Wednesday 24 April, 2013

बलात्कारी यूनियन के अध्यक्ष की चिट्ठी


प्रिय देश वासियों,

ये बड़े खेद का विषय है कि हमें ये पत्र लिखना पड़ रहा है। हमें आज तक किसी को कोई पत्र लिखने की आवश्यकता नहीं पड़ी, हम अपनी बात कर्मों से ही कहते आये हैं, लेकिन आज बदलते वातावरण में हमें अपनी बात एक सार्वजनिक मंच पर रखनी पड़ रही है।

मित्रों, ताकि आप हमें हलके में ना लें, इसलिए पहले तो हम अपनी संस्था के बारे में आपको अवगत करवा दें। हमारी संस्था का जन्म पौराणिक काल से भी पहले हुआ था। हमारी सदस्यता समूचे भारत में फैली हुई है। हमारे सदस्य बनने के मापदंड काफ ी आसान हैं। हर पुरुष जिसने कभी किसी महिला पर बुरी दृष्टि से देखा हो, या देखना चाह के डर के मारे नहीं देख पाया हो, या देखने का प्लान बना रहा हो, वो हमारा सदस्य बन सकता है। तो इसमें लगभग सारे हिंदुस्तान के मर्द शामिल हो जाते हैं। अभी तक तो भारत के हर एक पुरुष को हम अ_ारह वर्ष का होते ही एक सदस्यता का फ ॉर्म भेज देते थे। किन्तु अब सुनने में आया है कि अ_ारह से कम उम्र के बच्चे भी धड़ल्ले से हमारी संस्था के सदस्य बनना चाह रहे हैं। इसलिए शीघ ही हमारी ऐनुअल जनरल मीटिंग में हमारी सदस्यता के नियमों में संशोधन कर के कम उम्र के पुरुषों को भी बलात्कारी बनने का मौका दिया जाएगा।

ऐतिहासिक काल में हमारे सदस्य राजे महाराजे थे और वो अपनी प्रसन्नता के लिए जनता को हठात बलात प्रसन्न करते फि रते थे। जैसे जैसे युग बदला, समाज के अनेकों तबकों के लोग हमारी यूनियन से जुड़ते गये। महाभारत के टाइम तक हमारी संस्था में सेनापति और सिपहसालार टाइप लोग भी शामिल हो गए थे। महाभारत के टाइम द्रौपदी पे आघात हमारे सदस्यों दुर्योधन एंड कंपनी ने ही किया था। अब उस टाइम हमारे लोगों को लगा कि शायद आने वाली पुश्तें एक दो हज़ार साल बाद इस को हेय दृष्टि से देखें इसलिए हमें उस टाइम के पहुंचे हुआ पत्रकार मिस्टर वेद व्यास को घड़ा भर अशर्फि याँ घूस में दे कर इस घटना का चित्रण 'चीर हरण' के रूप में करवा दिया। 

पत्रकारों को पैसे दे के खरीदने का और पैसे ले के खबर छपने का सिलसिला तभी से शुरू हुआ था। देखिये हमारे आन्दोलन के आगे बढऩे का सबसे बड़ा श्रेय हम हिंदुस्तान के करोड़ों माँ बाप को देना चाहेंगे। हिंदुस्तान के करोड़ों घरों में बेटों का जो स्थान है, वो भगवान और पिता के कुछ पायदान नीचे ही आता है। लड़कियों को घर जल्दी आना होता है। लड़कियां दुपट्टा पहन के घर से निकलें, सर से पाँव तक पूरे कपड़े पहनें, और अगर कोई छींटाकशी करे, नुक्कड़ पे ताने मारे, तो सर झुका के चुपचाप घर चली आयें। 

किन्तु लड़कों के लिए इन माँ बाप ने अलग रूल बनाये हैं।  लड़के देर से घर आ सकते हैं। कमीज़ के तीन बटन खोल के चल सकते हैं। नुक्कड़ पे खड़े हो सकते हैं। सीटी बजा सकते हैं। खाना खाने के बाद बिना प्लेट उठाये बिना, प्लेट में रखे,  मेज़ से जा सकते हैं। 

