Tuesday 15 January, 2013

खुद की मदद की, सब की मदद की


महिला सदस्य हर माह जमा करती है एक निश्चित किश्त। भारत में लगभग 61 लाख स्वयं सहायता समूह कार्य कर रहे

भाष्कर त्रिपाठी
कानपुर (उत्तर प्रदेश) "छत मिल गई मुझे, पहले तो पन्नी डाल कर रहती थी।" अपने बच्चे को गोद में लिए हुए एक महिला पक्के बने अपने मकान की ओर इशारा करते हुए कहती हैं।

इन महिला का नाम नीलम कनौजिया है और ये लखनऊ के दक्षिण में लगभग 85 किमी दूर बसे मवइय्या गाँव में रहती हैं। यह गाँव कानपुर की सीमा में आता है। नीलम की जि़ंदगी में यह बदलाव इसलिए आया क्योंकि आज से लगभग 13 साल पहले नीलम ने खुद बीड़ा उठाया अपनी और अपने परिवार की स्थिति सुधारने का। परिवार और आस-पड़ोस की तमाम तानाकशी के बाद भी नीलम ने घर की दहलीज़ लांघी और महिलाओं के स्वयं सहायता समूह से जुड़ गईं। नीलम ने समूह से लोन लिया जिससे उन्होंने गंभीर बीमारी का शिकार अपने पति का इलाज करवाया। फिर समूह से जुड़े रहकर सिलाई का काम करके समय पर लोन भी चुकाया। "संगठन से जुड़े होते तो इलाज का पैसा कहां से लाते इनका (पति का) इलाज तो जि़ंदगी भर चलेगा।" चार छोटे बच्चों की माँ नीलम कहती हैं। 

जिस संगठन से नीलिमा जुड़ी हैं उसका नाम है 'बूंद बचत संगठन कुलगाँव' यह महिलाओं के लगभग 190 स्वयं सहायता समूहों को मिलाकर बना एक संघ (फेडरेशन) है। हर समूह में 8 से 10 महिलाएं साथ में जुड़ती हैं। संघ के कुल 3 हज़ार सदस्य आपस में ही पैसे का लेन-देन करके एक दूसरे की ज़रूरतों को पूरा करते हैं। हर महिला सदस्य अपनी क्षमता के हिसाब से धन की एक निश्चित किश्त (50 से लेकर 200 रुपए तक) हर महीने संगठन के पास जमा करती है। एक महिला सदस्य अन्य सदस्यों की साझा सहमति के बाद जमा धनराशि में से निश्चित ब्याज पर लोन ले सकती है। अच्छी बात तो यह है कि अगर कोई महिला सदस्य किसी वजह से लोन चुकाने में देरी करती है तो उस पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं डाला जाता। सभी सहमति से लोन की मियाद बढ़ा देती हैं। चालू होने के बाद से आज तक 'बंूद बचत संगठन कुलगाँव' ने 1 करोड़ 56 लाख रुपए से भी अधिक की बचत की है। संघ अपने सदस्यों में अब तक लगभग 1 करोड़ 64 रुपए का लोन भी बांट चुका है। जिसमें एक महिला 40 हज़ार तक का लोन ले सकती है। संघ अपने कार्यक्रमों का खर्चा भी खुद के जोड़े गए पैसों से ही निकालता है।

''पहले अगर किसी महिला के बच्चे की तबियत $खराब है तो उसे सौ-दो सौ रुपए के लिए ज़मीदारों के पास उधार मांगने जाना पड़ता था। उसमें भी कई बार मात्र सौ रुपए के लिए ज़मींदार चक्कर लगवाता कि आज नहीं कल आओ। महिलाओं के साथ आकर स्वयं सहायता समूह (सेल्फ हेल्प ग्रुप) बनाने से उन्हें ऐसे ज़मींदारों के पास नहीं जाना पड़ता, वह अपनी छोटी-छोटी ज़रूरतों के आपस में ही एक-दूसरे की मदद करती हैं। जिससे वे ज़मींदारों की कर्जदार बनने से बच जाती है।'' नीता केजरीवाल कहती हैं। नीता भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही योजना 'राष्टï्रीय ग्रामीण रोजगार मिशन' (एनआरएलएम) की डायरेक्टर हैं।

एनआरएलएम के अंतर्गत केंद्र की 'स्वर्ण जयंती ग्रामीण स्वरोजगार योजना' (एसजीएसवाई) का भी संचालन किया जाता है। 1999 से शुरू हुई योजना इसका मुख्य उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को स्वयं सहायता समूह बनाने के लिए प्रोत्साहित करना था। योजना के तहत सरकार सिलाई-कढ़ाई जैसे विभिन्न ट्रेनिंग प्रोग्रामों के साथ-साथ बैंक ऋृण और सब्सिडी भी उपब्ध कराती है।

एसजीएसवाई की वेबसाइट पर दिए गए 2011-12 के आंकड़ों के मुताबिक पूरे भारत में लगभग 61 लाख स्वयं सहायता समूह कार्य कर रहे हैं। जिनमें से ज्य़ादातर समूह महिलाओं के हैं। ''हालांकि सेल्फ हेल्प ग्रुप हर तरह के हो सकते हैं, पुरुषों के, महिलाओं के या फिर मिश्रित भी (पुरुष+महिला) लेकिन देखा गया है कि देश में कुल संख्या के लगभग 70 से 75 फीसदी स्वयं सहायता समूह महिलाओं के ही हैं। आप अगर आंध्र प्रदेश, केरल या बिहार में काम कर रहे महिलाओं के समूहों को देखें तो जान पाएंगे की उनकी जि़ंदगी कैसे सुधर गई है।'' नीता बताती हैं। वह आगे कहती हैं, ''महिलाओं के समूहों के सफल होने की एक वजह यह भी हो सकती है कि अगर पुरुष के हाथ में पैसा आता है तो कई बार देखा गया है कि वह इधर-उधर के कामों में भी खर्च हो जाता है जबकि एक महिला के हाथ में आया पैसा सिर्फ अपने घर और बच्चों की ज़रूरतों पर ही खर्च होता है। इससे परिवार और समाज में उनका सम्मान भी बढ़ता है।''

