाक रिश्तों को सुधारेंगे स्कूली बच्चे!

अमृतसर। पाकिस्तान की जेल में कैद रहे सरबजीत की लाहौर में हुई मौत से एक ओर जहां भारत-पाक के तल्ख रिश्तों में एक और कड़ी जुड़ गई है, वहीं, दूसरी ओर अमृतसर के तरनतारन जिले के एक छोटे से गाँव पहुविंड में 10वीं में पढऩे वाला छात्र कुलवीर सिंह दोनों देशों के बीच शांति के लिए प्रयास शुरू कर चुका है। तरनतारन जिले की खास बात यह है कि सरबजीत का गाँव भिखीविंड भी इसी जिले में है। 

''मुझे लगता है कि हम अपनी अगली पीढ़ी को बता सकते हैं कि हम दोनों के बीच नफ रत का रिश्ता नहीं है, और अपने बड़ों से भी यह कह सकते हैं कि हमें पाकिस्तान के साथ मिलकर रहना चाहिए।" कुलवीर सिंह पूरी मासूमियत के साथ पंजाबी लहज़े में कहता है।

सियासत के दांव-पेंच के बीच नए सिरे से भारत और पाकिस्तान के रिश्ते को समझने के नज़रिए से अमेरिका इंडिया फ ाउंडेशन ने पंजाब के अमृतसर में 'हमारा परिवार, हमारा पड़ोस, हमारी दुनिया' नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत की है। इसके तहत भारत-पाक के बीच साझा विरासत को आधार बनाकर दोनों देशों के रिश्तों को सुधारने की कोशिशें की जा रही हैं। लोकसंगीत, लोकनृत्य, जैसे पारंपरिक कला माध्यमों के साथ-साथ फोटोग्राफी   वीडियोग्रा और इंटरनेट जैसे आधुनिक माध्यमों का प्रयोग कर गाँवों और शहर के स्कूली बच्चे इस पहल में खुशी-खुशी भाग ले रहे हैं।

परियोजना के निदेशक रूपक चौहान कार्यक्रम के बारे में बताते हुए कहते हैं, ''हम दिल्ली, भागलपुर और हैदराबाद जैसे शहरों में बच्चों के साथ काम कर रहे थे। देखा कि सांस्कृतिक कार्यक्रम बच्चों के सोचने के तरीके में बदलाव लाए हैं, तो हमें ख्याल आया कि क्यों न इसे भारत-पाकिस्तान के बीच दोस्ती के धागे की तरह प्रयोग किया जाए।" अमृतसर के ग्रामीण और शहरी स्कूलों में शुरू की गई इस सांस्कृतिक पहल के बारे में आगे बताते हुए रूपक कहते हैं, ''दोनों देशों के खानपान, रहन-सहन की आदतें विभाजन से पहले से एक ही हैं, विभाजन के बाद बीच में बस सरहद ही तो आई है, बाकी कुछ नहीं बदला। हमारा 40 से 50 फीसदी सांस्कृतिक  परिवेश तो अब भी वही है। जिसे हम आज भी साझा कर रहे हैं। इसे अगर बड़े परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो दो पड़ोसी देशों के बीच के रिश्तों का सही होना उनके आर्थिक समीकरणों पर भी फ र्क डालता है। कई चीजें परोक्ष रूप से असरदायक होती हैं, संस्कृति उनमें से एक है।"

कार्यक्रम के प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर आमिर अजीज बताते हैं, ''यह कार्यक्रम दो सालों के लिए है। पिछले साल इसमें शहर, गाँव मिलाकर अमृतसर के 10 स्कूल शामिल थे, और पाकिस्तान में ऐसे 7 स्कूल शामिल थे। इस बार अमृतसर के 15 स्कूलों में इस तरह का प्रशिक्षण बच्चों को दिया जा रहा है।"       

अमृतसर और उसके आसपास के गाँवों को ही इस परियोजना के लिए क्यों चुना गया इसके जवाब में आमिर कहते हैं, ''विभाजन से पहले पंजाबी संस्कृति भारत और पाकिस्तान के बीच एक पुल की तरह काम करती रही है। इसलिए हमने अमृतसर को इसके लिए चुना। भारत और पाकिस्तान के बीच  साझा संस्कृति के मूल तौर तरीके और रिवाज़ आज भी वही हैं। वही पहनावा, वही कपड़े, शादी के मौकों पर गाए जाने वाले गीत भी वही हैं। हर पंजाबी घर में महिला को गिद्दा नाच करना आता है, वो चाहे भारत का घर हो या पाकिस्तान का। तो हमने सोचा कि इस साझा संस्कृति के धागे से दोनों देशों की संस्कृति को जोड़ा जाए। खास बात ये है कि पाकिस्तान में भी इसी तरह की परियोजना स्कूली बच्चों के बीच चलाई जा रही है।"

अमृतसर के पहुविंड गाँव के शहीद बाबा दीप सिंह पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य जम्पोर सिंह कहते हैं, ''इस प्रोग्राम से बच्चों को उनका अपना पुराना कल्चर पता चल रहा है, जिसके बारे में उन्हें जानकारी बहुत कम थी। बच्चों में कड़वाहट नहीं है, वो पाकिस्तान के बच्चों से मिलना चाहते हैं। हम कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें मिलवाएं।"

इसी स्कूल में प्रोजेक्ट से जुड़ी अध्यापिका गुरप्रीत कौर बताती हैं, ''पिछले एक साल से इस प्रोजेक्ट पर काम करते हुए मैंने देखा है कि बच्चों में बहुत ज्यादा उत्साह है, वो नई-नई बातें सीख रहे हैं, उनके दिलों में पाकिस्तान को लेकर नफ रत कही नहीं है।" अमृतसर के ही एक गाँव शामनगर के जगप्रीत गुरु खालसा हाईस्कूल में पढऩे वाले विक्रम सिंह बताते हैं, ''हमें कभी मौका मिला तो हम पाकिस्तान जाकर उनके लोगों से कहेंगे जैसे आप हमें लाइक करते हैं, वैसे ही हम भी आपको लाइक करते हैं। हम दोनों को मिलकर ही रहना चाहिए।"

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