इन सब चीज़ों से हमारी मेम्बरशिप को काफ़ी  फायदा हुआ है। हमें लड़कियों ने भी काफ़ी  फायदा पहुँचाया है। अपने कुछ नए मेम्बर जब किसी लड़की को छेड़ छाड़ के आते हैं तो डर जाते हैं कि अरे बाप रे, अपने से ऐसा हो गया, अब क्या होगा? ऐसे मौके पे हम उनको हिम्मत बढ़ाने के लिए अब तक पढ़ाई का मटिरियल देते रहे हैं, काउंसेलर से मिलवाते रहे हैं और कई सेशन करवाते रहे हैं। हमारा ध्येय होता था उन्हें समझाना कि लड़कियां कभी हमारी पुलिस से शिकायत नहीं करेंगी, लोक लाज के डर से पड़ोस में नहीं बतायेंगी, बन पड़ा तो घर में भी नहीं बताएँगी। इस से हमारे सदस्यों का काफी ढाढ़स बंधता है।

मित्रों, हमारी यूनियन के सदस्यों ने आज तक किसी सार्वजनिक मंच पर अपनी आवाज़ नहीं उठाई। इसका कारण भी था। एक तो हम अपना काम बिना पब्लिसिटी के करने में विश्वास करते हैं। दूसरा ये कि प्रेस वाले हमारी यूनियन की इतनी पब्लिसिटी अपने आप ही कर देते हैं कि हमारा पब्लिसिटी बजट हमेशा तिजोरी में धरा का धरा रह जाता है। 

लेकिन आज, मित्रों, एक महत्वपूर्ण कारण से हमें इस सार्वजनिक मंच पर ये पत्र लिखना पड़ रहा है। जैसा कि आप जानते हैं कि गलती इंसान से ही होती है और हमारे सदस्य भी इंसान ही हैं। पिछले दिनों हमारे किसी एक सदस्य के सर पे राक्षस सवार हो गया और उसने एक छोटी सी बच्ची के साथ एक बेहद गन्दी हरकत कर दी। और वो बच्ची हमारे एक दूसरे सदस्य की बेटी थी, दोस्तों।  हमारे ही सदस्य ने हमारे ही सदस्य की छोटी सी बेटी के साथ बलात्कार कर दिया। जब अपने पे आई तो इसकी टीस हम सब के दिलों में गहरी घुस गयी है दोस्तों। पिछली कई रातों से सो नहीं पाए हैं हम दोस्तों। खाना भी ठीक से नहीं खा पाते हैं। रह रह कर उस बच्ची की तस्वीर मन में आती है। इसलिए हम आज इस सार्वजनिक मंच पे ये कहने आये हैं दोस्तों कि इस बलात्कारी को मौत की सजा होनी चाहिए दोस्तों।

आपका 
बलात्कारी यूनियन का अध्यक्ष
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

7 comments:

  1. sir
    ye wichar sahi me ek bohot hi bara lekhak rakh sakta hai.........
    very meaning full
    i like this post

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  2. Waise mujhe jab log Balatkaar jaise vishayo ko Pauranik Kitabo se jodate hai.. to mujhe bura lagta hai..
    Balatkaar ek burai... Jaise Jhoot bolna Chori karna...
    jo har samay se is samaj mein samai hai.. Ab Mahabharat aur Gita se inke udaharan dene kya badalne wala hai.. Samajh nahi aata..
    Kaash premChand abhi zinda unki Kahaniyo mein, Samajik Buraio ke liye, Insaan ko Samajh dekar unhe khatma karne ki seekh hoti thi..
    na ki is zamaane ke lekhako ki tarah jo Samaj ko hatash karna chahte hai

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  3. बहुत बढिया मिश्र जी समाज की मानसिकता को बहुत अच्छे से शब्दों में पीरोया है आपने....महिलाओं और बच्चों के साथ किए जा रहे आमानवीय कृत्यों को लेकर शर्मसार करने वाले सभ्य समाज पर कटाच्छ..

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  4. ab to yhi haal h sir, jab tk khud pr aanch na aaye tab tk koi in problems pr dhyan nhi deta ...
    :(
    .
    .
    modernism & stereotype views have ruined the world today...

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    1. निलेश भाई बहुत बदिया, दरअसल यूनियन के सारे के सारे सदस्य एक दुसरे की सेंधमारी में मशगूल हैं ।

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  6. we;; said neeleshji. aapne apna sara gubaar nikal diya par kai log nikaal nahi paate. all the very best to u and to ur all projects and works.i will do one thing that i will spread ur work and all the other good and wonderful things u r doing to my known ones. once again all the very best to u. i will keep giving u and ur team my lots and lots of wishes.

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