''पहले 1 रुपए नहीं रहता था अब घर की महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम हैं। पत्नी आमदनी में हाथ बटाती है तो उसका आदमी(पति) भी उसकी सुनता है और सलाह लेता है। एक बार जब अपना आदमी सम्मान देता है तो जवार(समाज) भी सम्मान करता है।'' विजयलक्ष्मी कहती हैं। 36 साल की विजयलक्ष्मी साल 1993 से 'बूंद बचत संगठन' से जुड़ी हैं। वह बताती हैं, ''पहले महिलाएं कतराती थीं समूह में जुडऩे से पर अब तो खुद आती हैं ग्रुप से जुडऩे। कई बार तो ऐसा भी होता है कि सासें खुद अपनी नई बहुओं की सिफारिश लेकर आती हैं कि वे पढ़ी-लिखी हैं उन्हें समूह का सेके्रटरी बना दिया जाए।''

आज समाज में स्वयं सहायता समूह के दो नमूने देखने को मिलते हैं। पहले वे समूह या संघ (कई समूहों का संगठन) जो बैंकों से जुड़कर उनसे लोन लेते हैं और साथ ही साथ सरकारी सब्सिडी(सरकार द्वारा दी जाने वाली धन की सहायता) भी प्राप्त करते हैं। दूसरे वे जो बैंक और सरकारी नियमावली से स्वतंत्र रहकर काम करते हैं और यह लोग लोनिंग तथा समूह या संघ का खर्चा भी अपने धनकोष से ही निकालते हैं। बूंद बचत संगठन कुल गाँव संघ भी एक स्वतंत्र ढांचे के तहत काम करता है।

''शुरुवाती दिनों में हम सरकारी स्कीमों के साथ जुड़े पर समय बीतने के साथ-साथ कुछ दिक्कतें आने लगीं। किसी सेल्फ हेल्प ग्रुप को लोन देने की बैंक और सरकारी संस्थाओं की कुछ शर्तें हमारे पल्ले नहीं पड़ीं (सही नहीं लगीं) तो हमने अपने इस ग्रुप को कुछ अलग बनाने का सोचा और हमें सफलता भी मिली। आज यह संगठन अपने आप में महिलाओं का एक बैंक है जिससे वह आवश्यक्ता पडऩे पर बिना लंबी-चौड़ी शर्तों के लोन ले सकती हैं।'' रामनारायण बताते हैं। 55 साल के रामनारायण श्रमिक भारती नाम के गैर सरकारी संगठन(एनजीओ) में वरिष्ठï समूह आयोजक हैं। साल 1991 में करीबन 10 लोगों से शुरू हुए बूंद बचत संगठन नाम के एक छोटे से स्वयं सहायता समूह को वर्तमान में तीन हजार से ज्य़ादा सदस्यों वाला 'बूंद बचत संगठन कुल गाँव' संघ बनाने में रामनारायण ने अपनी जि़ंदगी बिता दी। 'इस मेहनत के एवज़ में क्या प्राप्त हुआ आपको?' यह पूछने पर रामनारायण कहते हैं, ''बड़ा खुश होता हूं मैं घरों की सुधरती स्थिति देखकर। संतोष मिलता है।''

रामनारायण के संतोष का कारण वह बदलाव और विकास है जो संगठन से जुड़ी हर महिला के जीवन में साफ देखा जा सकता है। 30 साल की सुलेखा पाण्डेय की बेटी अंग्रजी माध्यम स्कूल में पढ़ती है और वह एयर हॉस्ट्रेस बनना चाहती है। मवइय्या गाँव की सुनीता जी ने अपना पक्का मकान बनवा लिया है। इसी गाँव की सुनीता ने इस बार लोन लिया तो एक लोहे का गेट लगवाया है अपने घर में। 45 साल की श्री देवी ने भैंस खरीदी है। विजयलक्ष्मी ने अपने घर में एक छोटी सी परचून की दुकान खोली है।


टॉप पांच में उत्तर प्रदेश दूसरा
भारत के ऐसे राज्यों की सूची में जिनमें सबसे ज्य़ादा स्वयं सहायता समूह काम कर रहे हैं, उत्तर प्रदेश 5 लाख से ज्य़ादा समूहों के साथ दूसरे नंबर पर है। नंबर एक पर आंध्र प्रदेश है जहां 8 लाख से ज्यादा स्वयं सहायता समूह हैं। मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल भी इस सूची में शामिल हैं।

(आंकड़े केंद्र सरकार की स्वर्ण जयंती ग्रामीण स्वरोजगार योजना की वेबसाइट से लिए गए हैं।)

लोन देने के साथ-साथ बनाते हैं आत्मनिर्भर
'बंूद बचत संगठन कुलगाँव' में महिलाओं को घर बैठे पैसा कमाने का ज़रिया भी मुहैया कराया जाता है और उन्हें मुफ्त ट्रेनिंग मिलती है। वे महिलाएं जो कि खेतीबाड़ी नहीं करतीं वे अपने खाली समय में कपड़े के दस्तानों की सिलार्ई करती हैं। संगठन से इसका उनको वाजि़ब पैसा भी मिलता है। दस्तानों को बेचकर जो पैसा जुटता है उसे उसी काम मेें या दूसरे कामों में लगा दिया जाता है।

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